नई दिल्ली (इंविसंकें). भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री मुकुल कानिटकर जी ने कहा कि हमारे यहां पढ़ाने की पद्धति और प्रक्रिया उच्चतर शिक्षा में भी वैसे ही है, जैसे उसके नीचे की कक्षाओं में है. सवाल यही है – फिर उसे उच्चतर शिक्षा क्यों कहा जा रहा है? भारतीय शिक्षण मंडल मानता है कि शिक्षा का विभाजन नहीं होना चाहिए. देश में शिक्षा को लेकर एक स्पष्ट लक्ष्य होना चाहिए. हमें अपनी शिक्षा को गुरुकुल की तरह विद्यार्थी केन्द्रित करना होगा, तभी विश्व में हमारी पहचान बरकरार रहेगी. वे भारतीय जनसंचार संस्थान में आयोजित युवा विमर्श सम्मेलन के दूसरे दिन संबोधित कर रहे थे. रिफॉर्म ऑफ़ हायर एजुकेशन विषय पर बोल रहे थे.
उन्होंने भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) का उदाहरण देते हुए कहा कि इसरो की पूरी व्यवस्था वैज्ञानिकों के हाथों में है. जिसका परिणाम उनके कार्य में भी दिखता है और सभी कार्य अच्छे से संचालित होते हैं. मंगलयान की सफलता उसका परिणाम है. शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह सरकार तंत्र से मुक्त होनी चाहिए. अध्यापकों द्वारा ही शिक्षण संस्थानों का संचालन होना चाहिए. तभी सुखद परिणाम आएंगे. दो देशों का उदाहरण देते हुए मुकुल जी ने कहा कि साउथ कोरिया और फ़िनलैंड में विद्यार्थी केन्द्रित शिक्षा होती है, शिक्षक तय नहीं करता कि विद्यार्थी को क्या पढ़ाना है, क्या नहीं. विद्यार्थी खुद तय करते हैं कि उन्हें क्या पढ़ना है, क्या नहीं. साउथ कोरिया में शिक्षक होना बड़ी बात मानी जाती है, वहां के लोग विदेशों में नौकरी करने की बजाय शिक्षक बनना अपनी प्राथमिकता में रखते हैं. वहां के शिक्षकों का वेतनमान देश में अन्य कर्मचारियों की तुलना में सर्वाधिक है जो उसकी महत्ता को दर्शाता है. यही कारण है कि छोटा देश होने के बावजूद उसकी शिक्षा का स्तर बेहद ही अच्छा है.
उन्होंने कहा कि हमें विद्यार्थियों को परीक्षा के लिए नहीं, भविष्य के लिए तैयार करना होगा. सिर्फ नौकरियों के लिए तैयार करना हमारा उद्देश्य नहीं होना चाहिए. हम विश्वगुरु हैं, अपनी शिक्षा के बल पर उसे आगे तक बरकरार रखना होगा. हमारे ज्ञान का नतीजा है कि 21 जून को विश्व के 192 देश एक साथ योग करते हैं. सम्पूर्ण विश्व हमारी ओर आशा भरी नजरों से देख रहा है. हमारे पास देने के लिए विश्व को बहुत कुछ है. उसके लिए जरूरी है कि अपनी शिक्षा व्यवस्था को मजबूत और विद्यार्थी केन्द्रित बनाने की.