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मां गंगा एवं बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी ज्ञान की भूमि रही है – इंद्रेश कुमार जी

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वाराणसी (विसंकें). धर्म संस्कृति संगम काशी एवं धर्म मीमांसा विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में छात्रवृत्ति वितरण समारोह एवं दो दिवसीय ‘वैश्विक परिप्रेक्ष्य में सर्वधर्म समभाव’ विषय पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म संकाय के सभागार में  समारोह के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार जी रहे. उन्होंने कहा कि मां गंगा एवं बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी ज्ञान की भूमि रही है. यहां पर गौतम बुद्ध, कबीर, तुलसी, रविदास, महामना आदि संतों एवं विद्वानों ने ज्ञान प्राप्त किया. धर्म अपने आप में पूर्ण है, धर्म में जीवन मूल्य, चरित्र, संस्कार होते हैं. धर्म संस्कृति आन्दोलन का उदय काशी में हुआ, जिसका उद्देश्य सदाचार, सद्भाव को लाना और संघर्ष को टालना है. इसी भाव से धर्म संस्कृति का उदय हुआ. भारत में अनेकों पंथ हैं. जैसे – बौद्ध, जैन, सिक्ख आदि. सभी पंथों की अपनी परंपरा है, जो सनातन परंपरा से ली गई हैं. इन सभी पंथों का सम्बन्ध अयोध्या से रहा है.

उन्होंने कहा कि दुनिया में श्री रामचन्द्र जी मर्यादा पुरूषोत्तम, एक आदर्श राजा के रूप में जाने जाते हैं. जिन्होंने एक आदर्श राज्य स्थापित किया था. दुनिया के सात पंथ के लोगों ने राम जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण का समर्थन किया है. धर्म संस्कृति संगम का मुख्य उद्देश्य है कि सभी धर्मो का एक साथ समन्व किया जाए. कार्यक्रम में इन्देश जी ने महाआरती.कॉम वेबसाइट का उद्घाटन किया, जिसका संबन्ध बौद्ध धर्म से है.

धर्म संस्कृति संगम का परिचय देते हुये प्रो. जय प्रकाश लाल जी (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय कृषि विज्ञान संस्थान) ने कहा कि धर्म की नगरी काशी की पहचान ज्ञान के रूप में है. यह संस्थान एक विद्यापीठ के रूप में स्थित है. इन्देश जी देश-विदेश में सभी धर्मों को जोड़ने का कार्य कर रहे हैं. यह अतुलनीय है. विश्व के सारे धर्म मिलकर विश्व कल्याण की कामना को सफल बनाएं.

कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार जैन जी (जैन बौद्ध दर्शन विभाग, का.हि.वि.) ने कहा कि धर्म को कहने के तरिके अलग – अलग हैं. बुद्ध ने प्राकृतिक भाषा में, वेद संस्कृति भाषा में, जैन पाली भाषा में उपदेश दिया है. धर्म को धारण करने की शक्ति प्रत्येक आत्मा में विद्यमान है. जो जड़ और चेतन रूपी द्रव्य के रूप में विद्यमान है. प्रत्येक धर्म का सार यह है कि अपने आत्म स्वरूप को पहचाने और आपस में  समभाव लाएं. धर्म आपस में लड़ना नहीं जोड़ना सिखाता है. सांस्कृतिक दृष्टि से सहिष्णुता की हमारी संस्कृति रही है. जो सांस्कृतिक मूल्यों के आदान- प्रदान से ही संभव है. इसका समाधान संवाद से ही हो सकता है.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. गेशे नवांप्र सामतेन, (कुलपति, केन्दीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय, सारनाथ, वाराणसी) ने कहा कि दुनिया में आज सबसे जरूरी सर्वधर्म समभाव की है. इसके बिना लोग पृथ्वी पर सुरक्षित नहीं रह सकते. धर्म जीवन यापन के लिये दूसरे को हानि पहुंचाने की अनुमति नहीं देता है. धर्म अपने साथ सभी लोगों की भलाई की बात करता है. आज जो धर्म के नाम पर समस्याएं खड़ी की जा रही हैं. वह धर्म से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत व्यकितयों द्वारा किया जा रहा है. आज समाज में व्यक्ति व धर्म के बीच सही विवेचना की जरूरत है. आज समाज के पतन का कारण है कि मनुष्य धर्म का पालन नहीं कर रहा है. भारत ही विश्व का एक ऐसा देश है जो सभी धर्मों के साथ आपस में जोड़ते हुए आगे बढ़ रहा है.

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ. सर्वदानन्द आर्या जी (राष्ट्रीय अध्यक्ष, धर्म संस्कृति संगम) ने कहा कि भारत में सभी क्षेत्रों की अपनी अलग-अलग संस्कृति है. इन सभी का मिलन ही संगम है. व्यक्ति का अहं तो चलता रहता है. लेकिन जब पंथों का अहं टकराता है तो वह ज्यादा हानिकारक होता है. विश्व की हिंसा को दूर करने का एक ही मार्ग है, वह है – भागवान बुद्ध के अहिंसा का मार्ग पर चलें. व्यक्ति अपने अहंकार को समाप्त करे, सारे झगड़े समाप्त हो जाएंगे. सबकी पूजा पद्धति अलग-अलग है, हम सब सभी धर्मों के लोग दूसरे धर्मों के साथ समानता को अपनाये. कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. माधवी तिवारी जी ने किया.

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