नई दिल्ली. जनजाति अस्मिता के नायक भगवान बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवम्बर को जनजाति गौरव दिवस के रूप में मनाने का निर्णय केंद्र सरकार ने लिया है. अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम सरकार के निर्णय का स्वागत करता है.
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति समाज का बहुमूल्य योगदान रहा है. सैकड़ों जनजाति क्रांतिकारियों ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है. भगवान बिरसा मुंडा उन्हीं क्रांतिकारियों के अग्रणी रहे हैं. जल, जमीन, और जंगल रक्षा और अपनी धर्म संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष करने वाले बिरसा मुंडा को जनजाति अस्मिता का नायक माना गया है, इसीलिए उनके जीवनकाल से ही झारखंड के लोग उन्हें “धरती का आबा – भगवान” कहते थे.
वनवासी कल्याण आश्रम के अध्यक्ष रामचंद्र खराडी, और महामंत्री योगेश बापट ने कहा कि आजादी की लड़ाई में जनजाति समाज के गौरवशाली योगदान को याद करने के लिए भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिवस को जनजाति समाज और कल्याण आश्रम जनजाति गौरव दिवस के रूप में कई वर्षों से मनाता आ रहा है. इसके माध्यम से जनजाति समाज अपनी अस्मिता, स्वाभिमान और पहचान खोज रहा था. ऐसे में केंद्र सरकार के इस निर्णय से उसे मान्यता मिल गई है. वनवासी कल्याण आश्रम और सम्पूर्ण जनजाति समाज केंद्र सरकार के इस निर्णय का हार्दिक स्वागत करता है.
बिरसा मुंडा तो जनजाति अस्मिता के प्रतीक थे ही, लेकिन उन्होंने केवल जनजाति समाज के लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था. सरकार का यह निर्णय न केवल बिरसा मुंडा, बल्कि सिदो-कानो, तिलका मांझी, टांट्या भील, राघोजी भांगरे, तलक्कल चंदू, वीर रघुनाथ मंडलोई, उ तीरथ सिंह और रानी गाईदिन्ल्यू, जैसे जनजाति स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को भी मान्यता देता है.
इस वर्ष देश जब आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तो इस घोषणा का महत्व और भी बढ़ जाता है. अतः भगवान बिरसा मुंडा और अन्य बलिदानियों को याद करते हुए न केवल जनजाति समाज, बल्कि सम्पूर्ण देश 15 नवम्बर का दिन जनजाति गौरव दिवस के रूप में धूमधाम से मनाए, सम्पूर्ण समाज का हम यही आवाहन करते हैं.