मातृवंदना के राष्ट्र जागरण विशेषांक का विमोचन
शिमला. नववर्ष के अवसर पर मातृवंदना के राष्ट्र जागरण विशेषांक व नववर्ष कैलेण्डर का विमोचन किया गया. कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचार प्रमुख अनिल कुमार जी मुख्य वक्ता, पाञ्चजन्य के पूर्व संपादक एवं नेशनल बुक ट्रस्ट के पूर्व चेयरमैन बलदेव भाई शर्मा कार्यक्रम केअध्यक्ष, भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला के निदेशक प्रो. मकरंद परांजपे मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे.
मुख्य अतिथि प्रो. मकरन्द परांजपे ने मातृवन्दना के वितरण व प्रबंधन में लगे कार्यकर्ताओं को बधाई दी. उन्होंने कहा कि सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में भी पत्रिका पहुंचने पर सकारात्मक वातावरण बना है. उसका श्रेय मातृवन्दना को जाता है. भारत के विखंडन के रूप में पाकिस्तान के जन्म को अप्राकृतिक माना और कहा कि महर्षि अरविंद ने कहा है कि यह अप्राकृतिक है इसे एक होना ही है. उन्होंने कहा कि भारत की आंतरिक शक्ति आध्यात्मिक, सांस्कृतिक है. देश में स्वतंत्रता आंदोलन के समय क्रांतिकारी तीन राज्यों से अधिक संख्या में थे. पहला राज्य बंगाल वहां दुर्गा देवी की पूजा होती है, दूसरा पंजाब वहां सिक्ख गुरूओं ने अपने बलिदान से एक वीरता का दृश्य खड़ा किया था, तीसरा राज्य महाराष्ट्र जहां गणपति की स्तुति के कारण वहां के समाज की प्रकृति पराक्रमी रही है.
क्षेत्र प्रचार प्रमुख अनिल जी ने कहा कि हिमाचल जैसे दुर्गम व पर्वतीय भौगोलिक स्थिति वाले प्रान्त में दस हजार से अधिक स्थानों पर पत्रिका के पहुंचने को कौतुहल का विषय है. उन्होंने जागरण पत्रिकाओं में कृषि से जुड़े उपक्रमों के विषय जोड़ने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि जागरण पत्रिका में स्थानीय विषयों का समावेश भी हो तो अच्छा रहेगा. जो मेन स्ट्रीम मीडिया के लिए खबरें नहीं होती, उन्हें जागरण पत्रिकाओं में स्थान मिले तो प्रमुख समाचार बन जाते हैं. जैसे कांगड़ा की चामुण्डा मंदिर के द्वार पर शहीद सैनिकों के नाम अंकित हैं जो सेना की उस बटालियन की कुल देवी हैं और स्थान-स्थान पर माता के मंदिरों के द्वार पर यही क्रम है जो बटालियन की परंपरा को निर्देशित करता है. मेरा गांव मेरा गौरव विषय को स्थान देने का उद्धरण, गांवों की संस्कृति, परिवार की एकता, सामूहिक भोजन, कीर्तन भजन आदि विषय भी अपनी पत्रिका में स्थान प्राप्त कर सकें.
प्रो. बलदेव भाई शर्मा ने वैचारिक अधिष्ठान सुदृढ़ करने पर बल दिया. उन्होंने विभिन्न क्रांतिकारियों के जीवन का आजादी के आंदोलन व उनकी पत्रकारिता के कौशल का चित्रण प्रस्तुत किया. पेड जर्नलिजम व पत्रकारिता के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि पच्चीस वर्षों तक समाज में विचारों का प्रसार करते-करते संपूर्ण प्रदेश में एक पाठकों का समूह व सकारात्मक वातावरण बनाकर मातृवन्दना इस स्थिति में पहुंच गई है और रजत जयंती का समापन भी हो गया. इस काम के लिए मातृवन्दना संस्थान को साधुवाद. वैचारिक खोखलापन और उसके इतर व्यवहार पर उन्होंने कड़ा प्रहार किया और इसको मानसिक दिवालियापन करार दिया. पश्चिम से प्रभावित नीति नियंताओं ने समाज को भारतीयता व संस्कृति से बिल्कुल अलग कर दिया. जिसका दंश हम अभी भी झेल रहे हैं. यहीं के समाज को हिंदू आतंकवादी सिद्ध करने में कोई कमी नहीं छोड़ी. लेकिन मातृवंदना जैसी लोकप्रिय पत्रिकाओं को पढ़ने से समाज की जड़ता दूर होती है, जिससे वह व्यवस्था परिवर्तन के लिए तैयार होता है.
मातृवन्दना पत्रिका के रजत जयंती वर्ष के समापन अवसर पर लेखकों, कवियों, संपादक के नाम पत्र लेखकों, डाकवाहकों व लोकगायकों को सम्मानित किया गया. कार्यक्रम में शिमला शहर के गणमान्य लोग उपस्थित रहे.