26.01.2021
गणतंत्र दिवस पर कर्णावती स्थित डॉ. हेडगेवार स्मारक समिति, गुजरात द्वारा आयोजित ध्वजारोहण कार्यक्रम में डॉ. मोहन भागवत जी, (सरसंघचालक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) का उद्बोधन
आदरणीय अमृतभाई, उपस्थित बंधु….
प्रसंगोचित कहा गया और यह प्रसंग प्रतिवर्ष आता है और प्रतिवर्ष इसे हम सम्पन्न करते हैं. तो यहां बैठे- बैठे मैं विचार कर रहा था. विचार करते समय जो पहले चरण ध्यान में आता है वह अभी-अभी घटा समरण में आता है, उसके पहले घटा बाद में स्मरण में आता है. इसलिए विचार करने लगा तो पहली बात याद आई कि भारत माता पूजन के पहले राष्ट्रगीत समाप्त करके मैं भारत माता पूजन के लिए गया. तो जब हम जन-गण मन गाते हैं तो एक बात ध्यान में आती है कि भारत भाग्य विधाता को नमन करते समय हमने अपने देश का स्मरण किया है. पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा, द्राविड़, उत्कल, बंग, विन्ध्य, हिमाचल, यमुना, गंगा… यानि देश की भूमि उसकी मर्यादा यानि सीमा और उसके अंदर जो नदी पहाड़ सब हैं. यानि भूमि का स्मरण करते हैं…तो उस भूमि पर जो नाम है जो वहां के लोगों और जगह की विशेषता को निर्देषित करते हैं. तो भूमि, जन, जंगल, जानवर ये सब आ गए. यानि इस देश के पुत्रों सहित पर्यावरण सहित, भूमि सहित सम्पूर्ण देश को हमने अपने आंखों के सामने लाया. उस देश के बारे में हमने भगवान से प्रार्थना की, कि तुम्हारे शुभ नाम से ये देश जागे. ये भारत की विषेषता है. हम भारतीय लोग आस्तिक बुद्धि के लोग हैं, कहीं-कहीं भगवन का उल्लेख होता है, इन गॉड वी ट्रस्ट ऐसा कहा जाता है. परंतु सामान्यतः उस आस्तिक बुद्धि का ही अभाव ही दिखता है. हम अपनी श्रद्धा को सुरक्षित रखते हुए उस बुद्धि के साथ अपने देश के लिए प्रार्थना करते हैं. और उस प्रार्थना में हमने जो भारत माता के स्वरूप का दर्शन किया वैचारिक दृष्टि से, बाद में हम भारत माता पूजन करते हैं तो वही अखंड स्वरूप हमको ध्यान में आता है. उसके पहले हमने ये ध्वज फहराया, तो भगवान से जिस बात के लिए आशीष मांगा है. वो बात यदि प्रत्यक्ष में आनी है तो हमको क्या करना पड़ेगा. हमने कहा तव शुभनामे जागे…तो उस जागृति का स्वरूप हम क्या समझते हैं? वैसे तो यहां हम सो नहीं रहे, सभी उठ कर ही आए हैं. तो उसका प्रत्यक्ष प्रतीक अपना ये संविधान सम्वत तिरंगा ध्वज है. उसके सबसे ऊपर भगवा रंग है जो अपने देश में परम्परागत, सर्वमान्य रंग है. जो त्याग का प्रतीक है, कर्म का प्रतीक है और प्रकाश का प्रतीक है. अग्नि के ज्वालाओं का रंग ऐसा होता है जो अग्नि सब को आत्मसात करती है. तो सब को अपनाना, त्याग, सयंम पूर्वक जीवन जीना और सतत कर्म करते हुए सर्वत्र मंगल करना, ये अपने देश का प्रयोजन है. हम जिस जागृति की बात करते हैं, उस जागृति में ये होना अपेक्षित है और ये होने के लिए भी हमको यही करना पड़ेगा. हमें अपने जीवन में त्याग-संयम को अपनाना पड़ेगा. सतत कर्मरत रहना पड़ेगा और सबको जोड़ते हुए अपने देश को बड़ा करना पड़ेगा. केवल इतना करने से नहीं होगा, दूसरा रंग बताता है कि ऐसा उनको करना पड़ेगा, जिनका शील शुद्ध, अमल, विमल है. सफेद रंग, ये पावित्र्य का रंग है. उस पावित्र्य को अपने जीवन में लाना, अपने चरित्र को सुंदर करना. क्योंकि लोगों को जो दुनिया को बताना है वो भाषण से नहीं बताना है.
एतद्देश प्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः. स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन, पृथिव्यां सर्वमानवः..
