राम नाईक
मैं कोई संविधान विशेषज्ञ नहीं हूं. तथापि, एक विधि स्नातक होने के साथ-साथ तीन बार भारतीय जनता पार्टी मुंबई का अध्यक्ष, तीन बार महाराष्ट्र विधान मंडल में बोरीवली, मुंबई से विधानसभा सदस्य, पांच बार उत्तर मुंबई से संसद सदस्य, स्व. श्री अटलबिहारी वाजपेयी के दो मंत्रिमंडलों में सदस्य और सन् 2014 से सन् 2019 तक उत्तरप्रदेश के राज्यपाल के रूप में राजनीति में अपने 65 वर्षों के दीर्घ अनुभव के आधार पर मैं यह आलेख लिख रहा हूं.
विश्व के बहुत से देशों में तीन महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक देश हैं -1). भारत –138.48 करोड़ की जनसंख्या वाला सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश, 2). 33.16 करोड़ की जनसंख्या वाला संयुक्त राज्य अमेरिका और 3). 6.80 करोड़ की आबादी वाला यूनाइटेड किंगडम (इंग्लैंड).
भारत के लिखित संविधान को अपनाए जाने के 70 वर्ष 26 नवंबर 2020 को पूरे होंगे. हमारे संविधान में प्रस्तावना, 396 अनुच्छेद, 22 भाग और 8 सूचियां हैं. इस संविधान में 104 संशोधन किए जा चुके हैं. दुनिया का सबसे पुराना लिखित और संहिताकरण किया हुआ संविधान संयुक्त राज्य अमेरिका का है, जिसमें केवल प्रस्तावना और 7 अनुच्छेद हैं, तथा 4 मार्च, 1789 को संविधान लागू किए जाने के बाद से 231 वर्षों के दौरान उसमें केवल 27 संशोधन हुए हैं. यूनाइटेड किंगडम में कोई लिखित संविधान नहीं है, परंतु लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली है. कहा जाता है कि यह संसदीय लोकतंत्र की जननी है.
यह भारत के लिए गौरव की बात है कि हमारे संविधान ने पिछले 70 वर्षों में विकास और प्रगति के उद्देश्य के लिए काम किया है. वैश्विक मामलों में भारत एक महत्वपूर्ण देश बन गया है. संविधान द्वारा बनाई गई तीन शाखाएं संसद, कार्यपालिका और न्यायपालिका परस्पर निर्भरता के साथ और सहयोगात्मक पद्धति से काम करती रही हैं. संसद, राज्य विधान मंडल और स्थानीय निकायों के चुनाव विभिन्न चुनाव प्राधिकारियों द्वारा निर्विघ्न रूप से सम्पन्न किए जाते रहे हैं. इसलिए भारतीय संविधान के अस्तित्व के 70 वर्षों का उत्सव मनाना हमारे लिए अत्यंत उचित ही है.
संविधान में किए गए सभी 104 संशोधन जनता की इच्छा की अभिव्यक्ति है, जिसकी प्रशंसा करनी होगी, क्योंकि प्रत्येक संशोधन संसद के दोनों सदनों – लोकसभा और राज्य सभा के साथ-साथ जहां आवश्यक है, वहां अलग-अलग राज्यों के विधानमंडल के दोनों सदनों में पारित किया गया है तथापि, संविधान की मूलभूत संरचना के निराकरण के आधार पर कुछ संशोधन प्रभावित हुए हैं.
जहां संविधान का प्रत्येक संशोधन देश में अच्छे प्रशासन को सुनिश्चित करने के लिए किया गया है, हम कह सकते हैं कि यह समय की मांग के अनुसार परिवर्तन की आवश्यकता को देखते हुए किया गया है तथापि, सन् १९७६ में किए गए ४२वें संशोधन ने और जम्मू और कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के लिए ५ अगस्त, २०१९ को लोकसभा में प्रस्तुत अनुच्छेद ३७० को निरस्त करने संबंधी प्रस्ताव ने देश में अत्यधिक हो-हल्ला मचाया था.
संविधान की प्रस्तावना में तीन और शब्दों को, ‘समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता’ और ‘देश की एकता तथा अखंडता’ को शामिल करने के लिए ४२वां संशोधन किया गया था. १८ दिसंबर, १९७६ को आपातकाल के दौरान ‘बंदी’ संसद द्वारा प्रस्तावना में किया गया यह पहला संशोधन था. प्रस्तावना के साथ-साथ ५६ अनुच्छेदों में भी संशोधन किया गया था. यह संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन था. तद्नंतर हुए संसद चुनाव में मतदाताओं की प्रतिक्रिया दिखाई दी, जब श्रीमती इंदिरा गांधी और कांग्रेस पार्टी की पराजय हुई.
दूसरा महत्वपूर्ण प्रस्ताव था – जम्मू और कश्मीर को भारत से संलग्न करने के लिए अनुच्छेद ३७० और ३५ (ए) को निरस्त करना, जो लोकसभा में ५ अगस्त, २०१९ को प्रस्तुत किया गया था, जिसने देश भर में भारी मात्रा में हो-हल्ला मचाया. अंतिम विश्लेषण में संसदीय प्रक्रिया का पालन करते हुए परिवर्तन किया गया और लोगों ने इसे बड़े पैमाने पर हाथों-हाथ लिया.
