15 जनवरी, 1940 को जन्मे किशन बाबूराव (अन्ना) हजारे का नाम इन दिनों भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के लिए चर्चित है; पर मुख्यतः उनकी पहचान अपने गांव रालेगण सिन्दी (जिला अहमदनगर, महाराष्ट्र) को एक आदर्श गांव बनाने के लिए है, जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं.
घरेलू परिस्थिति के कारण अन्ना ने कक्षा सात के बाद पढ़ाई छोड़ दी. कुछ समय उन्होंने फूलों का व्यापार किया; पर उससे कुछ लाभ नहीं हुआ. फिर वे मुंबई चले गये. वहां धन तो कमाया; पर कुसंग में पड़ गये. अतः उसे भी छोड़कर वे 1960 में एक वाहन चालक के रूप में सेना में भर्ती हो गये.
सात नवम्बर, 1965 को पाकिस्तान से हो रहे युद्ध में खेमकरण सीमा पर उनकी टुकड़ी के सब साथी मारे गये; पर आश्चर्यजनक रूप से वे बच गये. उन्हें लगा कि भगवान ने उन्हें किसी विशेष उद्देश्य से ही बचाया है. स्वामी विवेकानंद की जीवनी उनके लिए प्रेरणा की स्रोत थी. अतः उन्होंने अविवाहित रहकर अपना जीवन समाज सेवा में अर्पित करने का निश्चय कर लिया.
पर ऐसा करते हुए स्वयं समाज पर बोझ न बनें, इसके लिए उन्होंने अगले दस साल सेना में ही काम किया. 1975 में 475 रु. मासिक पेंशन तथा बीस हजार रु. की जमापूंजी के साथ उन्होंने नौकरी छोड़ दी. इससे पूर्व उन्होंने अमरनाथ की यात्रा कर भोलेनाथ के सम्मुख अपने गांव को मंदिर तथा ग्रामवासियों को भगवान समझकर उनकी सेवा करने का संकल्प लिया.
उनके गांव में अकाल और अभाव के कारण निर्धनता तो थी ही, अधिकांश लोग शराब, धूम्रपान और जुए के भी आदी थे. ऐसे में भी उन्होंने धैर्य नहीं छोड़ा. सबसे पहले उन्होंने शराब की भट्टियां बंद कराईं. फिर दुकानदारों से सभी बीड़ी-सिगरेट आदि खरीद कर उनकी होली जलाई. इसके बाद उन्होंने अपनी बीस हजार की कुल पूंजी से गांव के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया. मंदिर में आरती, भजन आदि होने से गांव का वातावरण बदलने लगा.
अब श्रमदान तथा बैंक के सहयोग से तालाब तथा कुएं बनाये गये. इससे सिंचित भूमि का क्षेत्रफल 50 से बढ़कर 900 एकड़ हो गया. अतिरिक्त अन्न तथा सब्जी आदि बाजार में जाने से सबकी आर्थिक दशा सुधरने लगी. इसके बाद उन्होंने बरगद, पीपल, नीम, आम, इमली, नीलगिरि आदि के पांच लाख वृक्ष लगवाये. इससे वर्षा का स्तर एक इंच से बढ़कर नौ इंच हो गया.
1975 तक गांव में केवल कक्षा चार तक की शिक्षा का प्रबन्ध था. अन्ना ने श्रमदान से भवन बनाकर अच्छे शिक्षक नियुक्त किये. इससे विद्यालय कक्षा बारह तक हो गया तथा परीक्षा परिणाम 90 प्रतिशत तक आने लगा. विद्यालय में सब जातियों के बच्चे आयें, इसके लिए विशेष प्रयास किये गये. पुस्तकीय ज्ञान के साथ हाथ के काम सिखाने का भी प्रबन्ध किया गया.
सफाई, नये प्रकार के शौचालय, निर्धूम चूल्हे, गोबर गैस, आरोग्य केन्द्र आदि से क्रमशः सबका स्वास्थ्य सुधरने लगा. लागत मूल्य पर दवा मिलने लगी. कुछ महिलाओं ने नर्सिंग, प्रसूति व परिवार कल्याण कार्यक्रमों का प्रशिक्षण लिया. सौर ऊर्जा संयंत्रों से बिजली की समस्या हल की गयी. धान्य बैंक से गरीबों को फसल के समय बीज उधार दिया जाने लगा.
अन्ना के प्रयास से पूरा गांव एक परिवार की तरह रहता है. वहां चुनाव सर्वसम्मति से होते हैं. महिलाएं पंच, सरपंच आदि बनकर काम संभालती हैं. गांव से कुरीतियां समाप्त हो गयी हैं. अन्ना के काम को देखकर देश-विदेश की सैकड़ों निजी तथा शासकीय संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया है. असीम ऊर्जा के धनी अन्ना हजारे इन्हें अपनी सेवा-पद्धति का सम्मान मानते हैं.