इस देश के लोग सबसे प्राचीन देश होने के नाते एक दृष्टि से दुनिया के बड़े भाई हैं. उनके जीवन को देख कर प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने चरित्र की शिक्षा ले, ऐसा जीवन खड़ा करना. ये हमारे लिए हमारे पूर्वजों का आदेश है. ऐसी पवित्रता दुनिया के जीवन में जब अपना देश जागेगा तो अपने देश में ऐसी पवित्रता अपेक्षित है. और तीसरी बात आती है – हरा रंग. ये रंग जो लक्ष्मी जी का रंग है, समृद्धि का रंग है. अब लक्ष्मी जी की उपासना जब-जब होती है, लक्ष्मी पूजन होता है दिवाली के दिन, तो पूजा में के श्रीसूक्त कहा जाता है. उसमें लक्ष्मी जी के स्वरूप का वर्णन है. वो लक्ष्मी केवल धन-लक्ष्मी नहीं है. वो लक्ष्मी केवल कृषि लक्ष्मी नहीं है. उसमें ये भी कहा है –
न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभामतिः.
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां सूक्त जापिनाम्॥
…… क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्.
अलक्ष्मी – लक्ष्मी न होना यानि देश में भूखे लोग होना. उसको निकाल देने की प्रार्थना की है. मन की प्रवृत्ति को कैसा बनाना है, ये भी उसमें बताया है. ऋण, रोग आदि दारिद्रयं पापं क्षुधा अपमृत्यु….. ये जीवन के दुःख है, ये ये तो नहीं चाहिए, लेकिन आगे कहा गया है – लोभ शोक मनस्तापा नश्यंतु मम सर्वदा….. तो हम जिस लक्ष्मी की साधना करते हैं, हम जिस परमवैभव की कल्पना करते हैं, आत्मनिर्भर भारत की कल्पना करते हैं….उसमें भौतिक समृद्धि तो होगी ही होगी, लेकिन मन की अमीरी भी होगी. त्याग से मन मस्त फकीरी धारण करते हुए, मन की अमीरी की उपासना करने वाले शुद्ध चरित्र लोग जब सतत प्रयास करेंगे, तब शुभलाम से भारत जागेगा. ये करने के लिए हम आशीष मांग रहे हैं.
आज गणतंत्र दिवस है. ये सब याद आने का कारण है. आपके सामने भाषण करना था इसलिए याद नहीं किया मैंने. लेकिन ये हमारा गणतंत्र है यानि इसको चलाने वाले हम सब लोग हैं. चलाने के लिए तंत्र है, संविधान है. उसके कारण राज्य सरकारें है, केन्द्र सरकार है. एक कानून है, परंतु चलाते कौन हैं? ये सारा लोगों की गुणवत्ता पर, लोगों के प्रयास पर, लोगों की इच्छा से चलता है. और इसलिए हमको गणराज्य दिवस पर याद करना चाहिए जो अपने देश में होना चाहिए. ऐसा हमने कहा है अपने संविधान में. संविधान की चार बातें जो कभी बदलनी नहीं चाहिए, सुप्रीम कोर्ट ने भी एक निर्णय में कहा है. वो बदली नहीं जा सकती. वो संविधान की प्रस्तावना है. वो कभी बदलती नहीं है. एक अपवाद है, दो शब्द उसमें बाद में शामिल किए गए. परंतु वह प्रस्तावना नागरिक अधिकार और उसके साथ-साथ नागरिक कर्तव्य भी है. और अपने देश को किस ओर आगे बढ़ना है, इसके लिए मागदर्शक तत्व है. आज के दिन सब लोगों ने संविधान की प्रति प्राप्त कर, उसमें से ये चार बातें पढ़नी चाहिए. क्योंकि जिधर हम देश को ले जाएंगे, उधर देश जाएगा. हम किधर देश को ले जाएंगे और उसको कैसे ले जाना है. इसका जो निश्चय उस समय के हमारे नेतृत्व ने किया था सामूहिक निश्चय, वह निश्चय उसमें लिखा है. उस निश्चय को पूर्ण करने के लिए आवश्यक गुणवत्ता और आवश्यक ध्येय का भाग हमारे ध्वजारोहण से हमारे सामने आता है. ये सारा अपना कर्तृत्व, अपनी इच्छा, आकांक्षाएं हम राष्ट्रगान के द्वारा भगवान के आशीर्वाद की याचना करते हुए सम्पूर्ण राष्ट्र के चरणों में अर्पित कर देते हैं, उसके स्वरूप का स्मरण करते हुए. प्रतिवर्ष आने वाले कार्यक्रम में हम प्रतिवर्ष झंडा वंदन करते हैं. परंतु ये करते समय क्योंकि ये आदत हो गई 75 साल की तो यंत्रवत कृति होना, आदत से होना स्वाभाविक होना है. लेकिन यंत्रवत कृति करते समय उसके पीछे का जो भाव है उस सब का स्मरण करते हुए हमें आज का दिवस मनाना चाहिए. ऐसा एक विचार मन में आया, वो आपके चिंतन के लिए आपके सामने रख दिया.
धन्यवाद