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पांच वर्षों में माओवादी हिंसा पर लगी लगाम, घटनाओं में 27 प्रतिशत की कमी

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देश में माओवाद से प्रभावित छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, ओडिशा, झारखंड, बिहार, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र कुल 10 प्रदेश हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने माओवादी हिंसा और उससे जुड़े कुछ आंकड़े जारी किये हैं. इन आंकड़ों से पता चलता है कि सरकार माओवादी हिंसा को रोकने में कुछ हद तक सफल हुई है और सुरक्षाबलों को माओवादियों को मारने में भी सफलता मिली है.

गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 5 वर्षों में ही माओवादी हिंसा की घटनाओं में लगभग 27 प्रतिशत की कमी आई है. वहीं माओवादी हिंसा से मरने वालों की संख्या में भी लगभग 39 प्रतिशत की कमी हुई है. आम नागरिकों के अलावा पिछले 5 वर्षों में सुरक्षाबलों की जान जाने में भी 10 प्रतिशत की कमी हुई है. इसके अलावा माओवादियों के साथ एनकाउंटर में 65 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई है.

केंद्र में सरकार आने के बाद से माओवादियों और उससे जुड़े तमाम नेटवर्क को लगातार ध्वस्त किया जा रहा है. सरकार ने शहरी माओवादियों पर भी शिकंजा कसा है. कथित शहरी माओवादी वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, गोंजाल्विस जैसे लोग जेल में बंद हैं.

माओवादी हिंसा के अलावा माओवादियों के प्रभाव क्षेत्र में भी कमी आई है. माओवादी अपने दायरे को बढ़ाने में जी जान से जुटे हुए हैं, लेकिन सुरक्षाबलों की एक्शन टीम, राष्ट्रीय नीति और बेहतर प्लान की वजह से यह माओवादी पूरी तरह असफल रहे हैं.

गृह मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2013 में 1136 माओवादी हिंसा की घटना हुई, वहीं 2018 में यह घटकर 833 रह गईं. इसी तरह 2013 में 397 नागरिक और 75 जवान मारे गए थे, लेकिन 2018 में यह आंकड़ा घटकर 240 नागरिक और 67 जवान तक सीमित रहा.

2010 से 2018 के बीच पिछले 8 वर्षों में 10,660 माओवादी हिंसा की घटनाएं हुई हैं. इसमें 3,749 लोगों की मौत हुई. इन सब के बीच यह भी तथ्य निकल कर आया है कि माओवादियों ने अपनी सबसे अधिक गतिविधियों को छत्तीसगढ़ में अंजाम दिया है.

सिर्फ छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां 1370 लोग पिछले 9 वर्षों में माओवादी हिंसा के शिकार बने हैं. वहीं झारखंड में 3357 घटनाओं में 997 लोग मारे गए हैं. बिहार में 1526 हिंसक घटनाओं में 387 लोग मारे गए हैं.

माओवादियों ने देश के आम नागरिकों और सुरक्षा जवानों का इतना खून बहाया है, जितना सीमा पर आतंकियों ने नहीं बहाया. इस लाल आतंक ने ना सिर्फ देश को भीतर से खोखला करने की कोशिश की है, बल्कि कई पीढ़ियों को बर्बाद किया है.

कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) इन हिंसक गतिविधियों में सबसे सक्रिय रही है. कम्युनिस्ट विचारधारा ने सशस्त्र विद्रोह करके अपने आतंक से पिछले 9 वर्षों में कितनी जाने ली हैं, उसके आंकड़े आज सबके सामने हैं.

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