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राष्ट्र सेवा के 76 वर्ष – अराजकता नहीं, रचनात्मकता को बनाया कार्य का आधार

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शालिनी वर्मा

नित्य नूतन प्रेरणा ले, बढ़ रहे है कोटि चरण हैं.

नर ही नारायण हमारा, राष्ट्र को हम सब शरण हैं.

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना के 76 वर्ष पूर्ण हो गए हैं. जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना 1949 में हुई थी. उस समय लगातार लंबे समय तक गुलामी में रहने के कारण हमारे मन में स्वत्व का अभाव निर्मित हुआ. लार्ड मेकॉले का जब हम जिक्र करते हैं, तो ध्यान में आता है कि उसने भारतीयता पर, उसके स्वाभिमान पर करारी चोट करते हुए, हमें गुलाम की मानसिकता में पहुँचाने के लिए, पूरे शिक्षा-तंत्र पर प्रहार किया था. उस कारण स्वाधीनता के समय हमारे ही मन में एक बड़ी ग्लानि थी, आत्मविस्मृति थी और इसलिए उस समय के बड़े-बड़े विद्वान सामाजिक कार्यकर्ता, तत्वचिंतक, बुद्धिवादी भी यह कहते हुए सुने जाते थे कि अब हमको नवनिर्माण करना चाहिए, नया कुछ बनाकर दिखाएँगे. एक आधुनिक अच्छा प्रगतिशील देश बनाना है, तो हमको नया कुछ करना पड़ेगा.

कुछ ने तो यह भी कहा कि भारत राष्ट्र है ही नहीं. अंग्रेजों के आने के बाद ही भारत राष्ट्र बनना शुरू हुआ – सोच के स्तर पर, यहाँ तक हमारी अवस्था पहुँच गई थी. इसलिए नवनिर्माण-नवनिर्माण-नवनिर्माण का नारा जब लगाते थे, तब विद्यार्थी परिषद ने बहुत स्पष्टता के साथ कहा कि यह नवनिर्माण नहीं, पुनर्निर्माण है और राष्ट्र पुनर्निर्माण के लिए विशाल छात्रशक्ति के निर्माण का संकल्प लिया.

अब पुनर्निर्माण हमने क्यों कहा, क्योंकि जब हम नवनिर्माण की बात करते हैं, तो पुरानी सारी चीजों को समाप्त करते हुए एक नया सृजन करेंगे, नया निर्माण करेंगे, इस प्रकार का भाव प्रकट होता है. किंतु हमारा यह विश्वास था और है कि भारतीय संस्कृति में, भारतीय दर्शन में यह ताकत है कि वह आज की स्थिति में भी वर्तमान की सभी समस्याओं का समाधान दे सकता है. इसलिए हम नवनिर्माण नहीं कहेंगे, हम पुनर्निर्माण कहेंगे. ‘पुनर्निर्माण’ शब्द हमारी सांस्कृतिक विरासत, धरोहर, जो अत्यन्त संपन्न है, उससे निकलता है. भारतीय दर्शन विश्व के सम्मुख खड़ी हुई बहु-आयामी समस्याओं का सामना करने के लिए ठोस आधार प्रदान करता है, ये हमारा विश्वास था; और उसी विश्वास के चलते हम अत्यन्त दृढ़ता के साथ कहते थे कि सब कुछ नया बनाने की जरूरत नहीं है, हम पुनर्निर्माण करेंगे.

विद्यार्थी परिषद् ने स्पष्ट कहा कि चीजें सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अच्छी हैं, उन्हें डंके की चोट पर सबके सामने कहना और युगानुकूल अनुकरण करना, और उसके बारे में छात्रों के मन में या सारे समाज के मन में आत्म-सम्मान का भाव उत्पन्न करना है. फिर हमको यह सोचना होगा कि ऐसे कौन से जीवनमूल्य हैं, जिनको हमें आज भी बरकरार रखना पड़ेगा, आज के समय में भी उपयोगी और प्रासंगिक हैं, उसका ध्यान रखकर अपने प्रयास लगातार जारी रखना अपना काम है. अन्न, वस्त्र, दवाई, पढ़ाई, सभी लोगों को मिले. अब इसमें विद्यार्थी परिषद प्रत्यक्ष कुछ नहीं करेगी, किन्तु हमारी दिशा यही है. उसी प्रकार से सुरक्षा, समरसता, सम्मान और समृद्धि, चार बातें सामाजिक स्तर पर हों. फिर सुरक्षा के अंतर्गत आने वाली दिक्कतों से, फिर चाहे आतंकवाद हो, नक्सलिज्म हो या फिर बाहरी आक्रमण हो, सबसे सुरक्षा चाहिए. अब सुरक्षित समाज हो गया, लेकिन विभेदो में है, प्रांतवाद है, लिंगभेद है, जातिवाद, वर्णभेद है, तो उसका कोई मतलब नहीं, तो सुरक्षा एक प्राथमिक आवश्यकता है. उसके आगे हमको जाना पड़ेगा और समरसता की ओर जाना होगा.

