नई दिल्ली. श्रीराम मंदिर का निर्माण देश में एक और मंदिर का निर्माण नहीं है. श्रीराम मंदिर के निर्माण से राष्ट्र मंदिर बनेगा. श्रीराम मंदिर का निर्माण नर को नारायण से जोड़ेगा, लोक को आस्था से जोड़ेगा, स्व को संस्कार से जोड़ेगा….श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण निधि समर्पण अभियान के दौरान ऐसे अनेक अनुभव देखने को मिल रहे हैं.
किसी ने तोड़ी गुल्लक तो किसी ने दी हाड़तोड़ मेहनत की कमाई
पुणे. अभियान में बच्चों की भी उत्साहपूर्ण सहभागिता दिखाई दे रही है. पुणे की एक सोसायटी में 40-45 बालक-बालिकाएं, 30 महिलाएं और पुरूष मिलकर श्रीराम चेतना यात्रा आयोजित कर रहे थे.
सिंबॉयसिस स्कूल में पढ़ने वाली सौम्या सुबह से ही बहुत बेचैन थी. उसे अपने पिगी बॉक्स में बंद अपने पैसों की गिनती करनी थी और वो खुल ही नहीं रहा था. वह कभी अपनी मां के पास जाती तो कभी बाबा के पास. उसे किसी ने बता रखा था कि श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए सभी कुछ ना कुछ दे रहे हैं. इसलिए सौम्या भी बेचैन थी कि उसे भी कुछ देना है. लेकिन बॉक्स ना खुलने पर वह मायूस हो उठी. आखिर में मां ने ही सुझाव दिया कि किसी दुकान में इसे जाकर खुलवा ले. सौम्या को मां का सुझाव पंसद आ गया, और वह भागती हुई पास वाली दुकान में चली गई और दुकानदार से पिगी बॉक्स खुलवा लिया. घर वापिस लौटकर पिगी बॉक्स में रखे पैसे गिने तो उसकी बांछें खिल गईं, उसमें पांच हजार रुपये थे.
समर्पण अभियान के अंतर्गत कार्यकताओं ने जब संपर्क किया तो सौम्या ने वह पांच हजार रुपये समर्पित कर दिये. उसकी आंखों की खुशी देख कार्यकर्ता भी अभिभूत हो उठे.
वहीं, अन्नपूर्णा हनुमंतम लादे वयोवृद्धा भी पुण्य कार्य में पीछे नहीं रहीं. पिछले बीस वर्षों से वे मातोश्री वृद्धाश्रम में मानधन पर काम करती हैं. श्रीराम मंदिर के लिए निधि समर्पण की जानकारी जैसे ही उन्हें प्राप्त हुई, तो उन्होंने मन में ही ठान लिया कि वह अपना सहयोग अवश्य देंगी. आश्रम में जैसे ही कार्यकर्ताओं ने संपर्क किया तो उन्होंने तुरंत पचास हजार रुपये की निधि उन्हें सौंप दी. बीस साल से वृद्धाश्रम में मानधन पर काम करके एक-एक पैसा संचय करने वाली अन्नपूर्णा ने जब निधि कार्यकर्ताओं को सौंपी तो उनकी आंखों से संतुष्टि का भाव झलक रहा था.
राम मंदिर पुनः निर्माण के लिए दी एक महीने की पेंशन
महाड़, कोकण. रायगढ़ के महाड़ में काकरतले निवासी स्वर्गीय मोरेश्वर और उनकी धर्मपत्नी माई रहालकर के परिवार में आज भी समाज सेवा को सर्वोपरि माना जाता है. स्वर्गीय मोरेश्वर रहालकर किसी जमाने में अदरक से बनी मिठाई बेचा करते थे और उससे मिलने वाले पैसों में से कुछ पैसे बचाकर रखते थे. इन बचे हुए पैसों को वह समाजिक कार्यों पर खर्च करते थे. मोरेश्वर रहालकर के गुजर जाने के बाद उनकी पत्नी माई रहालकर ने भी इस परंपरा को कायम रखा. घर के आर्थिक हालात अत्यंत कठिन होने के बावजूद भी संभाल कर रखा पैसा समाज सेवा के लिए खर्च करना यह इस परिवार का नियम ही बन गया है. इसी भावना का निर्वाह अब उनके बेटे कर रहे हैं.
