नई दिल्ली. भारत में परिवार व्यवस्था प्राचीन समय से ही सुदृढ़ रही है. जिस कारण बड़े से बड़े संकट की स्थिति में भी कभी देश का ढांचा बिखरा नहीं और समस्या का निवारण होता रहा. वर्तमान में संपूर्ण विश्व कोरोना जैसी वैश्विक आपदा से जूझ रहा है.
समस्त विश्व पर इसके आर्थिक प्रभाव बड़े दूरगामी और चिंताजनक हैं. इसके बावजूद भारत में आपदा के नकारात्मक परिणाम सुदृढ़ परिवार व्यवस्था के कारण विश्व की तुलना में काफी कम रहने की संभावना है. इस कारण है परिवारों में छोट-छोटी बचत करने की आदत. परिवार में की जाने वाली छोटी-छोटी बचत का प्रभाव 12 पहले भी देखने को मिला था. वर्ष 2008 में पूरा विश्व वैश्विक मंदी के दौर से गुजर रहा था, उस समय भी घरेलू बचत की आदत के कारण देश उस संकट से उबर गया था. वर्तमान में कोविड-19 के संकट काल में लॉकडाउन के कारण काम बंद हो गया था, रोजगार, व्यवसाय नहीं था. ऐसी विकट परिस्थिति में भी भारत में परिवार लघु बचत के सहारे आर्थिक आघात को झेलने में सक्षम हुए.
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2019-20 में कुल सकल घरेलू बचत 5.6 लाख करोड़ रुपये है. सकल घरेलू बचत में हाउस होल्ड सेक्टर, प्राईवेट कॉरपोरेट सेक्टर और पब्लिक सेक्टर, तीनों क्षेत्रों की बचत को सम्मिलित किया जाता है. यह बचत बैंकों में फिक्स डिपोजिट, जीवन-बीमा, शेयर, डिबैंचर, म्युचुअल फंड, छोटी बचत योजनाओं में जमा और नगद के रूप में संचित रहती है.
भारतीय परिवारों में समन्वय है सुदृढ़ता का आधार
भारतीय परिवारों में समन्वय की अधिकता रहती है. जिन लोगों ने अपने पूरे जीवन का अनुभव प्राप्त किया, ऐसे वरिष्ठों की बातों पर अमल करने की प्रवृति आम है. ऐसे में आने वाले संकट के समय जीवन धारण करने और जीवन-यापन के धंधों के प्रति लोगों में एक मानसिक तैयारी रहती है. यदि कोई सदस्य मुश्किल में है तो संयुक्त पारिवारिक दायित्व के कारण उसकी संभाल कर ली जाती है. जिस कारण भारत बड़ी से बड़ी आपदा में निकलने में सदियों से सक्षम रहा है. इस समय की बात करें तो विश्व के अन्य विकासशील देशों की तुलना में भारत की सकल घरेलू बचत दर अधिक है. वर्ष 2009 में सकल घरेलू बचत दर 36.02 फीसदी थी, वह घटते हुए वित्त वर्ष 2018 में 32.39 फीसदी और 2019 में 30.14 प्रतिशत है. यद्यपि उपरोक्त आंकड़ों के अनुसार देश में बचत घटी है, फिर भी छोटी बचत योजनाएं अपनी विशेषताओं के कारण बड़ी संख्या में गरीब और नौकरी पेशा लोगों से लेकर मध्यम वर्गीय परिवारों की सामाजिक सुरक्षा का आधार हैं.
कोविड19 के दौर में 78 प्रतिशत ने विवेकाधीन खर्च में की कटौती
परिवारों में आपसी सामन्जस्य होने के कारण कोई भी निर्णय समन्वय से ही होता है. यही कारण है कि संकट की स्थिति में उपभोक्ता खर्च में सतर्कता बरती है. परामर्शदाता कंपनी केपीएमजी की एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 78 प्रतिशत लोगों ने अपने खर्च में विवेकाधीन कटौती की है. केपीएमजी इंडिया की रिपोर्ट टाईम टू ओपन माई वॉलेट और नॉट में कहा गया है कि दूसरी और तीसरी श्रेणी के शहरों के उपभोक्ता पहली श्रेणी के शहरों की तुलना में अपनी खर्च करने की आदत को लेकर दोगुना अधिक आशान्वित है. सर्वे की खास बात है कि 51 प्रतिशत लोगों ने माना कि कोविड-19 का प्रभाव अधिक समय तक नहीं रहेगा और हालात जल्द ही सामान्य हो जाएंगे.