नई दिल्ली. ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ ने 23 अगस्त, 2023 को प्रज्ञान रोवर को चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतार कर इतिहास रचा था. चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचने वाला पहला देश बन गया. सितम्बर माह में विक्रम लैंडर का हॉक टेस्ट कर एक और सफलता हासिल की. अब इसी कड़ी में ISRO ने चांद के चारों तरफ चक्कर लगा रहे ‘प्रोपल्शन मॉड्यूल’ (Propulsion Module – PM) को वापस पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर नया कीर्तिमान स्थापित किया है. अब ‘प्रोपल्शन मॉड्यूल’ के अंदर लगे SHAPE पेलोड के जरिए धरती का अध्ययन किया जाएगा. आसान शब्दों में समझे तो ISRO चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल को वापस पृथ्वी पर ला रहा है, इसके लिए ISRO ने रिटर्न मैनुअल तय किया था.
‘प्रोपल्शन मॉड्यूल’ ने 10 नवंबर को चंद्रमा से धरती की यात्रा शुरू की थी. चंद्रयान-3 मिशन का प्रमुख उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र के समीप सॉफ्ट लैंडिंग करना और लैंडर ‘विक्रम’ तथा रोवर ‘प्रज्ञान’ पर उपलब्ध उपकरणों का इस्तेमाल कर प्रयोग करना था. ISRO ने इस उद्देश्य को बखूबी पूरा किया. अंतरिक्ष यान का एलवीएम3-एम4 रॉकेट के जरिए सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 14 जुलाई, 2023 को प्रक्षेपण किया गया था. इसमें प्रणोदन मॉड्यूल यानि ‘प्रोपल्शन मॉड्यूल’ का मुख्य उद्देश्य ‘जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट’ (GTO) से लैंडर मॉड्यूल को चंद्रमा की अंतिम ध्रुवीय गोलाकार कक्षा तक पहुंचाना और लैंडर को अलग करना था. ISRO के अनुसार, लैंडर को अलग करने के बाद प्रणोदन मॉड्यूल में पेलोड ‘स्पेक्ट्रो-पोलरीमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लेनेट अर्थ’ को भी संचालित किया गया.
इस बीच ISRO की शुरुआती योजना पेलोड को ‘प्रोपल्शन मॉड्यूल’ के जीवनकाल के दौरान करीब 3 महीने तक संचालित करने की थी. लेकिन चंद्रमा की कक्षा में काम करने के एक महीने से भी अधिक समय बाद ‘प्रोपल्शन मॉड्यूल’ में 100 किलोग्राम से अधिक ईंधन उपलब्ध है. तो ISRO ने ‘प्रोपल्शन मॉड्यूल’ में उपलब्ध ईंधन का इस्तेमाल भविष्य के चंद्र मिशन के लिए अतिरिक्त सूचना जुटाने में करने का फैसला किया. SHAPE पेलोड से धरती का अध्ययन करने के लिए ‘प्रोपल्शन मॉड्यूल’ को धरती के नजदीक और उसकी सही ऑर्बिट में लाना था. 9 अक्तूबर, 2023 को ISRO वैज्ञानिकों ने ‘प्रोपल्शन मॉड्यूल’ को अपनी ऑर्बिट बदलने का निर्देश दिया.
विभिन्न चरणों में इसके ऑर्बिट में सुधार किया गया तथा अब वह ऐसी सुरक्षित जगह से धरती पर नजर रख रहा है, जहां उसे किसी अन्य ग्रह, सैटेलाइट, उल्कापिंड या मेटियोर से खतरा नहीं है. योजना के अनुसार SHAPE पेलोड को धरती की तरफ घुमाया गया है. अब इसके अंदर लगे SHAPE पेलोड के माध्यम से अध्ययन किया जाएगा.
कब कितना खर्च हुआ ईधन?
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, चंद्रयान-3 का प्रोपल्शन मॉड्यूल परमाणु तकनीक यानि (Nuclear Technology) से ऊर्जा हासिल कर रहा है. कुछ दिन पहले एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन अजित कुमार मोहंती ने इस बात की पुष्टि की थी. प्रोपल्शन मॉड्यूल में 2 ‘रेडियो आइसोटोप हीटिंग यूनिट्स’ लगाए गए हैं. जब चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग हुई थी. तब प्रोपल्शन मॉड्यूल में 1696.4 kg ईधन था. इसके बाद प्रोपल्शन मॉड्यूल के सहारे ही पृथ्वी के चारों तरफ 5 बार ऑर्बिट बदले गए.
ऑर्बिट करेक्शन को मिलाकर कुल 6 बार इंजन ऑन किया गया. इसके बाद चंद्रयान-3 चांद के ट्रांस-लूनर ट्रैजेक्टरी में पहुंचा. फिर चंद्रमा के चारों तरफ 6 बार प्रोपल्शन मॉड्यूल ऑन हुआ. पृथ्वी के चारों तरफ 6 बार प्रोपल्शन मॉड्यूल के थ्रस्टर्स को ऑन किया गया. तब 793 kg फ्यूल खर्च हुआ. चांद के चारों तरफ 6 बार ऑर्बिट घटाने के लिए थ्रस्टर्स ऑन किए गए, तब 753 kg फ्यूल खर्च हुआ. यानि इस बीच कुल मिलाकर 1546 kg फ्यूल की खपत हुई. अभी प्रोपल्शन मॉड्यूल में 150 kg फ्यूल बचा हुआ है. जो कई सालों तक काम कर सकता है.