सुशांत सिंह राजपूत की मौत ने एक सवाल हम सबके बीच छोड़ा है? क्या सफलता का मतलब ही ख़ुशी है? क्या जिन्होंने मंजिल पा ली है वो मुस्कुरा रहे हैं? इस दौड़ भाग भरी जिंदगी में हम इतने रम गए हैं कि एक बार रुक कर सोचने का वक़्त हमारे पास नहीं है. समाज और परिवार की अपेक्षाएं और अपने खुद के सपने हमें अक्सर बोझ से लगने लगते हैं और उसके बाद धीरे धीरे कब ये बोझ अवसाद में बदल जाता है, हमें पता भी नहीं चलता. आज मानसिक समस्याएं भारत में एक बड़ी समस्या है, लेकिन क्या हम भारतीय इसे पहचान रहे हैं?
डिप्रेशन अक्सर ऐसी मुस्कराहट का लबादा ओढ़े होती है. एक व्यक्ति जो अपने गम, परेशानी, अवसाद से घुटकर अपनी जान दे सकता है, वो भीड़ के सामने इस तरह मुस्कुरा भी सकता है. आप नहीं जानते कि कौन कब किस समस्या से गुजर रहा है. सुशांत की इस मुस्कराहट के बहाने जरा रुकिए और सोचिये.