नई दिल्ली. 25 सितंबर, 2021 को चरखा म्यूजियम पार्क राजीव चौक में ‘1921 मलबार हिन्दू नरसंहार के सौ साल’ के अवसर पर मोपला रिबेलियन मार्टियर्स स्मारक समिति द्वारा प्रदर्शनी एवं श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया. केरल के मलबार में हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए बलिदान हुए बलिदानियों को याद किया गया. इस श्रद्धांजलि सभा में प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय जे. नंदकुमार जी, वरिष्ठ अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा, सांसद रमेश बिधूड़ी, राज्यसभा सांसद डॉ. विनय सहस्रबुद्धे तथा कपिल मिश्रा ने श्रद्धांजलि अर्पित की.
वरिष्ठ अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा जी ने कहा कि मार्क्सवादी इतिहासकरों ने इस वीभत्स हिन्दू नरसंहार, क्रूरता और भारतीय नारी के साथ हुए कुकृत्य और बलात्कार को, जमींदारों और अंग्रेजों के खिलाफ किसान आंदोलन के रूप में दिखाया. खलीफा आंदोलन जो सिर्फ इस्लाम और खलीफा के समर्थन में किया गया आन्दोलन था, उसे खिलाफत आंदोलन के रूप में प्रस्तुत किया गया. इतिहास के साथ यह नंगा और क्रूर व्यवहार और नहीं सहन किया जा सकता है. बहुत हुआ अब और नहीं. अगर भारत के इतिहास में घटित इस सच्चाई को 100 साल पहले ही दर्ज किया जा चुका होता तो उसके बाद की हजारों हिन्दू विरोधी हिंसा और दंगों रोका जा सकता था.
जे. नन्दकुमार जी ने एक विद्वान जार्ज संतायना के हवाले से कहा कि अगर आप अपने इतिहास को सही रूप में नहीं समझते और उसे सही परिप्रेक्ष्य में याद नहीं करते हैं तो वह इतिहास आप पर दोहरा दिया जाता है. इसलिए हमें अपने इतिहास को लेकर सावधान रहना है. उस इतिहास को दोहराने नहीं देना है. बल्कि उसे बदले बगैर चैन की सांस नहीं लेनी है. उन्होंने कहा 1921 का यह हिन्दू कत्लेआम पहला नहीं था. उस समय दंगों का एक पूरा सिलसिला चला, जिसमें लगभग 52 बड़े दंगे और 32 छोटे दंगे हुए. हिन्दुओं को पलायन करना पड़ा. उन्हें अपना घर और जमीन छोड़कर कोच्ची और त्रावणकोर की ओर पलायन करना पड़ा. उन्होंने दंगे से प्रभावित मलबार के इतिहास की सच्चाई पर प्रकाश डाला. उन्होंने आर.सी. मजूमदार जैसे इतिहासकार का ज़िक्र किया जो यह मानते थे कि इस हिंसा को समझने में कांग्रेस और गाँधी दोनों से भूल हुई. उस इतिहास को ठीक करने के लिये जे. नन्दकुमार ने केरल राज्य सरकार के समक्ष तीन मांगें रखीं –
- मोपला नरसंहार की स्मृति में संग्रहालय बनाया जाए.
- उन दंगाइयों का नाम स्वतंत्रता सेनानी की सूची से निकाला जाए.
- उन दंगाईयों को दी जाने वाली सरकारी सुविधाएं पेंशन और पद से वंचित किया जाए.
कपिल मिश्रा ने कहा कि दरअसल 100 साल पहले हिंदुओं पर किये गए अत्याचार और नरसंहार को वामपंथी मार्क्सवादी इतिहासकारों ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कहकर उसे राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ दिया था. आज उस गलती को ठीक करने का दिन आ गया है. इतिहास में की गई गलती अब और बर्दाश्त नहीं की जाएगी. हम उस इतिहास को बदलकर ही दम लेंगे. आगे की पीढ़ी वामपंथियों द्वारा लिखा गया गलत इतिहास नहीं पढ़ेगी. फ़र्जी इतिहासकारों और दंगाइयों का और महिमामंडन नहीं होगा. हम संग्रहालय या स्मारक तो बनाएँगे ही साथ ही अपनी स्मृतियों में भी उन अमर बलिदानियों को सदैव याद रखेंगे.
राज्यसभा सांसद विनय सहस्रबुद्धे ने कहा कि आज का आयोजन विस्मृत इतिहास के अध्यायों को उजागर करने का सराहनीय प्रयास है. देश को विभाजन की ओर ले जाने वाली गंगोतरी मालवा से ही प्रवाहित हो गयी थी, जिसे अवरुद्ध कर देश को सही रास्ते पर लाने की जरुरत है. यह आयोजन प्रतिशोध के लिए नहीं, बल्कि उन वीरों को याद करने और उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए है. जिन्होंने हिन्दू हित की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. हम जनतंत्र में यकीन रखते हैं. लेकिन जनतंत्र का गला घोटने वालों का साथ देना गलत है. अतीत में मार्क्सवादी इतिहास लेखकों ने षड्यंत्रवश इतिहास के जिन पन्नों को गायब कर दिया, हम उसे फिर से जोड़ेंगे.
हम पाठ्य पुस्तकों में उपेक्षित वीरों को स्थान देंगे, साथ ही मोपला के बलिदानियों को जिन्होंने प्राण दे दिए लेकिन धर्मांतरण स्वीकार नहीं किया, उनके अमूल्य योगदान को उचित स्थान दिलाएंगे. जिससे आगे आने वाली पीढ़ी उन्हें जान सके.