इस अवसर पर मैं संविधान से जुड़ी अपनी कुछ यादें साझा करना चाहता हूं. जब मैंने संसद के पुस्तकालय में संविधान की हिन्दी प्रति पहली बार देखी, मैं संविधान के सभी २२ अध्यायों में बनाए गए चित्र देखकर चकित रह गया. उसमें वैदिक काल से लेकर गुप्तकाल, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह, नेताजी सुभाषचंद्र बोस आदि सबके चित्र बने हुए थे. संविधान का अध्ययन करने के बाद मैं लोकसभा के अध्यक्ष महोदय से मिला और सुझाव दिया कि संविधान की हिन्दी और अंग्रेजी दोनों प्रतियों का पुनर्मुद्रण कराकर उन्हें विक्री के लिए रखा जाए. मैंने यह भी सलाह दी कि ये प्रतियां सभी संसद सदस्यों को स्मृतिचिह्न के रूप में प्रदान की जाएं. मुझे प्रसन्नता है कि मेरी सलाह स्वीकार कर उसे कार्यान्वित किया गया.
संविधान सभा में की गई बहस को पढ़ते समय मुझे राष्ट्र वंदना के बारे में हुई बहस पढ़ने को मिली. बहुसंख्य सदस्यों ने ‘वंदेमातरम्’ का सुझाव दिया था, जबकि प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ‘जन-गण-मन’ के पक्ष में थे. चूंकि अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्रप्रसाद ने कहा कि दोनों गीत अच्छे हैं, तो हम ‘जन-गण-मन’ को स्वीकार करते हैं, तथापि ‘वंदे मातरम्’ को भी समान प्रतिष्ठा रहेगी. उसके बाद लोकसभा में एक प्रश्न उठाया गया था और उत्तर दिया गया कि राष्ट्र वंदना और राष्ट्र गीत कुछ विद्यालयों में नहीं गाया जाता, इसलिए उनके नियमित गायन के लिए सरकार एक अभ्युक्ति जारी करेगी. मुझे लगा कि यह उत्तर संतोषजनक नहीं है. चर्चा के लिए निर्धारित आधे घंटे के दौरान मैंने यह मुद्दा उठाया, जिससे अंततः लोकसभा और राज्यसभा के प्रत्येक सत्र के पहले दिन ‘जन-गण-मन’ और प्रत्येक सत्र के अंतिम दिन ‘वंदे मातरम्’ गाया जाने लगा. जब कोई मुझसे पूछता है कि लोकसभा में मेरा महत्वपूर्ण योगदान क्या है, तो मेरा उत्तर होता है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के ४५ वर्ष बाद लोकसभा में २४ नवंबर, १९९२ को ‘जन-गण-मन’ और २३ दिसंबर, १९९२ को लोकसभा में ‘वंदेमातरम्’ गाया जाना ही मेरा योगदान है.
मैं अपनी एक और उपलब्धि बताना चाहूंगा. २४ जनवरी १९५० को संपन्न संविधान सभा की अंतिम बैठक में सभी सदस्यों ने भारत के संविधान पर हस्ताक्षर किए. संविधान में राज्य का नाम ‘संयुक्त प्रदेश’ के रूप में दर्शाया गया था. तथापि, उसी दिन भारत सरकार ने एक अधिसूचना जारी करते हुए बताया कि ‘संयुक्त प्रदेश’ को ‘उत्तरप्रदेश’ के नाम से जाना जाएगा. यह बहुत ही महत्वपूर्ण दिन था, जो उत्तरप्रदेश का स्थापना दिवस माना जा सकता था. कुछ सामाजिक संगठन मांग कर रहे थे कि उत्तरप्रदेश सरकार को इसे स्थापना दिवस के रूप में घोषित करना चाहिए. जब मैं राज्यपाल बना, तब मैंने स्थापना दिवस की मांग के समर्थन में एक सुव्यवस्थित प्रस्ताव तैयार किया और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अनुरोध किया कि २४ जनवरी को उत्तरप्रदेश का स्थापना दिवस घोषित करें. मुख्यमंत्री जी ने कृपापूर्वक स्वीकृति दी और २ मई, २०१७ को उचित आदेश जारी किया. इस तरह उत्तरप्रदेश के निर्माण के ६७ वर्षों बाद २४ जनवरी, २०१८ को पहला उत्तरप्रदेश स्थापना दिवस मनाया गया.
मैंने एक और पहल की सन् १९८९ में, जब मैं पहली बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुआ, मैंने कुछ नवनिर्वाचित संसद सदस्यों से संस्कृत में शपथ लेने के विषय में चर्चा की. २६ संसद सदस्यों द्वारा संस्कृत में शपथ लेना सभी संसद सदस्यों और प्रसार-माध्यमों के लिए आश्चर्य की बात थी.
मेरा सबसे निवेदन है कि भारत के संविधान के ७० वर्ष पूरे होने के इस ऐतिहासिक दिन पर हम ‘चरैवेति चरैवेति’ का सबक सीखें और भारत के विकास के लिए कार्य करें.
पूर्व राज्यपाल, उत्तरप्रदेश
साभार – हिन्दी विवेक