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देश की आजादी में प्रत्येक देशवासी के पूर्वजों ने बलिदान दिया – इंद्रेश कुमार जी

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IMG_1025भोपाल (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार जी ने कहा कि स्वतंत्रता को कुचलने व जीवन मूल्यों को समाप्त करने की कोशिश का नाम आतंकवाद है. हथियारों के उपयोग द्वारा अथवा गुंडागर्दी से भयभीत करने का नाम ही आतंकवाद नहीं है, बल्कि वैचारिक रूप से भ्रमित करना भी आतंकवाद का एक रूप है. शुरूआत दौर में कश्मीर में नारा लगता था – हंस कर लिया है पाकिस्तान, लड़कर लेंगे हिन्दुस्तान. लेकिन वर्ष 1947, 1962, 1965, 1971, 1999 में लगातार पराजित होकर पाकिस्तान ने समझ लिया कि इस प्रकार के युद्ध में वह कभी विजयी नहीं हो सकता. अतः उसने प्रोक्सी वार का सहारा लिया, जो लगातार 60 वर्षों से जारी है. सम्मुख युद्ध में दुश्मन के खिलाफ देश ने सदा एकजुट होकर हुंकार भरी, किन्तु प्रोक्सी वार में, छद्मयुद्ध में कभी माओवाद, तो कभी अलगाववाद के नाम पर देश कन्फ्यूज हुआ, डिवाईड हुआ. पाकिस्तान के खिलाफ जो पांच युद्ध हुए, वह कुल मिलाकर 6 माह 26 दिन चला तथा उनमें 22-23 हजार जिंदगियों का नुकसान हुआ, लेकिन प्रोक्सी वार 60 साल से लगातार चल रहा है और उसमें दो लाख से अधिक मानव जिंदगियों का नुकसान हुआ है.

27 फरवरी को राष्ट्रीय जागरण मंच की भोपाल इकाई का शुभारम्भ हुआ. इस अवसर पर “बौद्धिक आतंकवाद” विषय पर एक संगोष्ठी का भी आयोजन किया गया. इंद्रेश कुमार जी संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि जब अमेरिका ने निर्णय लिया कि ओसामा को निपटाना है, तो वहां के किसी व्यक्ति ने सवाल नहीं किया, किन्तु हमारे देश में पूछा जाता है – क्या योजना है, क्या नीति है ? यदि योजना अथवा नीति सार्वजनिक कर दी जाए, तो क्या सफलता मिलेगी ?

उन्होंने कहा कि हम पागल उसे कहते हैं, जिसे भूतकाल का स्मरण न रहे, मैं कौन हूं, मेरा कौन है, यह भूल जाए. उसका वर्तमान से भी सम्बन्ध टूट जाता है तथा वह भविष्य का विचार भी नहीं कर पाता. आजादी के बाद यही कार्य योजनाबद्ध रूप से हमारे यहां हुआ है. कहा गया आर्य विदेशी हैं, कम्युनिस्ट, पश्चिम के स्कॉलर तथा हमारे यहां के पैसों से बिकने वाले लोग हमें हमारी जड़ों से काटने में लग गए. हमारी पहचान हमारा देश होता है, हमारी जाति, धर्म, पार्टी या समाज नहीं. हम कहीं विदेश में जाते हैं तो वहां के लोग हमें हमारे देश के नाम से ही पहचानते हैं. इसी प्रकार हम भी अमेरिका, रूस, कोरिया, जापान, तुर्की या चीन से आये लोगों को उनके देश के नाम से ही जानते हैं. विदेश में कोई किसी की जाति, समाज या पार्टी नहीं पूछता. आर्यावर्त, भारत, हिन्द, हिन्दुस्तान, इंडिया ये देश को प्रतिध्वनित करते हैं. इसी आधार पर दुनिया भर के लोग हमें आर्य, भारतीय, हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तानी कहते हैं. मुसलमान भी जब मक्का जाते हैं, तो वहां उनको हिन्दी मुस्लिम या इंडियन मुस्लिम कहकर ही पुकारा जाता है. यही सार्वभौमिक सिद्धांत है. ज्ञान लुप्त होता है, तो विज्ञान का भी गला घुटता है. किसी देश को गुलाम बनाना है तो उसे उसका अतीत भुला दो, उस पर बौद्धिक हमला कर भ्रमित कर दो . वर्ष 1947 के पहले पूरे भारत में गवाही की कीमत एक समान थी. एक मर्द मुसलमान एक गवाही, एक औरत मुसलमान एक गवाही. आजादी के बाद भारत में तो वही पद्धति रही, किन्तु पाकिस्तान में औरत की गवाही आधी हो गई. एक मर्द की गवाही एक गवाही, किन्तु एक औरत की गवाही, आधी गवाही. इसी प्रकार अगर मुसलमान को पांच टाइम नमाज पढ़नी है, तो आजादी के पहले वह अपने घर, दुकान अथवा बाजार में जहां चाहे नमाज पढ़ सकता था. किन्तु आजादी के बाद, भारत में तो वह कहीं भी नमाज पढ़ सकता है, लेकिन पाकिस्तान में अगर वह किसी सार्वजनिक स्थान पर नमाज पढ़े तो पुलिस पकड़ ले जायेगी. उसे पाकिस्तान में आजादी नहीं, यहां भारत में आजादी है.

