नई दिल्ली (इंविसंके). स्वदेशी जागरण मंच द्वारा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रमी संवत 2073 के अवसर पर नववर्ष स्वागत समारोह आयोजित किया गया. इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य, स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संयोजक अरुण ओझा, राष्ट्रीय संगठक कश्मीरी लाल, अखिल भारतीय सह संयोजक सरोज मित्तल ने कार्यकर्ताओं को संबोधित कर नववर्ष की बधाई दी.
डॉ. मनमोहन वैद्य जी ने कहा कि कल्याणकारी राज्य भारतीय परम्परा की संकल्पना नहीं है. समाज राज्य पर ही आश्रित न रहे, बल्कि उसे अपने बलबूते पर व्यवस्थाएं खड़ी करनी चाहिये. अतीत में भारत पर 800 सालों तक मुसलमानों का शासन था. उन्होंने धर्मान्तरण के हर संभव प्रयास किये, लेकिन केवल 12 प्रतिशत हिन्दुओं को ही मुसलमान बना पाए, 150 सालों तक अंग्रेजों का शासन रहा. उन्होंने भी धर्मान्तरण के अनेक प्रयास किये, लेकिन 2 प्रतिशत से अधिक लोगों का धर्म परिवर्तन नहीं कर पाए. इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह था कि हमारा समाज शासनों पर आधारित नहीं था. हमने अपनी व्यवस्थाएं खड़ी कीं, अपने नियम बनाए जो धर्म पर आधारित थे. यहां धर्म का अर्थ रिलीजन नहीं है, धर्म सभी को धारण करने, पोषण करने, विकास करने का आधार है. इस धर्म का पालन राज्य को भी करना है. यहां यह धर्म राज्य धर्म कहा गया है, प्रजा को भी करना है इसे प्रजा धर्म कहा गया है. अगर स्वदेशी समाज की रचना हमको करनी है तो हमारी राज्य पर अवलम्बिता-डिपेंडेंसी कम करते हुए अपने पुरुषार्थ के बलबूते पर कुछ कार्य-रचनाएं खड़ी करने का प्रयास हमको करना पड़ेगा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तो यह काम करता है और उसके माध्यम से जो यह सब काम चलते हैं, उसमें इस रचना की एक झलक देखने को मिलती है. 1 लाख 60 हजार सेवा कार्य संघ के स्वयंसेवक देशभर में चलते हैं. 90 प्रतिशत सेवा कार्य सरकार की मदद के बिना समाज के बलबूते पर चल रहे हैं.
उन्होंने कहा कि हमारा यह प्रयास हो कि समाज को देने के लिए हमारे पास कुछ है, हर एक के पास कुछ न कुछ है, जिस चीज का भी अधिक्य है उसे समाज को सौंपें. जिसके बगीचे में फूल खिलें, उसे दो फूल देने चाहिये, जिसके कंठ में स्वर है उसे दो गीत गाने चाहिये, जिसके यहां सूर्य उगा, उसे थोड़ा उजाला देना चाहिये, जहां सदियों का अंधकार है, वहां प्रकाश का गांव बसाना चाहिये, जिसके आँगन में बादल झुके उसे थोड़ा जल देना चाहिये, आसमान जिसकी जितनी ऊँचाई, उसे थोड़ा नीचे झुकना चाहिये और जिनका बचपन मिट्टी में ही मैला हुआ है, उन्हें उठा कर गोद में लेना चाहिये. इस तरह हम समाज को कुछ न कुछ लौटाएं. हम अपने मैं को छोटा करें तो हम का दायरा स्वतः बढ़ जाएगा. अर्थ प्रधान न होकर अर्थपूर्ण जीवन होना चाहिये. राज्य आधारित नहीं, हम समाज के नाते अपने बलबूते पर अपना काम खड़ा करेंगे. समाज को जितना अधिक दे सकते हैं, जिस चीज का आधिक्य है समाज को देने का प्रयास करेंगे. सारे समाज के बारे में एक अपनेपन का एक सहज व्यवहार हमारा हो. समन्वय, परहित, दूसरों को देने का वातावरण संभवतः बनेगा तो हमारा देश अपने आप बहुत आगे बढ़ेगा.
