अजमेर शरीफ से 1200 लोगों वापिस लाने में प्राथमिकता, अन्य राज्यों से श्रमिक ट्रेनों को अनुमित नहीं
कोलकत्ता. पश्चिमी बंगाल में सरकार और प्रशासन इस कदर संवेदनहीन हो गए हैं कि उनको अपने नागरिकों के न तो स्वास्थ्य की चिंता है और न ही महिलाओं, बच्चों व बीमार लोगों के प्रति उनमें कोई दया भाव शेष बचा है. हाल ही में तमिलनाडु के वेल्लोर से 63 लोग अपने परिजनों के साथ पुरुलिया पहुंचे. लेकिन उनको न तो रात बिताने के लिए आश्रय मिला और न ही किसी प्रकार की कोई चिकित्सीय सुविधा. उनको खुले आसमान के नीचे रात बिताने को मजबूर होना पड़ा. इन लोगों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं. पुरुलिया की इस घटना ने सरकार और प्रशासन द्वारा किये जा रहे इंतजामों के बड़े-बड़े दावों की पोल खोल दी.
पश्चिम बंगाल में सरकार जरूरत के हिसाब से आइसोलेशन सेंटर भी नहीं बना पाई है, जिस कारण लोग पेड़ के नीचे या खुले आसमान के नीचे खुद को क्वारेंटाइन कर रहे हैं. पुरूलिया के ही बलरामपुर में लोग खुले स्थानों पर ही खुद को क्वारेंटाइन कर रहे हैं.
वेंटिलेटर पर स्वास्थ्य सुविधाएं, 300 नर्सों ने नौकरी छोड़ी
प. बंगाल में स्वास्थ्य सुविधाओं पर संकट गहरा गया है. अकेले कोलकाता में निजी अस्पतालों में काम करने वाली 300 नर्सों ने अपनी नौकरी छोड़ दी है. राज्य में स्वास्थ्यकर्मियों के लिए काम करने की खराब परिस्थितियों के चलते ये लोग बेहद तनाव में कार्य करने को मजबूर हैं. यही कारण है कि नर्सें नौकरी छोड़कर मणिपुर सहित देश के अन्य हिस्सों में स्थित अपने घरों के लिए निकल गई हैं. राज्य में इस प्रकार की अराजक स्थितियों के कारण कोरोना महामारी से निपटने के राष्ट्रव्यापी प्रयासों को झटका लगा है.
प. बंगाल सरकार पर लग रहे तुष्टीकरण के आरोप
पश्चिमी बंगाल में स्वास्थ्य सेवाओं के चरमरा जाने के पीछे सरकार की तुष्टिकरण की नीति भी एक बड़ा कारण रहा है. ऐसे आरोप लगातार लग रहे हैं. पश्चिमी बंगाल सरकार मुस्लिम समुदाय के 1200 लोगों को अजमेर शरीफ से श्रमिक ट्रेन से वापिस लाई थी, जबकि कोटा में हिन्दू छात्रों को छोड़ दिया था. अन्य राज्यों से पश्चिम बंगाल आने वाली श्रमिक स्पेशल को भी सरकार की अनुमित का इंतजार है. पश्चिम बंगाल सरकार ने अभी एक दर्जन से कम ट्रेनों को आने की अनुमति दी है, जिस कारण प. बंगाल से संबंधित अनेक प्रवासी श्रमिक वापिस नहीं पहुंच पा रहे हैं.