IMG_1027इंद्रेश जी ने कहा कि पाकिस्तान में पख्तून, बलूच, सिन्ध, बाल्टिस्तान, सबमें आजादी की मांग उठ रही है. इसकी मांग करते करते लाखों लोग मारे भी जा चुके हैं. किसी की नफरत के सहारे कोई भी देश अपने को कायम नहीं रख सकता. यह हैरत की बात है कि जो पाकिस्तान खुद टूट रहा है, उसके जिंदाबाद के नारे लगाने वाले, भारत के टुकड़े करने के ख्वाब देख रहे हैं. आज अगर कुछ लोग भारत को तोड़ने की बात करते हैं, इसका अर्थ है कि वे भारत को प्यार नहीं करते. जो भारत को प्यार नहीं करते, वे भारत में रह क्यों रहे हैं ? अगर वे पाकिस्तान जाएं तो हमें क्या आपत्ति ?

एक नेता कहते हैं कि हमें आरएसएस देशभक्ति न सिखाये, उन्होंने आजादी के लिए क्या किया ? तो सवाल उठता है कि उन्होंने स्वयं देश की आजादी के लिए क्या किया ? उनके पूर्वजों ने किया, तो प्रत्येक देशवासी के पूर्वजों ने भी किया. देश की आजादी के लिए जो दस बीस लाख बलिदान हुए, क्या वे सब कांग्रेसी थे ? आजादी के पहले देश का बंटवारा हुआ. बंटवारा स्वीकार करने के बाद ही आजादी मिली. कांग्रेस ने रावी के तट पर कसम खाई थी, अखंड भारत की. आपने वायदा किया था अखंड भारत का. आपने पूर्ण स्वराज्य के वायदे के साथ विश्वासघात किया. आजादी की लड़ाई आपके पुरखों ने लड़ी, तो हमारे पुरखों ने भी लड़ी. हां हमने देश नहीं बेचा, जबकि आप आजादी के बाद से ही लगातार देश को बेचने का धंधा करते रहे. हद तो तब हो गई, जब आप मकबूल, याकूब, अफजल, कसाब के कातिल जिंदा हैं, हम शर्मिन्दा हैं, जैसे नारे लगाने वालों के साथ जाकर खड़े हो गए. राष्ट्रपति ने दया याचिका खारिज की, तो क्या वे कातिल हो गए ? सारी न्याय पालिका व न्यायाधीश भी कातिल हो गए ? जब फांसी हुई, तब राज कांग्रेस का था, तो कांग्रेस भी कातिल ? तो इनकी गिरेबां पकड़कर क्यूं नहीं पूछना चाहिए कि आखिर तुम्हें कातिल बताने वालों के साथ जाकर तुम कैसे और क्यों खड़े हो गए ?

इन्द्रेश जी ने कहा कि उन्हें बदनाम करने की जरूरत नहीं है, उन्हें चिढ़ाओ, ताकि वे ठीक हो जाएं. ईश्वर ने बड़ी कृपा की, जो जेएनयू की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को उजागर कर दिया. हमें तय करना होगा कि न तो हम पाप करेंगे, न अपनी आंखों के सामने पाप होने देंगे. कायर और कमजोर नहीं, निडर और बलशाली बनना होगा. अगर कोई देश के विरुद्ध नारा लगा रहा है, तो कानून से क्या पूछना ? देशद्रोह को बढ़ावा देने वाला बौद्धिक वर्ग, बौद्धिक आतंकवादी है. कितनी ईमानदारी से ये लोग बेईमानी कर रहे हैं.

इसके पूर्व गोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रख्यात साहित्यकार व धर्मपाल शोधपीठ के संयोजक रामेश्वर मिश्र “पंकज” ने कहा कि देश में कुछ बौद्धिक लम्पटों को सरकारों का संरक्षण मिला, जो लगातार देश की बुनियाद को खोखला करते रहे. हम विदेशी धन पर आश्रित मीडिया पर ध्यान ही क्यों दें ? उनकी चर्चा ही क्यों करें ? आज का मैन स्ट्रीम मीडिया है, सोशल मीडिया. उस पर हम सवाल उठायें कि देशभक्ति को दंडनीय कैसे कहा जा सकता है ? भारत की वीरता को कुंठित क्यों किया जा रहा है ? देश प्रेम की भावना, उसके प्रति संवेदनशीलता तो पुरस्कृत होना चाहिए. हम भी नारा लगाएं – देशद्रोह से आजादी, गद्दारों से आजादी, गद्दारों को पीटने की आजादी. हमें अपना अभिमत रखना आना चाहिए, दूसरों का जबाब नहीं देते रहना चाहिए. अगर समाज में थोड़े लोग भी जागरूक हो जाएं तो वे अपने सामर्थ्य से सबको बहा ले जायेंगे. राष्ट्रभक्ति को जागृत करें. इस समय लोग खुली बहस की वकालत कर रहे हैं, हम भी उसका फायदा उठायें.

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