सुरक्षा हो गई, समरसता हो गई, लेकिन सभी समुदाय के लोगों को सम्मान मिलना चाहिए, उसके आगे समृद्धि. यदि हम यह सब करेंगे, तो ही पुनर्निर्माण होगा. यही पुनर्निर्माण की वास्तविक दिशा है. स्थापना के समय विचार हुआ कि विद्यार्थी परिषद की एक-एक इकाई में कार्यकर्ता आधारित संगठन बनकर कार्यकर्ता को अपनी भारतीय संस्कृति, उसके गुण, उसके व्यक्तिगत गुण को इस दिशा में ले जाना ही आवश्यक है. समाज में जितने भी प्रकार के विषय आएँगे, उस विषय के समाधान हेतु हमारी परिषद यूनिट में कोई कार्यक्रम, जागरण, आंदोलन हो सकता है. जिसके माध्यम से हम राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की अनेक बातें स्थापित कर सकेंगे. और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् समरसता युक्त व्यक्ति निर्माण से पर्यावरणयुक्त जीवनशैली तक की यात्रा पर अनवरत चल रही है. विद्यार्थी वर्ग में अभाविप के कार्यक्रम, गतिविधि, अभियान, आंदोलन का जो मानक है, वह राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के बिंदुओं के आधार पर निर्धारित है. और छात्र शक्ति राष्ट्र शाक्ति है’, यह दिशाहीन समूह नहीं है. छात्र कल का नहीं, अपितु छात्र आज का नागरिक है. और इन वाक्यों ने आज हमारे युवाओं को भारत के उज्जवल भविष्य के लिए संकल्पशक्ति दी है.

भारत के गौरवशाली इतिहास से प्राप्त ज्ञान शील एवं एकता को परिषद ने अपना मूलमंत्र बनाया तथा इसी परंपरागत नींव पर राष्ट्रीय पुनर्निर्माण को अपना मुख्य जीवन उद्देश्य रखा. इसी उद्देश्य पूर्ति हेतु आवश्यक संगठन व व्यक्ति निर्माण का कार्य 76 वर्ष पूर्ण होने तक भी सतत जारी है.

अराजकता नहीं रचनात्मकता को बनाया कार्य का आधार

विद्यार्थी, शिक्षक एवं शिक्षाविदों के शैक्षिक परिवार की कल्पना की. दलगत राजनीति के प्रभाव से ऊपर उठकर व्यापक हितों के लिये संकल्पबद्ध होने का निर्णय लिया. स्वाधीनता आंदोलन की शुद्ध देशभक्ति से नाता जोड़कर वैसा ही पराक्रमी छात्र आंदोलन अपने परिश्रम से खड़ा करने का निश्चय अब तक जारी है. जिसके अनेकों परिवर्तन, परिणाम विद्यार्थी/समाज जीवन में आज दिखाई देते हैं. बांग्लादेश मुक्ति के युद्ध के समय सैनिकों की सहायता में शिविर लगाने में विद्यार्थी परिषद अग्रिम पंक्ति में रही.

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा जून 1975 में लागू आपातकाल में सभी राजनीतिक नेताओं को कारागृह में बंदी होने के पश्चात भी विद्यार्थी परिषद की अग्रणी भूमिका में छात्र आंदोलन ने ऐतिहासिक संघर्ष का उदाहरण प्रस्तुत किया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजना से चले संघर्ष से अंततः आपातकाल का अंत हुआ. इस आंदोलन ने छात्र संगठन एवं आंदोलन से छात्रों की भूमिका को प्रतिष्ठा एवं प्रासंगिकता प्रदान की. पश्चात हुए राजनीतिक परिवर्तन में जहाँ लगभग सभी छात्र संगठन दलगत राजनीति का हिस्सा बने, परिषद ने दलगत राजनीति से हटकर कार्य करने की अपनी रीति बनाए रखी. 1977 के पश्चात देशभर में विद्यार्थी परिषद को छात्रों का समर्थन प्राप्त हुआ और कई जगह छात्र संघों में विजय भी मिली. शिक्षा सभी के लिए सुलभ, भ्रष्टाचार मुक्त एवं गुणवत्तापूर्ण हो इस आग्रह को लेकर देश के हर कोने में परिषद ने आंदोलन चलाया है.

राष्ट्रीय एकात्मता को मजबूत करने में छात्रों की भूमिका को सामने रखकर पूर्वोत्तर भारत के छात्रों की देश के अन्य प्रांतों में यात्रा ‘अंतरराज्य छात्र जीवन दर्शन’ (SEIL) प्रकल्प का प्रारंभ 1966 में हुआ, यह ऐतिहासिक कदम था. इस का प्रभाव पूर्वोतर में छात्र आंदोलनों की दिशा बदलने में हुआ तथा इसने देशभर में व्याप्त जानकारियों का अभाव दूर करते हुए राष्ट्रीय एकात्मता की भावना को आधार प्रदान किया. आज विद्यार्थी परिषद के माध्यम से छात्रों की नागरिक भूमिका में नये-नये आयाम जुड़ चुके हैं.

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने सर्वस्पर्शी सर्वसमावेशी समरसतायुक्त छात्र संगठन बनाया है. जब फरवरी 2016 में जेएनयू में लगे देशविरोधी नारों का परिषद ने विरोध किया, तो कई राजनीतिक दलों के राष्ट्र‌विरोधी शक्तियों के समर्थन के बावजूद छात्र समुदाय के साथ देश भारत माता की जय के नारों से गूंज उठा. इसने यह सिद्ध कर दिया कि राष्ट्रीय छात्र आंदोलन को अब कोई देशविरोधी, अराजकवादी या संकीर्ण राजनीतिक ताकतें भ्रमित नहीं कर सकतीं. अब समय विवेकानंद से प्रेरित भारत भक्ति से ओतप्रोत राष्ट्रीय छात्र आंदोलन का है.

भारत से अब पूरी दुनिया को दिशा मिल रही है और इस अवसर पर छात्रों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है. परिवर्तन के आंदोलन का केंद्र विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय परिसर बनाकर राष्ट्र‌हित में सक्रिय करने में परिषद अपनी भूमिका सतत निभा रही है. आज संपूर्ण समाज भी राष्ट्रीय छात्र आंदोलन के संघर्ष- सृजन एवं संकल्प का दर्शन कर रहा है. हम देह लेकर आएं, का परिषद् ने ध्येय देकर जीवन को दिशा सार्थकता और दिखाई है.

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