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क्या मुस्लिम महिलाएं और बच्चे अब विपक्ष का नया हथियार हैं….?

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सीएए को कानून बने एक माह से ऊपर हो चुका है, लेकिन विपक्ष द्वारा इसका विरोध अनवरत जारी है. बल्कि बीतते समय के साथ विपक्ष का यह विरोध “विरोध” की सीमाओं को लांघ कर हताशा और निराशा से होता हुआ, अब विद्रोह का रूप अख्तियार कर चुका है. शाहीन बाग का धरना इसी बात का उदाहरण है. अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए ये दल किस हद तक जा सकते हैं, यह धरना इस बात का भी प्रमाण है. दरअसल नोएडा और दिल्ली को जोड़ने वाली सड़क पर लगभग एक महीने से चल रहे धरने के कारण लाखों लोग परेशान हो रहे हैं. प्रदर्शनकारी सड़क पर धरने पर बैठे हैं कि लोगों के लिए वहां से पैदल निकलना भी दूभर है. लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पा रहे, स्थानीय लोगों का व्यापार ठप्प हो गया है, रास्ता बंद होने के कारण आधे घंटे की दूरी तीन चार घंटों में तय हो रही है, जिससे नौकरी पेशा लोगों का कार्यस्थल तक पहुंचने में समय बर्बाद हो रहा है.

जो राजनैतिक दल इस धरने को खुलकर अपना समर्थन दे रहे हैं और इन आंदोलनरत लोगों के जोश को बरकरार रखने के लिए बारी-बारी से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं, उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि हवा का यह ज़हर कहीं देश की फ़िज़ाओं में भी ना घुल जाए. क्योंकि हाल ही में बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख ने एक वीडियो साझा किया है, जिसमें एक युवक यह कह रहा है कि यहां पर महिलाओं को धरने में बैठने के पांच सौ से लेकर सात सौ रुपये तक दिए जा रहे हैं. यह महिलाएं शिफ्ट में काम कर रही हैं और एक निश्चित संख्या में अपनी मौजूदगी सुनिश्चित रखती हैं. इतना ही नहीं उस युवक का यह भी कहना है कि वहां की दुकानों के किराए भी मकान मालिकों द्वारा माफ कर दिए गए हैं. इस वीडियो की सत्यता की जांच गंभीरता से की जानी चाहिए क्योंकि अगर इस युवक द्वारा कही गई बातों में जरा भी सच्चाई है तो निश्चित ही विपक्ष की भूमिका संदेह के घेरे में है. क्योंकि सवाल तो बहुत उठ रहे हैं कि इतने दिनों तक जो लोग धरने पर बैठे हैं, इन लोगों का खर्चा कैसे चल रहा है. यह जानना भी रोचक होगा कि वीडियो के वायरल होते ही यह खबर भी आई कि सिक्ख समुदाय ने धरना स्थल पर लंगर की व्यवस्था शुरू कर दी है. यह इत्तेफाक है या सुनियोजित रणनीति का हिस्सा यह तो जांच का विषय है.

दरअसल विपक्ष बेबस है क्योंकि उसके हाथों से चीज़ें फिसलती जा रही हैं. जिस तेजी से वर्तमान सरकार देश के सालों पुराने उलझे हुए मुद्दों को सुलझाती जा रही है, विपक्ष खुद को मुद्दा विहीन पा रहा है. और तो और वर्तमान सरकार की कूटनीति के चलते संसद में विपक्ष की राजनीति भी नहीं चल पा रही, जिससे वो स्वयं को अस्तित्व विहीन भी पा रहा है. शायद इसलिए अब वो अपनी राजनीति सड़कों पर ले आया है.

खेद का विषय है कि अपनी राजनीति चमकाने के लिए अभी तक विपक्ष आम आदमी और छात्रों का सहारा लेता था, लेकिन अब महिलाओं को मोहरा बना रहा है. जी हाँ, इस देश की मुस्लिम महिलाएं और बच्चे अब विपक्ष का नया हथियार हैं क्योंकि शाहीन बाग का मोर्चा महिलाओं के ही हाथ में है.

अगर शाहीन बाग का धरना वास्तव में प्रायोजित है तो इस धरने का समर्थन करने वाला हर शख्स और हर दल सवालों के घेरे में है. जो लड़ाई आप संसद में हार गए उसे महिलाओं और बच्चों को मोहरा बनाकर सड़क पर लाकर जीतने की कोशिश करना किस संविधान में लिखा है? लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनी हुई सरकार के काम में बाधा उत्पन्न करना लोकतंत्र की किस परिभाषा में लिखा है? संसद द्वारा बनाए गए कानून का अनुपालन हर राज्य का कर्तव्य है (अनुच्छेद 245 से 255) संविधान में उल्लिखित होने के बावजूद विभिन्न राज्यों में विपक्ष की सरकारों का इसे लागू नहीं करना या फिर केरल सरकार का इसके खिलाफ न्यायालय में ही चले जाना, क्या संविधान का सम्मान है? जो लोग महीने भर तक रास्ता रोकना अपना संवैधानिक अधिकार मानते हैं, उनका उन लोगों के संवैधानिक अधिकारों के विषय में क्या कहना है जो लोग उनके इस धरने से परेशान हो रहे हैं? अपने अधिकारों की रक्षा करने में दूसरों के अधिकारों का हनन करना, किस संविधान में लिखा है.

सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न उन मुस्लिम महिलाओं से जो धरने पर बैठी हैं, आज जिस कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर, शशि थरूर जैसे नेताओं का भाषण उनमें जोश भर रहा है, उसी कांग्रेस की सरकार ने शाहबानो के हक में आए न्यायालय के फैसले को संसद में उलट कर शाहबानो ही नहीं हर मुस्लिम महिला के जीवन में अंधेरा कर दिया था. यह दुर्भाग्यजनक ही है कि वर्तमान सरकार की नीतियों के कारण तीन तलाक से छुटकारा पाने वाले समुदाय की महिलाएं उस विपक्ष के साथ खड़ी हैं जो एक राजनैतिक दल के नाते आज तक उन्हें केवल वोटबैंक समझ कर उनका उपयोग करता रहा और आज भी कर रहा है.

डॉ. नीलम महेंद्र

 

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