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संघ भारत की विविधता और उसमें समायी एकात्मता को अपने में समेटे हुए है – दत्तात्रेय होसबले जी

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तृतीय वर्ष.1नागपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले जी ने कहा कि संघ शिक्षा वर्ग की परम्परा, इतिहास और विशेषताएं अद्भुत है. यह वर्ग समयानुसार अधिक विकसित होता गया और इस प्रशिक्षण वर्ग में स्वयंसेवक तप कर प्रशिक्षित होते हैं. संघ शिक्षा वर्ग पहले 40 दिनों का होता था, फिर यह 30 दिनों का हो गया और अब यह 25 दिनों का होता है. इसका तात्पर्य है कि 40 दिनों में जो सिखाया जाता था, उसे 25 दिनों में सिखाना है और अधिक सजगता से प्रशिक्षण द्वारा सबकुछ ग्रहण भी करना है. वह संघ शिक्षा वर्ग (तृतीय वर्ष) के उद्घाटन सत्र में शिक्षार्थियों को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि संघ की स्थापना वर्ष 1925 में हुई, वर्ष 1926 से दैनिक शाखा शुरू हुई और वर्ष 1929 में पहली बार संघ शिक्षा वर्ग का आयोजन किया गया था. प्रारंभ में इसे ऑफिसर ट्रेनिंग कैम्प (ओटीसी) कहा जाता था. प्रारंभ में आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार जी के निर्देशानुसार नागपुर और विदर्भ के प्रशिक्षित स्वयंसेवक अन्य प्रान्तों में जाकर स्वयंसेवकों का प्रशिक्षण वर्ग लेते थे.

सह सरकार्यवाह जी ने कहा कि संघ की स्थापना को 90 वर्ष हो गए, पर बीच में कुछ वर्ष संघ शिक्षा वर्ग नहीं हो सके. वर्ष 1948 और 49 में संघ पर प्रतिबंध लगाए जाने के कारण यह वर्ग नहीं हो सका था, बाद में आपातकाल के दौरान वर्ष 1975 और 76 में वर्ग नहीं हो पाया. इसी तरह दिसंबर 1992 में राम मंदिर आन्दोलन के चलते संघ पर प्रतिबंध लगाया गया और इस कारण से वर्ष 1993 में यह वर्ग नहीं हो सका.

तृतीय वर्षदत्तात्रेय होसबले जी ने कहा कि संघ शिक्षा वर्ग में लघु भारत का दर्शन होता है. संघ की प्रार्थना, गणवेश आदि में समानता या एकरूपता ही संघ का परिचय नहीं है. संघ तो भारत की विविधता और उसमें समायी एकात्मता को अपने में समेटे हुए है. संघ के गीत, कहानियां और प्रेरक पुस्तकें देश के विभिन्न प्रांत की भाषाओं में उपलब्ध हैं. संघ शिक्षा वर्ग का प्रारूप (खाका) देशभर में एक समान है, तथापि उन वर्गों में उस-उस प्रांत की विशेषताएं, विविधताएं और उसकी उसकी सुगंध रहती है. संघ शिक्षा वर्ग में मिलने वाला प्रशिक्षण भारत को अपने अन्दर अनुभव करने की प्रेरणा देता है. स्वामी रामतीर्थ की उक्ति का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि स्वामी रामतीर्थ कहा करते थे – “भारत भूमि मेरा शरीर है. कन्याकुमारी मेरे चरण हैं. हिमालय मेरा सिर है. मेरे केशों से गंगा बहती है. मेरे बाजुओं से ब्राहृपुत्र तथा सिन्धु निकलती हैं. विंध्याचल मेरे कमर की करधनी है. कोरोमंडल मेरा दायां पांव है और मालाबार मेरा बायां पांव. मैं सम्पूर्ण भारत हूं…” उन्होंने पूछा कि क्या हम स्वामी रामतीर्थ की तरह भारत को अपने अन्दर अनुभव कर सकते हैं?

सह सरकार्यवाह जी ने कहा कि संघ शिक्षा वर्ग (तृतीय वर्ष) कोई डिग्री नहीं है, पर स्वयंसेवकों के प्रशिक्षण के लिए आवश्यक है. तृतीय वर्ष शिक्षित स्वयंसेवकों से ये अपेक्षा की जाती है कि वे संघकार्य के प्रति प्रतिबद्ध रहें और जीवनभर संघ का कार्य करते रहें. संघ शिक्षा वर्ग की साधना और तपस्या का लाभ लें और संघकार्य के साथ अपने जीवन को विकसित करते हुए संघ कार्य को आजीवन करते रहने का संकल्प लें, इस आह्वान के साथ संघ शिक्षा वर्ग के औपचारिक उद्घाटन की घोषणा की.

तृतीय वर्ष.इस दौरान संघ शिक्षा वर्ग के सर्वाधिकारी प्रो. डॉ. वनियाजन जी, वर्ग कार्यवाह हरीश कुलकर्णी जी, वर्ग के पालक अधिकारी स्वांत रंजन जी के साथ ही सह सरकार्यवाह वी. भागय्या जी उपस्थित थे. इस वर्ग में 800 से अधिक युवा स्वयंसेवक सहभागी हो रहे हैं.

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