पटना. कोरोना संकट के दौरान लॉकडाउन में हजारों कुशल तथा अर्धकुशल कामगार वापिस अपने घर लौटे. परिस्थिति में कुछ सुधार होने पर कुछ वापिस अपने काम पर लौट गए. अपने घरों में ही रह रहे कुछ लोग सरकार के सहयोग से आपदा को अवसर में बदल रहे हैं. और धीरे-धीरे इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है. ये लोग हुनर के बल पर स्वरोजगार प्रारंभ कर स्वावलंबन की ओर बढ़ रहे हैं.
निमिकेश पांडे ऐसे ही प्रवासियों में शामिल हैं, जो कोरोना संकट में पंजाब से घर लौटे. वे लुधियाना में स्वेटर बनाने वाली कंपनी में काम करते थे. लॉकडाउन के दौरान जब घर लौटे तो कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे जीवन-यापन होगा. काफी हाथ-पांव मारे, लेकिन बात बनी नहीं. आखिर में अपना काम शुरू करने का निश्चय किया.
पूंजी की समस्या आड़े आ रही थी. तो जुलाई से जुगाड़ में लग गए. सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाए, योजनाओं का पता किया और फिर दस लाख का लोन लेने में सफल रहे. पिछले दो महीने से स्वेटर बना रहे हैं. दो-तीन लाख के स्वेटर बेच चुके हैं. और दूसरे राज्यों की कंपनियां भी स्वेटर की मांग कर रहीं हैं. निमिकेश बताते हैं – ”मैंने धैर्य बनाए रखा. अनुभव काम आया और उत्पाद की गुणवत्ता पर पूरा ध्यान रख रहे हैं. हमारी लागत भी तुलनात्मक रूप से कम है. इसलिए मांग बढ़ रही है.”
घर पर रहकर ही रोजगार
निमिकेश जैसी ही कहानी बक्सर के दो युवकों की है. दोनों कोरोना संकट के चलते घर लौटे और समस्याओं के अंधेरे में से उजाले का मार्ग ढूंढा. कोरानसराय के रहने वाले प्रमोद और संत उपाध्याय पंजाब में डिटरजेंट बनाने वाली फैक्टरी में काम करते थे. लॉकडाउन में घर लौटे और फिर यहीं डिटरजेंट पाउडर बनाने का काम शुरू किया. अब दो दर्जन लोगों को साथ लेकर उत्पादन और मार्केटिंग का काम भी संभाल रहे हैं.
प्रमोद ने बताया कि ‘जिस दस-पंद्रह हजार के लिए बाहर भटक रहे थे, वह घर पर रहकर ही कमा रहे हैं. गाजियाबाद से कच्चा माल मंगाते हैं और स्थानीय बाजार में अपना सामान पहुंचाते हैं. जिला उद्योग केंद्र के संपर्क में हूं, कोशिश है पूंजी का जुगाड़ हो जाए तो स्थिति और बेहतर हो.’
चनपटिया मॉडल
प्रवासी कामगारों को स्वावलंबी बनाने के लिए सरकार भी पूरे मनोयोग से उनकी सहायता कर रही है. वहीं, आजकल पश्चिम चंपारण का चनपटिया मॉडल काफी चर्चा में है. जिसके अनुरूप प्रदेश के सभी जिलों में योजना बनाई जा रही है. दरअसल, पश्चिम चंपारण जिले के डीएम और 76 प्रवासी कामगारों ने मिलकर कमाल कर दिखाया है. यहां गुजरात व राजस्थान से काफी संख्या में हुनरमंद कामगार लौटे थे. इनमें कोई साड़ी, कोई रेडिमेड कपड़े बनाने वाली फैक्टरी में काम कर रहा था, कोई एंब्रॉयडरी में निपुण था. स्थानीय प्रशासन ने सरकार के निर्देशानुसार स्किल मैपिंग के तहत प्रवासियों की उद्यमिता की पहचान की. जिला प्रशासन ने 76 कामगारों को भारतीय खाद्य निगम के बेकार पड़े गोदाम में जगह (किराए पर) उपलब्ध करवाई. इन लोगों ने सरकार के सहयोग से छोटी सी पूंजी से काम शुरू किया.
कामगारों ने उन कंपनियों से बात की, जहां वे पहले काम करते थे और अंतत: उन्हें अपना सामान बेचना शुरू कर दिया. अब इनके द्वारा तैयार किए गए कंबल और टोपी जैसे सामान सेना के जवानों तक के लिए खरीदे जा रहे हैं. इन प्रवासी कामगारों ने आपदा को अवसर में बदल दिया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इनकी कहानी सुनकर चनपटिया पहुंचे और इनकी उद्यमिता की जानकारी ली. उन्होंने घोषणा की कि चनपटिया मॉडल को ध्यान में रखते हुए पूरे राज्य में ऐसी कोशिश की जाएगी.
लॉकडाउन के दौरान लौटे प्रवासियों के लिए सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार योजना (मनरेगा), गरीब कल्याण रोजगार अभियान, कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम, स्किल मैपिंग और कुशल व अर्द्धकुशल प्रवासियों के लिए छोटे उद्यम के सहारे रोजगार सृजन का प्रयास किया.
शिशु मुद्रा ऋण योजना के प्रति सरकार काफी गंभीर है, जिसके तहत पचास हजार तक का ऋण दिया जा रहा है. इससे ग्रामीण स्तर पर रोजगार उपलब्ध हुआ है. प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के तहत भी जरूरतमंदों को दस हजार रुपये का ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है. उद्योग विभाग ने सभी जिला प्रबंधकों को चनपटिया मॉडल का अध्ययन करने पश्चिम चंपारण भेजा भी था. चनपटिया मॉडल पर अमल करते हुए उद्योग विभाग प्लग एंड प्ले नाम की एक योजना पर काम कर रहा है. जिसके तहत कामगारों की स्किल मैपिंग के बाद क्लस्टर तय किए जाएंगे और उद्योगों को वर्गीकृत कर उन्हें कार्यशील पूंजी व जगह दी जाएगी ताकि वे अपना उद्यम स्थापित कर सकें.