भारत ने कारगिल युद्ध के दौरान 26 जुलाई 1999 को पाकिस्तान पर विजय प्राप्त की थी. इस दिन को प्रत्येक वर्ष ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. इस युद्ध में भारतीय सेना के सैकड़ों जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे. मध्यप्रदेश सरकार ने कारगिल युद्ध से संबंधित चैप्टर को सिलेबस से हटा दिया है और अपने निर्णय को सही ठहराने के लिए अजीबो गरीब तर्क भी दिए जा रहे हैं.
कांग्रेस और कमलनाथ सरकार की रीति-नीति यह है कि गांधी परिवार के अलावा इतिहास के अन्य भाग को समाप्त किया जाए, और कांग्रेस ने सदैव क्रांतिकारियों/सैनिकों के बलिदान को नगण्य माना है. देश कारगिल युद्ध में विजय की 20वीं वर्षगांठ मना रहा है. ऐसे में सिलेबस से कारगिल विजय के अध्याय को हटाना आपत्तिजनक है.
एमवीएम साइंस कॉलेज भोपाल, सबसे पुराने और बड़े कॉलेजों में से एक है. राज्य सरकार बदलते ही इस कॉलेज के सिलेबस से कारगिल शौर्यगाथा वाला हिस्सा हटा दिया गया है. वर्ष 2018-19 के सिलेबस में कारगिल युद्ध से जुड़ा चैप्टर था, जो 2019-20 के सिलेबस से गायब है. पाठ्यक्रम की समीक्षा के लिए कॉलेज ने क़रीब 20 लोगों की एक टीम बनाई थी. फैसले के बचाव में कहा जा रहा है कि कारगिल युद्ध से जुड़ी किताबें नहीं मिल रही थीं, इसीलिए यह निर्णय लिया गया.
कॉलेज का कहना है कि कारगिल युद्ध पर आधारित अच्छे लेखकों की पुस्तकें नहीं हैं, जिस कारण इससे जुड़े चैप्टर को हटाना पड़ा. भाजपा ने इसका कड़ा विरोध किया है. भाजपा का कहना है कि इस युद्ध के वक्त अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, इसलिए कांग्रेस इस युद्ध के बारे में छात्रों को बताना नहीं चाहती है.
वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ ने “ऑपरेशन सफेद सागर” के 20 साल होने पर एक कार्यशाला में कहा कि यह पहला मौका था, जब मिग-21 लड़ाकू विमानों ने रात में पहाड़ों पर बम बरसाए और कारगिल से घुसपैठियों को खदेढ़ा. “सैनिकों की सहादत का सियासत से क्या लेना देना” राजनाताओं को अपनी भावनाओं पर काबू रखते हुए भावी पीढ़ी को वीरों के बलिदान की शौर्य कथाओं के बारे में जानने के अधिकार से वंचित नहीं करना चाहिए. कारगिल युद्ध भारतीय वीरों की वीरता और शौर्य का अतुलनीय उदाहरण है, हम उनकी कुर्बानी को जाया नहीं जाने दे सकते.