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स्वामी विवेकानंद ने भारतीय धर्म, परंपरा, संस्कृति को विश्व में प्रतिष्ठित किया – एम हनुमंतराव जी

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vivekanand-jayantiनागपुर (विसंकें). विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी के अखिल भारतीय कोषाध्यक्ष एम. हनुमंतराव जी ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द भारतीय संस्कृति, परम्परा, वेदान्त, उपनिषद् और सन्यास धर्म के महान प्रतीक हैं. उन्होंने शिकागो के विश्व धर्म सम्मलेन में पाश्चात्य जगत के सामने भारत को प्रस्थापित किया. भारतीय संस्कृति, धर्म, परम्परा और इतिहास को विश्व पटल पर प्रतिष्ठित करने वाले स्वामी विवेकानन्द, वास्तव में भारत का व्यक्त स्वरूप है. स्वामी जी ने दुनिया में भारत के आत्मसम्मान, आत्मविश्वास और आत्मगौरव को बढ़ाया. हनुमंतराव जी स्वामी विवेकानन्द जयंती के अवसर पर विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी शाखा नागपुर द्वारा आयोजित एक व्याख्यान समारोह को संबोधित कर रहे थे. शिवाजी नगर नागरिक मंडल के प्रांगण में आयोजित समारोह के दौरान अन्य गणमान्यजन भी उपस्थित थे.

12 जनवरी को “जन-जन के विवेकानन्द” विषय पर समारोह को संबोधित करते हुए हनुमंतराव जी ने कहा कि स्वामी जी के जन्म से पूर्व सन 1850 के दौरान अंग्रेजों ने “इंडिया एंड इट्स इनहैबिटेंट्स (India and its Inhabitants)” नामक पुस्तक प्रकाशित की थी. पुस्तक में भारतीय इतिहास, संस्कृति, परम्परा और सभ्यता को गलत ढंग से प्रस्तुत किया गया. भारतीय संस्कृति और भारतीय जनजीवन का मजाक उड़ाया गया था और पुस्तक को भारत ही नहीं सारी दुनिया में प्रसारित किया गया. भारत के युवा विद्यार्थी भी पुस्तक को पढ़कर आत्मग्लानि का अनुभव करते थे. वहीं भारत के प्रति दुनिया का दृष्टिकोण एक गुलाम और पिछड़े हुए देश के रूप में बन गया था. ऐसी विकट परिस्थिति में वर्ष 1863 में स्वामी विवेकानन्दजी का जन्म हुआ. उन्होंने रामकृष्ण परमहंस जी से दीक्षा प्राप्त की. सम्पूर्ण भारत का भ्रमण करते हुए भारत के जनमानस की स्थिति को नजदीक से समझा. भारत भ्रमण के दौरान स्वामी जी बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं से मिले, गरीब से गरीब जन सामान्य से भेंट की. देशवासियों की गरीबी, अज्ञानता और आत्मग्लानि ने स्वामी जी को द्रवित कर दिया था. स्वामी जी ने भारत को आत्मग्लानि से उबारने के लिए 25, 26 और 27 दिसम्बर, 1892 को कन्याकुमारी स्थित समुद्र के मध्य श्रीपाद शिला पर ध्यान किया.

उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानन्द जब लोगों से मिलते तो भगवान या मोक्ष पर चर्चा नहीं करते थे, उनकी चर्चा का विषय रहता था राष्ट्र, समाज और संस्कृति. उन्होंने बताया कि स्वामी विवेकानन्द ने अपने ज्ञान, विवेक और आध्यात्मिक शक्ति से भारत के प्रति दुनिया का दृष्टिकोण ही बदल दिया. स्वामी जी के व्याख्यानों की वजह से पाश्चात्य जगत के लोग भारत को श्रद्धाभाव से देखने लगे. स्वामी जी ने भारत की संस्कृति, धर्म, ऐतिहासिक विरासतों और अध्यात्म से देश और दुनिया को परिचित कराया. इस कारण देशवासियों का आत्मगौरव बढ़ा और दुनिया भारत की महानता से परिचित हो पायी.

उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानन्द जी ने आध्यात्म को पूजा-पाठ के कर्मकांड से निकालकर उसे सेवाकार्यों की ओर मोड़ दिया. स्वामी जी ने कहा “मानव सेवा ही माधव सेवा है”. जब स्वामी जी विदेश से भारत लौटे तो भूमि पर पैर रखते ही देश की मिट्टी को सिर पर धारण किया. स्वामी जी के साथ आए 6-7 अंग्रेज भी स्वामीजी को देखकर भारत भूमि का वन्दन करने लगे. हनुमंत जी ने सूरजराव नामक सैनिक के स्वामी निश्चयानंद बनने का प्रसंग बताया. उन्होंने बताया कि स्वामीजी से प्रभावित होकर चैन्नई के समीप वनियाम्बडी के वेंकटस्वामी नायडू स्वामी जी की वेशभूषा बनाकर बीच बाजार में स्वामी विवेकानन्द का भाषण सुनाते-सुनाते किस तरह रामकृष्ण मठ के सन्यासी बन गए. उन्होंने उदाहरणों के माध्यम से बताया कि स्वामी विवेकानन्द देश के जन-मन में बसे हैं और आज भी लाखों लोग स्वामी जी से राष्ट्रकार्य की प्रेरणा पा रहे हैं.

इस दौरान कार्यक्रम के अध्यक्ष मोहन जी ने कहा कि वर्तमान पीढ़ी चुनौतियों का डटकर सामना करने में सकुचाती है. स्वामी विवेकानन्द के विचार युवाओं को संघर्ष करने की प्रेरणा देते हैं. प्रारंभ में केन्द्र कार्यकर्ता महेश गुप्ता ने पद्मश्री अरुणिमा सिन्हा के प्रेरक जीवन से अवगत कराया, वहीं सौमित्र दाभोलकर ने सुपर 30 के जनक आनंद कुमार के शिक्षा क्षेत्र में योगदान की चर्चा की. इस दौरान भरतीय संकृति परीक्षा और गीता निबंध प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कार से सम्मानित किया गया. कार्यक्रम का संचालन वैभव जोशी ने किया. कार्यक्रम की प्रस्तावना लखेश्वर चंद्रवंशी ने रखी तथा केन्द्र की नगर प्रमुख गौरी खेर ने आभार व्यक्त किया. श्रेयस नेमाडे ने गीत प्रस्तुत किया, वहीं कुमारी वेदवती ने वन्देमातरम् गाया. कार्यक्रम में राष्ट्रसेविका समिति की पूर्व प्रमुख संचालिका प्रमिलाताई मेढ़े सहित अन्य प्रमुख जन उपस्थित थे.

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