स्वदेशी जागरण मंच की 20, 21 मई को गुवाहाटी (असम) में आयोजित राष्ट्रीय परिषद की दो दिवसीय बैठक में पारित प्रस्ताव
चीनी प्रभाव से मुक्त हो भारत –
स्वदेशी जागरण मंच बार-बार मांग करता रहा है कि चीन हमारी अर्थव्यवस्था, हमारे युवाओं के रोजगार, हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रीय अखंडता के लिए सबसे बड़ा खतरा है. वर्ष 1996-97 के बाद के पिछले 19 वर्षों में चीन से आयात 78 गुणा बढ़ चुका है और यह हमारे घरेलू विनिर्माण का लगभग 22 प्रतिशत तक पहुंच गया है. आज हम मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं बिजली के उपकरण अन्य उपभोक्ता वस्तुओं, टायरों, परियोजना वस्तुओं सहित अधिकांश औद्योगिक वस्तुओं का आयात चीन से कर रहे हैं. चीन से भारी आयात हमारी तेजी से बढ़ती युवा शक्ति के रोजगार के मार्ग में बाधा बन रहा है. प्रकृति प्रदत्त जनसांख्यिकीय लाभ चीन के आयातों के चलते बर्बाद हो रहे हैं. इन कारणों के मद्देनजर स्वदेशी जागरण मंच ने वर्ष 2017 को चीनी वस्तुओं, चीनी निवेश और चीनी कंपनियों के विरोध का वर्ष घोषित किया है, ताकि राष्ट्र को चीनी आक्रमण से बचाया जा सके. स्वदेशी जागरण मंच के कार्यकर्ता देश के कोने-कोने में जाकर लोगों को चीनी खतरों से अवगत करा रहे हैं और उन्हें चीनी वस्तुओं का बहिष्कार कर भारतीय वस्तु खरीदने की जरूरत के प्रति जागरूक कर रहे हैं, ताकि देश में रोजगार को बचाया जा सके. अभी तक एक करोड़ भारतवासियों ने अपने हस्ताक्षर कर स्वयं को चीनी और अन्य विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए संकल्पित किया है.
स्वदेशी जागरण मंच की यह राष्ट्रीय परिषद सरकार की देश में निर्मित वस्तुओं की खरीद को प्राथमिकता देने संबंधी पहल का स्वागत करती है. सामान्य वित्तीय नियम 2017 के विनियम 153 के अंतर्गत सरकार के इस प्रयास से निश्चित ही सरकारी खरीद में चीन समेत विदेशी सामान की खरीद में कमी आएगी. इससे आगे स्वदेशी जागरण मंच मांग करता है कि इस योजना का देशीय सेवाओं तक विस्तार किया जाए. यानि किसी विदेशी सलाहकार या सेवा प्रदाता की सेवायें सरकारी विभागों में न ली जाएं. इससे न केवल बहुमूल्य विदेशी मुद्रा बचेगी, बल्कि नीति निर्माण में विदेशी प्रभाव भी समाप्त होगा. केंद्र सरकार से यह भी आग्रह है कि राज्य सरकारों को भी प्रेरित किया जाए कि प्रस्तावित केंद्रीय नियमों की तर्ज पर राज्यों की भी सरकारें राज्य सरकार की खरीद में भी इसी प्रकार का नियम बनाकर स्वदेशी वस्तुओं की खरीद को प्राथमिकता दें.
इस संबंध में स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय परिषद सरकार से यह भी मांग करती है कि अमरीका के ‘बाय अमेरिकन एक्ट 1933’ की तर्ज पर ‘बॉय एण्ड हॉयर भारतीय एक्ट’ बनाया जाए, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के सभी विभागों के लिए यह अनिवार्य किया जाए कि वे केवल भारतीय वस्तुओं और सेवाओं की ही खरीद करें.
दुनिया के बाजारों और अर्थव्यवस्थाओं पर कब्जा बढ़ाने की बदनीयत से प्रेरित चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड़’ (ओबीओआर) के बारे में भारत सरकार के रुख की हम प्रशंसा करते हैं, क्योंकि चीन का यह कदम भारतीय हितों के प्रतिकूल है. चीन के समस्त विश्व को आर्थिक दृष्टि से अपने प्रभाव में लाने के संदर्भ में भारत के लिए यह जरूरी है कि वह एक मजबूत चीन विरोधी नीति बनाए. स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय परिषद सरकार से मांग करती है कि निम्न विषयों पर गंभीरता से विचार करें –
- चीन व अन्य देशों से घटिया वस्तुओं के आयातों पर प्रतिबंध लगाने हेतु मानक निश्चित किये जाएं और मानकों पर खरी न उतरने वाली वस्तुओं को आयात के लिए प्रतिबंधित किया जाए. विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुसार यह व्यवस्था उपलब्ध है और अन्य देश इसका उपयोग भी कर रहे हैं.
- ‘रीजनल कापरहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप’ (आरसेप) सहित कोई भी नया व्यापार समझौता चीन के साथ न किया जाए.
- अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि चीन द्वारा बढ़ते राजनयिक आक्रमणों के बावजूद केंद्र सरकार और राज्य सरकारें चीनी कंपनियों के साथ निवेश समझौते कर रही हैं. वे ऐसा कहने से भी नहीं चूकते कि चीनी सामान तो वे नहीं चाहते, लेकिन चीनी निवेश का स्वागत है. कुछ राज्य सरकारें तो चीनी निवेश को आकर्षित करने हेतु सम्मेलन भी आयोजित कर रही हैं. इस प्रवृत्ति को रोकने और चीनी कंपनियों के साथ निवेश समझौते रद्द करने की जरूरत है.
- हमारे उद्योगों पर चीनी कंपनियां काबिज होती जा रही हैं, कई भारतीय कंपनियां भी चीनी कंपनियों के साथ निवेश समझौते कर रही है, जिसके कारण हमारे व्यापार और उद्योग पर चीनी कंपनियां काबिज होती जा रही है. हमारे ‘स्टार्ट अप’ का भी वित्त पोषण विभिन्न चीनी कंपनियों द्वारा हो रहा है और उनका स्वामित्व भी चीनी हाथों में जा रहा है. हमें नहीं भूलना चाहिए कि अधिकांश चीनी कंपनियां चीन सरकार के नियंत्रण में है, इस स्थिति में चीनी कंपनियों पर बढ़ती निर्भरता देश की सुरक्षा, व्यापार और उद्योग को गंभीर संकट में डाल सकती है. इसलिए भारतीय कंपनियों में चीनी निवेश प्रतिबंधित करने की आवश्यकता है.
- चीनी कंपनियां निर्माण ठेके लेकर संवेदनशील क्षेत्रों, विशेष तौर पर पूर्वोत्तर राज्य, सीमावर्ती राज्यों इत्यादि में अपनी उपस्थिति बढ़ा रही हैं, जिससे देश की सुरक्षा पर खतरा बढ़ रहा है. इसलिए चीनी कंपनियों को ठेकों के टेंडर भरने के लिए प्रतिबंधित किया जाए.