श्रीराम मंदिर निधि समर्पण अभियान के कार्यकर्ता जब उनके घर गए तो अप्पा जी ने तुरंत ग्यारह हजार रुपये मंदिर निर्माण के लिए अर्पित कर दिए. वहां से कार्यकर्ता उनके भाई अजित रहालकर के घर गए. इस दौरान रहालकर भाइयों ने श्रीराम मंदिर अभियान, कारसेवा आदि की यादों को साझा किया.
कार्यकर्ताओं से अभी बातें चल ही रहीं थी कि अजित रहालकर की पत्नी आशा जी बाहर आईं तो अजित जी ने उनसे पूछा, यह लोग श्रीराम मंदिर के लिए समर्पण निधि के निमित्त आए हैं. तुम्हारा क्या मत है? इस पर आशा जी ने बीना कोई पल गंवाए कहा – इसमें क्या सोचना है? एक महीने की पूरी पेंशन राम कार्य के लिए देनी चाहिए. बाबा और आई होते तो यही करते. इतना सुनते ही अजित रहालकर उठे और 25 हजार का धनादेश कार्यकर्ताओं को सौंप दिया. सेवानिवृति के बाद पैसे का अन्य कोई स्रोत न होते हुए भी अपने माता-पिता की परंपरा को रहालकर परिवार में आज भी कायम रखा है.
निधि संकलन की रसीद नहीं है यह मेरा अभिमान है
पेण. रायगढ़ जिले के पेण के वनवासी बाडी में वनवासी बंधु भी निधि समर्पित करने में पीछे नहीं रहे. बंधुओं एवं भगिनियों ने निधि संकलन कार्यालय में आकर भगवान राम की प्रतिमा का पूजन किया और निधि समर्पित की. वहीं कार्यकर्ता जब निधि संकलन के लिए जा रहे थे तो एक सब्जी वाले ने भी अपना योगदान दिया.
अभी कार्यकर्ता निकल ही रहे थे कि एक महिला ने उन्हें पुकारा. कार्यकर्ता रुक गए तो महिला पास आकर बोली – मेरा अनेकों वर्षों का सपना पूरा होने जा रहा है तो मुझे भी अपना योगदान देना है.
कार्यकर्ताओं को समर्पण निधि सौंपने के बाद उन्होंने प्रफुल्लित होकर कहा – आप नहीं जानते, आज मैं कितनी खुश हूँ. घर जाकर मैं यह रसीद संभाल कर रखूंगी. यह रसीद नहीं मेरा अभिमान है. अपने बच्चों और पोते-पोतियों को बताउंगी. अनेकों वर्षों तक अपनी अस्मिता के लिए किए संघर्ष के विजय का यह अभियान है. इतना कहकर महिला ने जय श्रीराम का उद्घोष किया और अपने पथ पर आगे बढ़ गई.
परदेशी दादी ने कारसेवा में मिली ईंट संभालकर रखी
पुणे. हडपसर में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण निधि समर्पण अभयान कार्यालय का उद्घाटन हुआ. परदेशी नाम की एक वयोवृद्ध महिला ने कार्यालय में सबसे पहले निधि समर्पित की. परदेशी दादी 1992 की कारसेवा में अपने बेटे के साथ शामिल हुई थीं.
शिला पूजन रथयात्रा हडपसर में आई थी. तब रथ का पूजन एवं स्वागत करने वाली महिलाओं में हडपसर की मेहेंदळे दादी और परदेशी दादी भी शामिल थीं. परदेशी दादी ने उस समय एक ईंट स्मरण के लिये और अगली पीढ़ी को सीख देने के लिये रख ली थी. उन्होंने कहा कि अपनी संस्कृति की धरोहर का रक्षण नहीं किया तो परकीय आक्रांता आकर यहां पर अपना हक जमाने लगते हैं, ये अगली पीढ़ी याद रखे और संस्कृति का रक्षण करने के लिए संगठित हो.