पुणे (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हजारों वर्षों के हमारे गौरवशाली इतिहास की परंपरा में, कई रूपांतर हुए हैं. उन सभी विविधता का एकीकृत, संवाद और सामंजस्यपूर्ण संग्रह हिन्दू समाज है जो आज का भारत है. पांचवीं शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी की अवधि में हिन्दू समाज के गठन की प्रक्रिया पूरी हुई. यह हमारा गौरवशाली इतिहास है जो दुनिया को बताया जाना चाहिए. हमारी प्रगति के लिए इसे जानना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.
सुधा रिसबुड द्वारा लिखित और कॉन्टिनेंटल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘अजेय भारत’ (5वीं से 12वीं शताब्दी – भारतीय इतिहास का गौरवशाली काल) पुस्तक का विमोचन सरसंघचालक मोहन भागवत के करकमलों से संपन्न हुआ. समारोह की अध्यक्षता नेशनल मेरीटाइम हेरिटेज बोर्ड के महानिदेशक और वरिष्ठ पुरातत्वविद् डॉ. वसंत शिंदे ने की तथा लेखिका सुधा रिसबुड और कॉन्टिनेंटल प्रकाशन की देवयानी अभ्यंकर मंच पर उपस्थित थे. कार्यक्रम न्यू इंग्लिश स्कूल के गणेश हॉल में चयनित मेहमानों की उपस्थिति में आयोजित किया गया था.
डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि जब अंग्रेजों को इस बात का अहसास हुआ, कि भारत में स्वतंत्र सरकार की व्यवस्था को तोड़े बिना इस देश पर शासन करना आसान नहीं है तो उन्होंने हमारे गौरवशाली इतिहास को तोड़- मरोड़कर लिखना और सिखाना शुरू किया. हमारी गौरवशाली परंपरा, तथ्यात्मक साक्ष्य को दबा दिया गया. उपलब्ध सबूतों का विकृत विश्लेषण किया गया था. विद्वानों द्वारा विदेशियों की मदद से जानबूझकर विकृत किया गया. इस इतिहास को सुधारने का अवसर स्वतंत्रता के बाद मिला था, लेकिन नियोजन पूर्वक यह सुनिश्चित किया गया कि यह सुधार ना हो पाए.
हमारे यहां इतिहास प्रस्तुत करते समय पहले निष्कर्ष प्रस्तुत किया जाता है और बाद में सुविधा के साक्ष्य, संदर्भ सामने रखे जाते हैं. लेकिन जो सच है, उसे अनदेखा किया जाता है. सरसंघचालक ने कहा, कि राखीगढ़ी में हड़प्पा सभ्यता पर किए गए शोध को इसके अच्छे उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है.
अध्यक्षीय भाषण में डॉ. वसंत शिंदे ने नई पीढ़ी को इतिहास बताने के महत्व के बारे में कहा, कि सुधा रिसबुड जी ने सभी उपलब्ध संसाधनों पर शोध किया है और ‘अजेय भारत’ पुस्तक के माध्यम से एक व्यापक इतिहास प्रस्तुत किया है. भारत पर कई आक्रमणों के बावजूद, इसकी सभ्यता आज भी जीवित है. आज हमारी सभ्यता में पाई जाने वाली कई चीजें इस हड़प्पा संस्कृति की खुदाई के दौरान भी मिली थीं. कई वर्षों के शोध के बाद, यह सभी सबूतों के साथ साबित हुआ है कि अफगानिस्तान से बांग्लादेश तक हम सभी का पिछले दस हजार वर्षों से एक ही वंश है.
लेखिका सुधा रिसबुड ने कहा कि 5वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक भारत का गौरवशाली इतिहास सामने लाने की आवश्यकता थी. लेकिन किसी ने यह कहने की हिम्मत नहीं की. इस आवश्यकता को देखते हुए इस इतिहास को लिखने की कोशिश की. देवयानी अभ्यंकर ने प्रकाशक की भूमिका रखी. कार्यक्रम का संचालन सुधीर गाडे ने किया.