कश्मीरी लाल जी ने कहा कि अंग्रेजी नया साल हमें व्यसनों की ओर ले जाता है, जबकि हमारा विक्रमी संवत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा हमें सात्विकता की प्रेरणा देते हुए शरीर में नई ऊर्जा का संचार करता है. इस नव वर्ष में हम संकल्प करें कि महंगे विदेशी ब्रांड का मोह त्याग कर स्वदेशी वस्तुओं को अपना कर जो पैसे बचेंगे उसे समाज के वंचित वर्गों की सेवा कार्यों में लगाएंगे.
अरुण ओझा जी ने कार्यक्रम का विषय रखते हुए बताया कि नववर्ष शक्ति की उपासना का पर्व है. हम अपने जीवन में नयी ऊर्जा का संचार करते हुए पूरे विश्व में भारत माता की जयकार हो, ऐसा संकल्प हम सब लें. हमारे सारे पुराणों में सृष्टि का वर्णन है, सृष्टि कैसे हुई है, ब्रह्मपुराण में भी कहा गया है, भास्कराचार्य भी सिद्धांत शिरोमणि में यह कहते हैं कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के सूर्योदय के समय सृष्टि की रचना आरम्भ हुई. भारतीय खगोलशास्त्रियों ने, ज्योतिषाचार्यों ने कालगणना के समस्त गणित कर अध्ययन करते हुए यह निष्कर्ष निकाला है कि 4 अरब 32 करोड़ वर्ष सृष्टि की आयु है. इसको अलग-अलग विभागों में उन्होंने बांटा है, अलग-अलग काल खंड में बांटा है. पश्चिम के लोगों के मन में भी यह विचार आया कि यह सृष्टि कब हुई, तो उन्होंने 16वीं शताब्दी से इस पर सोचना शुरु किया. उस समय जंगलों में रहने वाले वो लोग थे, बहुत अधिक चिंतन करने वाले लोग नहीं थे, बहुत पढ़े-लिखे लोग नहीं थे. उन सब लोगों में मत बना कि ईसा से लगभग 4 हजार वर्ष पहले गॉड ने सृष्टि की रचना की होगी. आज तक ईसाइयत में 4 हजार 4 ईस्वी पूर्व सृष्टि की रचना हुई है यह तिथि मान्य है. यानि कुल लगभग 6 हजार साल इस सृष्टि को बने हुए हैं. लेकिन हमारे यहां तो केवल कलियुग जो अभी चल रहा है, इसकी आयु ही 4 लाख 32 हजार वर्ष है. और जो युगाब्द है यह 5 हजार 118 वां यह इसी कलियुग के आरम्भ हुए अभी चल रहा है. उनकी जो सृष्टि की गणना है, उसको उन्होंने केवल 6 हजार वर्ष में बांट दिया है. इसीलिये हमारे इतिहास में भी उनके कारण सारी गड़बड़ छाई हुई है. उन्होंने कहा है कि इससे पहले तो कुछ हो ही नहीं सकता क्योंकि सृष्टि ही नहीं थी. चन्द्रगुप्त मौर्य और सिकंदर के आक्रमण की निश्चित तिथि तक ही उन्होंने हमारा इतिहास समेट दिया. वह इससे पहले के भारत के इतिहास के बारे में सोच ही नहीं सकते थे. वहां शासकों ने अपनी इच्छा से वर्ष में महीने और दिन जोड़े. वहां विद्वानों में वर्ष और महीनों की कालगणना में भ्रम चलता रहा है, लेकिन हमारे यहां पूरी सृष्टि का वर्णन है.
कार्यक्रम के समापन पर अश्वनी महाजन जी ने सभी अधिकारियों व कार्यकर्ताओं का धन्यवाद देते हुए कहा कि विकास के मार्ग में समाज के सबसे अंतिम व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए अर्थनीति बनाने की बात महात्मा गांधी ने कही थी और स्वदेशी जागरण मंच भी अपने कार्यक्रमों के माध्यम से इस पर कार्य कर रहा है.