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बत्रा जी ने सक्रियता, श्रद्धा, निष्ठा, समर्पण के साथ कार्य किया – डॉ. कृष्ण गोपाल जी

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नई दिल्ली. शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अतुल कोठारी ने कहा कि आदरणीय बत्रा जी के संपूर्ण जीवन में शिक्षा के अलावा कुछ नहीं था. उनका हर पल, हर क्षण, हर कण शिक्षा से जुड़ा हुआ था. उन्होंने जीवन में अपने लिए कुछ नहीं माँगा, ना स्वयं के लिये कुछ किया. संघर्षशील व्यक्तित्व था, निर्भय थे. 85 की आयु तक वो कोर्ट में जाकर केस लड़ते रहे.

अतुल कोठारी ने दीनानाथ बत्रा जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए दिल्ली में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में संबोधित किया. उन्होंने कहा कि उनकी कथनी और करनी में बिलकुल अंतर नहीं था, वह अच्छी अंग्रेज़ी बोल लेते थे. लेकिन जब से संगठन ने मातृभाषा पर कार्य करना प्रारंभ किया, तब से उन्होंने अंग्रेज़ी में भाषण देना छोड़ दिया. जब मैंने संगठन का कार्य संभाला तो उन्होंने मुझे केवल एक बार एक वाक्य कहा कि अपनी लकीर लंबी करो, जो मेरे जीवन का मंत्र बन गया.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने माननीय बत्रा जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि यहाँ जो भी बातें कही गई हैं, वह केवल समुद्र में तैरते हुए बर्फ के शिलाखंड की तरह हैं. जिसका केवल 8-9% हिस्सा ही बाहर दिखता है, जिसका बड़ा हिस्सा समुद्र के अंदर ही होता है. यहाँ कही गई बातें इसी प्रकार है. उनका बहुत बड़ा व्यक्तित्व था और बड़े लंबे समय तक उन्होंने सक्रियता के साथ, श्रद्धा के साथ, निष्ठा के साथ, समर्पण के साथ कार्य किया. हिन्दू धर्म में कहते हैं कि मैं और मेरा अज्ञानता है, प्रभु तेरा और तुम्हारा ही ज्ञान है. ये सुनने में तो छोटा है, लेकिन इसको जिया कैसे जाता है तो इसके लिए बत्रा जी को देखना पड़ेगा. ऐसे चरित्र देखते हैं, ऐसे व्यक्तित्व देखते हैं तो यह सिद्धांत समझ में आता है.

बत्रा जी के सुपुत्र डॉ. दिनेश बत्रा ने कहा कि पिताजी 1947 में विभाजन के समय 17 वर्ष की आयु के थे, उन्होंने वह सारे दृश्य प्रत्यक्ष देखे थे जो हमने सुने हैं. विभाजन के समय उन्होंने परिवार को सकुशल भारत छोड़ा और स्वयं के हाथों में मुस्लिम नाम लिख कर वापस अन्य लोगों को सुरक्षित भारत लाने के लिए पाकिस्तान चले गए. पिताजी के जीवन से अनुशासन हर क्षण झलकता था. वे विद्यालय के वार्षिक उत्सव का यदि समय हो जाए तो बिना अतिथि के आये भी कार्यक्रम शुरू कर दिया करते थे. अपने विद्यालय और बच्चों की शिक्षा के प्रति उनका समर्पण इतना था कि हमारा घर विद्यालय के दफ़्तर के समान ही था. 24 घंटे उसके दरवाज़े सभी के लिए खुले रहते थे. यदि विद्यालय का रसोइया किसी कारण वश छुट्टी लेकर चला जाए तो मैंने स्वयं ने उन्हें अपने हाथों से रोटियाँ बेलते हुए देखा है. संपूर्ण समाज को उन्होंने अपना परिवार माना, वे जब भी कुरुक्षेत्र के बाज़ार में निकलते तो एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं होता था जो उन्हें झुक कर प्रणाम ना करता हो.

डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि बत्रा जी का व्यक्तित्व इतना ऊँचा था कि वह केवल शिक्षाविद् नहीं थे, मैं उन्हें भारत का सर्वश्रेष्ठ शिक्षाविद् मानता हूँ. उनका नॉलेज, शिक्षा पर उनका गहराई से अध्ययन और वास्तव में शिक्षा के माध्यम से देशभक्त, संस्कारित, श्रेष्ठ, अच्छे इंसान बन सकते हैं, इसका मार्गदर्शन यदि कोई दे सकता तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि वो केवल बत्रा जी थे. डॉ. रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि शिक्षा के लिए बोलने व लिखने वाले बहुत लोग हैं, लेकिन उसके लिये संघर्ष करना और किसी सीमा तक जाने के लिए इच्छाशक्ति चाहिए और वह बत्रा जी में बहुत थी. मैं ऐसे महान योद्धा को प्रणाम करता हूँ.

न्यास के पर्यावरण शिक्षा के राष्ट्रीय संयोजक संजय स्वामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी, आदि के शोक संदेश का वाचन किया. बत्रा जी की पुत्रवधू वंदना बत्रा ने उनके व्यक्तित्व पर लिखी कविता का पाठ किया.

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