मेरठ (विसंकें). हिन्दू समाज में सामाजिक समरसता लाने के लिये विश्व हिन्दू परिषद ने देशभर में सामाजिक समरसता अभियान लिया है. मेरठ में विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा आयोजित गोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता देवजी भाई ने कहा कि सामाजिक समरसता के बिना समाज और भारत के विकास की बातें बेमानी होंगी. आज जातिवाद का जहर हमारी एकता और अखण्डता के लिए खतरा बन गया है, आज के परिपेक्ष में समरसता कहने से या भाषण देने मात्र से आने वाली नहीं, बल्कि समाज के प्रत्येक बन्धुओं को अन्त्यज, अवर्ण और पिछडे़ वर्ग के बन्धुओं को अपना भाई मानना पडे़गा.
सर्वेभवन्तु सुखिनः (सबके सुख की कामना) ईशावास्यामिदं (ईश्वर इस सृष्टि के कण-कण में समाया है) ऐसा विचार करने वाली विशाल संस्कृति दूषित कैसे हो गयी? सिर पर मैला ढोने की प्रथा हमारे समाज में पूर्वकाल में नहीं थी, सिन्धु घाटी और मोहन जोदड़ो में शौचालय नहीं मिले. ये प्रथा इस्लामिक युद्धों की देन है, इस्लामिक युद्धों में पकडे़ गए हमारे सैनिकों के सामने तीन विकल्प रखे जाते थे या तो इस्लाम कबूल करें या सिर पर मैला उठाएं या सिर कलम. जो सैनिक जिन्दा रहने का विकल्प चुनते थे, उनसे मुगल शासक अपने घर से मैला साफ कराते थे. आज हम जिन लोगों को अछूत कहते हैं वो भी हमारे क्षत्रिय भाई थे. और समय-समय पर उन्होंने अपनी देश भक्ति और वीरता के उदाहरण प्रस्तुत किये हैं. उदाहरण देते कहा कि कालू बाल्मिकी ने शिवाजी को औरंगजेब की जेल में बचाया, जीवा नाई ने शिवाजी की अफजाल युद्ध में जान बचायी. पुंजा भील ने महाराणा प्रताप की सहायता की. कीरत हरिजन ने महाराणा उदय सिंह को बचाया. भारत के इतिहास में सामाजिक समरसता के ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं. कार्यक्रम का संचालन शीलेन्द्र चौहान ने किया. इस अवसर पर ऋषि कण्डवाल, महेन्द्र सिंह, सैकड़ों की संख्या में हिन्दू समाज के लोग उपस्थित रहे.