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सेवा, त्याग, समर्पण व बलिदान का दूसरा नाम है घुमन्तू – महेन्द्र सिंह

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जयपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से राजस्थान में घुमंतू जातियों के बच्चों की बेहतर शिक्षा व जीवन स्तर के लिए कार्य करने वाले घुमंतू जाति उत्थान न्यास का जयपुर प्रान्त का दो दिवसीय अभ्यास वर्ग गंगापुर सिटी में सम्पन्न हुआ.

अभ्यास वर्ग में दो प्रांतों के घुमंतू कार्य प्रमुख महेंद्र सिंह ने कहा कि घुमन्तू जाति उत्थान न्यास द्वारा पूरे राजस्थान में 8 छात्रावास संचालित हैं. जिनमें घुमंतू समाज के सभी आयु वर्ग के कुल 176 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं. राजस्थान में कुल 32 जातियाँ घुमंतू, अर्धघुमन्तू या विमुक्त समाज के रूप में सूचीबद्ध हैं, जिनमें मुख्यरूप से गाड़िया लुहार, सिकलीगर, बंजारा, रैबारी, कंजर, बावरी, सांसी, जोगी, सींगीकाढ़ा, सपेरे, नट आदि मुख्य हैं. इन समाजों का बड़ा वर्ग घुमक्कड़ व बेघर होता है जो समूह में छोटे अंतराल के बाद अपना स्थान बदलता रहता है. इन जातियों के पास पूर्वजों से मिला अनुभवजन्य अथाह ज्ञान है तथा ये किसी न किसी कला या हाथ की कारीगरी में सिद्धहस्त होती हैं. इन देशभक्त जातियों के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में किये संघर्ष को दबाने व हिन्दू समाज की मुख्य धारा से काटने के लिए अंग्रेजों ने आपराधिक जनजाति अधिनियम 1871 द्वारा इन जातियों के एक बड़े भाग को आदतन अपराधी घोषित कर दिया, इस कानून को स्वाधीनता के बाद 1952 में समाप्त किया गया. इस समाज का अधिकांश भाग आज भी शिक्षा से कोसों दूर है व रोटी, कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी आवश्यकताओं के लिए संघर्ष कर रहा है.

कार्यक्रम में राजस्थान क्षेत्र के सामाजिक समरसता कार्य प्रमुख तुलसी नारायण ने कहा कि घुमंतू समाज देशभक्त व स्वाभिमानी है. आज जब देश स्वराज का 75वां अमृत महोत्सव मना रहा है, तब देश में ऐसा समाज भी है जो बुनियादी आवश्यकताओं व दो समय के भोजन के लिए भी संघर्ष कर रहा है. यह समाज भी इसी देश का लाडला बेटा है. जब देश आगे बढ़ेगा तो इस समाज को कैसे पीछे छोड़ा जा सकता है. यह समाज भी सशक्त, शिक्षित बने, राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे, ऐसा प्रयास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 35 वर्षों से कर रहा है. घुमन्तू जातियों के बंधु भी समाज की मुख्य धारा से जुड़ें, इसके लिए हम सब को प्रयास करना चाहिए. इस अवसर पर न्यास के सभी पदाधिकारी उपस्थित रहे.

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