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आत्मविलोपी व्यक्तित्व का परलोकगमन

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राम सहस्त्रभोजनी उपाख्य बबनराव नहीं रहे….सुबह लगभग दस बजे फेसबुक पर यह पोस्ट दिखी.

यह पोस्ट पढ़कर अचानक सर्वांग सुन्न हो गया.

अभी दो माह पहले बालूजी मोतलग जी का देहांत होने पर उनके अंतिम दर्शन करने गया था तो संघ कार्यालय में बबनराव जी से भेंट हुई थी. काफी बातें भी हुई थीं उनसे. एकदम स्वस्थ थे वे. ऐसी कुछ अनहोनी होगी, यह तो सपने में भी नहीं आया था.

वैसे बबनराव जी का मेरा पहला परिचय असम के गुवाहाटी में तब  हुआ था, जब मैं अभाविप का काम करने असम के नौगांव में था. उस समय उनका क्या दायित्व था. यह मुझे स्मरण नहीं पर जब भी उनसे भेंट होती थी, वे कहते थे, “अमुक-अमुक जगह जा रहा हूं. चलोगे?”

नहीं, कहने की कोई बात ही नहीं थी.

उनके साथ में रहना मतलब असमिया संस्कृति व उसके अंतर्प्रवाह समझना ही होता था. राम सहस्त्रभोजनी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आजीवन प्रचारक थे.

बचपन में ही माता पिता गुजर गए, तो मामा जी (ठोमरे) के घर रहकर अपनी शालेय पढ़ाई पूर्ण की.

मैट्रिक में वे मेरिट में आये थे. तत्पश्चात पॉलिटेक्निक में प्रवेश लिया. पर मामा जी की ट्रांसफरेबल जॉब के कारण आगे पढ़ नहीं पाए.

इसी दरम्यान उनकी बिलासपुर मे इरिगेशन डिपार्टमेंट में नौकरी लगी. वहां संघ कार्य संभालते हुए उन्होंने नौकरी की. उन्हें अंग्रेजी बहुत ही अच्छी बोलनी आती थी. इसी आधार पर उन्हें नागपुर में रिजर्व बैंक में नौकरी लगी. वे बैंक की कबड्डी टीम के कप्तान थे तथा कबड्डी के नेशनल प्लेयर रहे.

रिजर्व बैंक में वे यूनियन का काम जोर-शोर से करते थे. एकबार कम्युनिस्टों से उनका काफी गंभीर टकराव होने के कारण उन्होंने नौकरी से त्याग पत्र दिया. उस समय बाबासाहब आपटे तथा पांडुरंगपंत क्षीरसागर जी के संपर्क मे थे. नौकरी से त्याग पत्र देने के पश्चात प्रचारक निकले. राम सहस्त्रभोजनी जी को पहले बंगाल में मुर्शिदाबाद भेजा गया. उसके बाद वे बिहार में गए. उसके बाद उन्हें त्रिपुरा भेजा गया. इन सभी जगह उनका कम्युनिस्टों से टकराव होता ही रहा.

बाद में असम में उन्हें विश्व हिन्दू परिषद का दायित्व दिया गया.

कुछ समय वे छत्तीसगढ़ के रायपुर में भी थे, जहां उन्होंने युगधर्म वृत्त पत्र के प्रसार का कार्य किया.

वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह शारीरिक प्रमुख भी रहे.

आयुर्वेद का उनका काफी गहरा अध्ययन था. बहुत सी आयुर्वेद दवाएं कैसी और किस ऋतु में बनाते हैं? इसका उन्हें प्रत्यक्ष ज्ञान था.

सन् २००९ में गोकर्ण पीठ से निकली “विश्व मंगल गौ ग्राम यात्रा” के संयोजकों में से एक थे तथा यात्रा में पूर्ण समय रहकर उन्होंने लगभग चार माह में पूर्ण भारत प्रवास किया था. सतत प्रवास के कारण उन्हे बाएं पैर का दर्द रहता था तथा एक बार गाड़ी पर से गिरने के कारण उन्हें कमर दर्द भी था. फिर भी वे प्रवास करते ही थे. २०१० के बाद से लगभग नागपुर में ही रहे थे. पर, मात्र दोपहर १२ से ३ वे अपने कक्ष में मिलते थे. बाकी समय कुछ न कुछ ज्ञान अर्जित करने हेतु कभी राम नगर के योगाभ्यासी मंडल में जाते थे तो कभी किसी वैद्य के साथ बैठकर आयुर्वेद के ज्ञान का चिंतन करते थे. कभी-कभी तो विख्यात जड़ी-बूटी वाले अबुमियां जी की दुकान पर भी मिल जाते थे. आंवला व उसे खाने से शरीर पर प्रभावों के विषय पर घंटों बोलते थे. आयुर्वेद की बहुत सी मासिक पत्रिकाएं उनके कक्ष में नित्य दिखती थीं.

मुझे खुद को आयुर्वेद व होमियोपेथी का लगाव है, यह उन्हें पता था. इस कारण वे कुछ नए पढ़े फार्म्युलेशन के बारे में मुझे फोन करके भी बताते थे. एक बार मैने मालिश तेल बनाया था तो उसमें उन्होंने बेर के पत्तों को डालने का आग्रह किया था. वे उनके ममेरे भाई श्री श्याम जी ठोमरे के घर आने पर हमारी अयोध्या नगर शाखा में जरूर आते थे तथा हमारे घर पर भी आते थे.

शरीर से सुदृढ़, हमेशा सफेद धोती कुर्ते में रहने वाले बबनराव जी ज्ञान अर्जित करने की लालसा का मूर्तिमंत रूप थे.

जीवन जीने की इतनी कलाएं उनमें थीं कि वे एक भी किसी में उतनी मात्रा में रहने पर वह खुद को सफल मानता. पर, बबनराव जी खुद के बारें में कभी विशेष बात नहीं करते थे. सबके साथ में आत्मविलोपी बनकर सब में घुलमिल जाते थे. किसी के घर में उस घर के सदस्य ही बन जाते थे. नागपुर में हो रहे किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम में लगभग मिलते ही रहते थे.

“अलौकिक न व्हावे जना प्रति” इस समर्थ रामदास स्वामी जी के वचन का उन्होंने जीवनपर्यंत निर्वहन किया.

समाज जीवन में घुलकर समाज को दिशा देनेवा ले इस अलौकिक व्यक्तित्व को मैं श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं.

ॐ शांतिः! शांतिः! शांतिः!

किशोर पौनीकर, नागपुर

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