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चीन में गौतम बुद्ध की 99 फीट की कांस्य प्रतिमा ध्वस्त, 45 धम्म चक्र भी हटाए

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नई दिल्ली. चीन की वामपंथी सरकार की तानाशाही के उदाहरण सर्वविदित हैं. अब चीन के सिचुआन प्रांत में वामपंथी सरकार की बर्बरता सामने आई है. इस क्षेत्र में स्थापित भगवान गौतम बुद्ध की 99 फीट की ‘कांस्य प्रतिमा’ को चीनी सरकार ने ध्वस्त कर दिया है.

यह प्रतिमा बौद्ध स्वावलम्बियों द्वारा वर्ष 2015 में पुनः स्थापित की गई थी. चीन के सिचुआन प्रांत के ड्रैकगो में स्थापित विशाल प्रतिमा को लगभग 6.3 करोड़ डॉलर की लागत से स्थापित किया गया था, तिब्बती लोगों ने चंदा एकत्रित कर प्रतिमा स्थापित की गई थी.

दरअसल, यह प्रतिमा वर्ष 1973 में ड्रैकगो में आए एक भयानक भूकंप में क्षतिग्रस्त हो गई थी, जिसके उपरांत इसका पुनर्निर्माण करवाया गया था. यह प्रतिमा प्राकृतिक आपदाओं में भी सुरक्षित रहेगी. लेकिन अब, चीन द्वारा ना केवल इस विशालकाय प्रतिमा को ध्वस्त कर दिया गया है, अपितु इसके साथ ही स्थापित 45 धम्म चक्रों को भी हटा दिया गया है. बताया जा रहा है कि प्रतिमा का निर्माण आवश्यक अनुमति प्राप्त करने के उपरांत ही किया गया था. इसके अतिरिक्त तिब्बती समुदाय की पहचान को परिभाषित करने वाले उनके परंपरागत ध्वजों को भी जला दिया गया है.

इससे पूर्व भी चीनी सरकार ने पिछले महीने ड्रैकगो के गादेन नामग्याल मठ के एक विद्यालय को उचित दस्तावेज न होने और भूमि उपयोग कानून का उल्लंघन करने के बेबुनियाद आधार पर ध्वस्त कर दिया गया था, इस विद्यालय को तिब्बती समुदाय द्वारा शिक्षा के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में माना जाता था और यहां पढ़ रहे बच्चों को तिब्बती एवं अंग्रेजी के साथ ही मंदारिन भाषा में भी शिक्षा दी जाती थी.

चीन की तानाशाही सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के साथ निरंतर बर्बरतापूर्ण व्यवहार किया जा रहा है. उइगर मुसलमानों को लक्षित करने के उपरांत अब तिब्बती समुदाय के लोगों को भी लक्षित करके उनका उत्पीड़न किया जा रहा है.

अभी हाल ही में कई तिब्बती मठों को लक्षित करके उनकी धार्मिक स्वतंत्रता पर पाबंदी लगाई थी. इसके अतिरिक्त तिब्बतियों पर जबरन मंदारिन भाषा थोपने का भी प्रयास किया जा रहा है.

जानकारी के अनुसार, चीनी सरकार द्वारा वर्ष 2035 तक मंदारिन भाषा बोलने वालों की संख्या को 100% तक करने का लक्ष्य रखा गया है, जिसके लिए तिब्बती भाषा को प्रतिबंधित करने का भी प्रयास किया जा रहा है.

इन सारे प्रयासों के पीछे तिब्बती समुदाय के लोगों के सांस्कृतिक एवं धार्मिक प्रतीकों को मिटाने की मंशा है. चीनी सरकार चाहती है कि तिब्बती पहचान के प्रतीकों को पूरी तरह से मिटा दिया जाए ताकि तिब्बती समुदाय के भीतर किसी भी प्रकार से तिब्बती राष्ट्रवाद की भावना ना पनप सके. इसी क्रम में गौतम बुद्ध की विशालकाय प्रतिमा को भी ध्वस्त किया गया है.

प्रतिमा को ध्वस्त किए जाने का समाचार मिलने के बाद हिमाचल प्रदेश (धर्मशाला) सहित अमेरिका स्थित तिब्बती अप्रवासियों द्वारा घटना का जमकर विरोध किया गया है, यहां रह रहे तिब्बती विस्थापितों द्वारा विरोध में नारेबाजी की गई. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि चीन की सरकार योजनाबद्ध तरीके से तिब्बती धार्मिक एवं सांस्कृतिक पहचानों को लक्षित कर नामोनिशान मिटाने का प्रयास कर रही है. इस दौरान हिमाचल के मैक्लोडगंज में चीनी बर्बरता के विरुद्ध कैंडल मार्च भी निकाला गया, जहां प्रदर्शन कर रहे लोगों ने कहा कि यह चीन द्वारा तिब्बती पहचान पर किया गया सीधा हमला है.

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