नई दिल्ली. भारतीय शोधकर्ताओं द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि छह महीने तक किया गया ध्यान हल्की संज्ञानात्मक हानि (एमसीआई) अथवा हल्के स्मृति ह्रास (अल्जाइमर) रोग वाले रोगियों के मष्तिष्क में ग्रे मैटर (बुद्धिमत्ता वाले धूसर द्रव्य) की मात्रा को बढ़ा सकता है. इसलिए, ऐसे रोगियों द्वारा ध्यान करने से मस्तिष्क पर सुरक्षात्मक प्रभाव पड़ता है.
एमसीआई वाले व्यक्ति अक्सर भुलक्कड़ होते हैं, लेकिन वे स्वतंत्र जीवन जी सकते हैं. हालांकि, ऐसे व्यक्तियों में स्मृति ह्रास (अल्जाइमर) रोग विकसित होने का अधिक खतरा होता है. एक बार होने के बाद अल्जाइमर रोग बढ़ता ही है, फिर ठीक कम ही होता है. यह वैश्विक स्वास्थ्य समस्या है, जिसका व्यापक सामाजिक आर्थिक प्रभाव पड़ता है. फिर भी, एक निषेधात्मक रूप से महंगी दवा को छोड़कर, जिसका अभी भी नैदानिक लाभ के लिए मूल्यांकन किया जा रहा है, कोई भी दवा इस रोग की प्रगति को बढ़ने से रोक नहीं सकती है और न ही एमसीआई के चरण से इसके रूपांतरण को रोक या विलंबित कर सकती है.
भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा सत्यम (एसएटीवाईएम) कार्यक्रम के तहत समर्थित एक शोध में अपोलो मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल, कोलकाता में तंत्रिका विज्ञान (न्यूरोलॉजी) विभाग के प्रमुख और निदेशक डॉ. अमिताभ घोष के नेतृत्व में (पूर्व में अपोलो ग्लेनीगल्स अस्पताल) भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) हैदराबाद में संज्ञानात्मक विज्ञान प्रयोगशाला (कॉग्निटिव साइंस लैब) के डॉ. एस बापी राजू और अन्य के साथ मिलकर शोध में यह दिखाया है कि एक सरल, सस्ती और पालन करने में आसान, ध्यान दिनचर्या को जब कई महीनों तक दैनिक अभ्यास के रूप में अपनाया जाता है, तो (एमसीआई) और यहां तक कि हल्के अल्जाइमर रोग में भी लाभ मिलता है. यह शोध कार्य ‘फ्रंटियर्स इन ह्यूमन न्यूरोसाइंस’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है.
शोधकर्ताओं ने हल्की संज्ञानात्मक हानि (एमसीआई) या हल्के अल्जाइमर रोग वाले रोगियों को ध्यान या नियंत्रण समूहों में विभक्त किया. इस प्रकार बनाए गए ध्यान समूहों ने 6 महीने तक प्रतिदिन 30 मिनट बैठकर मौन रहते हुए ध्यान का अभ्यास किया. उन्होंने बेसलाइन पर और 6 महीने के बाद सभी रोगियों की एमआरआई स्कैनिंग की, साथ ही सभी रोगियों का तंत्रिका मनोवैज्ञानिक (न्यूरोसाइकोलॉजिकल) मूल्यांकन भी हुआ. बाएं हिप्पोकैम्पस (स्मृति) और दाएं थैलेमस ने भी बुद्धिमत्ता वाले धूसर द्रव्य (ग्रे मैटर) की मात्रा में वृद्धि दिखाई. शोधकर्ताओं की टीम ने ध्यान कर रहे लोगों में पहले की तुलना में बेहतर ध्यान केन्द्रित कर सकने की ओर रुझान पाया.
शोधकर्ताओं के अनुसार, एमसीआई और अल्जाइमर रोग में ध्यान अनुसंधान अभी भी शैशवावस्था के स्तर पर है. इससे पहले के शोधकर्ताओं ने ध्यान को शारीरिक मुद्राओं, मंत्रों, क्रियाओं या अन्य मष्तिष्क उपयोग प्रथाओं के साथ जोड़ा. घर में ध्यान अभ्यास आमतौर पर 8-12 सप्ताह तक चलता है. जिन अध्ययनों में यह अधिक समय तक बढ़ा, उनमें मस्तिष्क परिवर्तन शामिल नहीं थे. यह तकनीक सामान्य रूप से नियमित ध्यान करने वालों द्वारा अभ्यास की जाने वाली तकनीकों के समान है.
डॉ. अमिताभ घोष ने इस पूरी प्रक्रिया को विश्लेषित करते हुए बताया है कि “हमारी जाग्रत अवस्था का अधिकांश भाग अक्सर मन को भटकाने में व्यतीत होता है. अत्यधिक मन का भटकना, खासकर जब लगातार मन नकारात्मक विचारों से भरा हुआ हो तो वह मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाता है, जिससे व्यक्ति जल्दी बूढ़ा हो जाता है या अल्जाइमर से ग्रसित हो जाता है. ऐसे में ध्यान प्रकट होने वाले विचारों के बारे में गैर-निर्णयात्मक और गैर-प्रतिक्रियाशील जागरूकता सिखाता है और इच्छित लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में सुधार करता है. ऐसा करने से, ध्यान मस्तिष्क नेटवर्क के एक समूह को सक्रिय करता है जो ध्यान और लक्ष्य-निर्देशित व्यवहार को बढ़ाने के लिए समन्वय करता है, और मन भटकने और भावनात्मक प्रतिक्रिया को कम करता है”.
यह शोध बताता है कि ध्यान अभ्यास पर प्रतिदिन थोड़ा समय बिताना स्मृति हानि वाले रोगियों में सुरक्षात्मक हो सकता है. यह संभव है कि जितनी जल्दी ध्यान का अभ्यास शुरू किया जाए, परिणाम उतने ही बेहतर होंगे. टीम की योजना इस पर अधिक प्रतिभागियों की संख्या और अध्ययन की लंबी अवधि के साथ अनुवर्ती शोध की है.