दो दिन में दस बच्चों की मौत, जनता की आवाज होने का दावा करने वाले मीडिया संस्थान चुप क्यों
वर्ष 2019 में 940 बच्चों की मौत, कारणों का नहीं हुआ खुलासा
जयपुर. पिछले साल गोरखपुर के सरकारी अस्पताल में बच्चों की मौत पर विपक्ष व एजेंडा मीडिया ने उत्तर प्रदेश सरकार को कोई कसर नहीं छोड़ी थी. कुछ मीडिया संस्थानों ने मुख्यमंत्री के त्याग पत्र के लिए अप्रत्यक्ष अभियान छेड़ दिया था, और स्वयं को जनता का हितैषी, जनता की आवाज बुलंद करने वाला एवं निष्पक्ष होने का दावा किया था. लेकिन, कोटा (राजस्थान) में स्थित सरकारी अस्पताल में एक महीने में 77 बच्चों की मौत के बावजूद इऩ मीडिया संस्थानों ने चुप्पी साध रखी है. रिपोर्ट्स के अनुसार कोटा के जेकेलोन अस्पताल में पिछले 2 दिन में 10 बच्चों की मौत हो गई. ये सभी पीआईसीयू व एनआईसीयू में भर्ती थे. फिलहाल मौत के कारणों का पता नहीं चल सका है.
गत एक माह की बात करें तो बच्चों की मौत का आंकड़ा 77 पहुंच चुका है. यही नहीं अस्पताल में 2019 में 24 दिसम्बर तक कुल 940 बच्चों की मृत्यु हुई है. इतने बच्चों की मौत के बाद भी अस्पताल प्रशासन की नींद नहीं खुली है और वह इन आंकड़ों को सामान्य बता रहा है. अस्पताल प्रशासन ने डॉक्टरों की किसी तरह की लापरवाही से इनकार किया है. 48 घंटों में 10 बच्चों की मौत होने के बाद से पीड़ितों में कोहराम मचा हुआ है, अस्पताल प्रशासन बच्चों की मौत की जांच के लिए एक कमेटी गठित कर खानापूर्ति में जुट गया है. 23 दिसंबर को छह बच्चों की मौत हुई, जबकि 24 दिसंबर को चार बच्चों ने दम तोड़ा. अस्पताल प्रशासन और सरकार स्थिति को सामान्य बताने के प्रयास में लगे हैं.
शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. अमृतलाल ने मीडिया को बताया कि दो दिन में 10 बच्चों की मौत होने का कारण उनकी गंभीर अवस्था है. कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद ही मौत के कारणों का खुलासा हो सकेगा.
मामले को दबा रहा मीडिया
बच्चों की मौत के मामलों में गंभीर बात यह है कि स्थानीय मीडिया ने खानापूर्ति के लिए नाममात्र की खबरें छापकर इतिश्री कर ली. प्रदेश के मेनस्ट्रिम मीडिया ने इतने बड़े मामले को कोई खास तवज्जो नहीं दी और देता भी क्यों? क्योंकि यह सब सरकार द्वारा पिछले दिनों दी गई धमकी का असर जो था और मीडिया को राज्य सरकार से रेवेन्यू भी लेना है.
वहीं गोरखपुर में बच्चों की मौत पर हाहाकार मचाने वाला नेशनल मीडिया भी चुप्पी साधे बैठा है. चर्चा अनुसार मुख्यमंत्री की धमकी के बाद मीडिया की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं. कोटा में सैकड़ों बच्चों की मौत के बाद भी इस अत्यंत गंभीर खबर को संजीदगी से रिपोर्ट नहीं किया गया, जो उनकी जनता के प्रति जिम्मेदारी के दावों पर सवाल खड़े करता है.
जून 2019 की घटना
मां का आरोप – डॉक्टर सोता रहा, बेटे ने तड़पकर दम तोड़ दिया
मृतक बच्चे मयंक की मां वंशिका ने आरोप लगाया था कि 6 जून को बेटे को दस्त होने की शिकायत पर अस्पताल में भर्ती करवाया था. देर रात बच्चे की तबियत बिगड़ गई. बेटे के होंठ काले गए, सांस लेने में तकलीफ होने लगी. सुबह 5 बजे बेटे के मुंह से झाग आने लगा. डॉक्टर को कई बार बुलाया गया, लेकिन डॉक्टर ड्यूटी रूम में सोता रहा. डॉक्टर पर कार्रवाई न होने के कारण गुस्साए परिजनों ने अस्पताल में प्रदर्शन किया था.