अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के पश्चात मंदिर परिसर में ही प्रसाद वितरित किया जाएगा, ये प्रसाद 15 दिन तक खराब नहीं होगा. श्रीराम लला विराजमान के मंदिर में दर्शन करने के लिए देशभर से भक्त आएंगे. इसे ध्यान में रखते हुए प्रसाद की गुणवत्ता ऐसी रखी जाएगी ताकि प्रसाद 15 दिन तक खराब न हो.
प्रसाद में लड्डू अथवा पेड़े को रखा जा सकता है. श्रद्धालुओं को प्रसाद चढ़ाने की अनुमति नहीं दी जाएगी. चंपत राय ने बताया कि सदस्यों के बीच चर्चा हुई है कि अगर श्रद्धालुओं को प्रसाद चढ़ाने की छूट दी गई तो लाखों की भीड़ को दर्शन करने में बहुत ज्यादा समय लग जाएगा, इसलिए प्रसाद मंदिर परिसर में ही उपलब्ध कराया जाएगा.
श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण समिति की बैठक (कुछ दिन पहले संपन्न) में अयोध्या रेलवे स्टेशन का निर्माण कर रही राइट्स कंपनी के अधिकारी भी शामिल हुए. उन्होंने मंदिर के पूरे प्लान का प्रजेंटेशन देखा और मंदिर के इलाके में भीड़ कैसे पहुंचे, उसका भी आंकलन किया. राइट्स के अधिकारियों ने मंदिर क्षेत्र से सटे उन क्षेत्रों के बारे में भी जानकारी ली, जहां तक रेलवे स्टेशन के विस्तार का प्लान है. बैठक में मंदिर के परकोटा, कुबेर टीला, यात्री सुविधा केंद्र व प्रसाद वितरण पर चर्चा हुई. राइट्स की टीम अब मंदिर के प्रॉजेक्ट व इसके भावी प्लान व जरूरतों को ध्यान में रख कर 6 माह के अंदर राम मंदिर में भीड़ के नियंत्रण का प्लान बनाएगी. बैठक की अध्यक्षता निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र ने की.
बैठक में जनवरी 2024 में मकर संक्रांति पर रामलला को मंदिर में विराजमान करने के साथ दर्शन की व्यवस्था कैसी होगी, इस पर प्रमुखता से चर्चा की गई. उस दिन लाखों श्रद्धालुओं के अयोध्या पहुंचने का अनुमान है. इस पर राइट्स कंपनी के अफसरों से चर्चा हुई है. वे भीड़ के नियंत्रण का प्लान देंगे.
मंदिर परिसर का लैंडस्केप
मंदिर में हरियाली व अन्य भवनों की लैंड स्केपिंग पर चर्चा हुई. इसके अलावा रामजन्मभूमि परिसर में स्थित कुबेर टीला के विकास, लैंड स्केपिंग, प्राचीन मंदिर के संरक्षण व जीर्णोद्धार और सुंदरीकरण की योजना पर काम शुरू कर दिया गया है. मंदिर के परकोटा का निर्माण जल्द शुरू होने जा रहा है. मुख्य मंदिर के परिक्रमा मार्ग की डिजाइनिंग व इसके किनारे रामायण के प्रसंगों के भित्तिचित्रों के निर्माण पर विशेषज्ञों से चर्चा हुई है.
मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि महाराष्ट्र की टीक लकड़ी से मंदिर के दरवाजे व खिड़कियों का निर्माण किया जा रहा है. इसकी कटिंग करके सुखाने का काम यांत्रिकी से किया जा रहा है. यह लकड़ी सबसे बेहतर मानी जाती है.