चित्रकूट. वीरांगना रानी दुर्गावती की जयंती पर दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट ने सभी प्रकल्पों सहित ग्रामीण क्षेत्रों में भी व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित कर उनके शौर्य पराक्रम की गाथा को सबके समक्ष रखा.
ग्राम हिरौदीं, भरगवां (बड़े देव बाबा स्थान), बीरपुर सिद्धा, वुन्देला पुरवा, सोनबर्षा, रानीपुर आदि केंद्रों पर बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया गया. कार्यक्रम के बाद सामूहिक सहभोज, संस्कार केंद्र का प्रदर्शन, स्वच्छता कार्यक्रम भी सामूहिक किया गया. कृषि विज्ञान केंद्र पर भी जयंती कार्यक्रम मनाया गया. उपरोक्त कार्यक्रम में दीनदयाल शोध संस्थान के सचिव डॉ. अशोक पांडेय सहित अन्य संबोधित किया.
दीनदयाल शोध संस्थान के सचिव डॉ. अशोक पांडेय ने कहा कि उनके शौर्य, पराक्रम की गाथाएं बेटियों को असंभव को संभव कर दिखाने का साहस देंगी, ‘दुर्गा का रूप लिए साहस, शौर्य की वह मूरत थी. मुगलों को पराभूत कराती देवी की वह सूरत थी. दुर्गावती के वीरतापूर्ण चरित्र को भारतीय इतिहास से इसलिए काटकर रखा गया, क्योंकि उन्होंने मुस्लिम शासकों के विरुद्ध कड़ा संघर्ष किया था और उनको अनेक बार पराजित किया था. अकबर के मानिकपुर के सूबेदार ख्वाजा अब्दुल मजीद खां ने रानी दुर्गावती के विरुद्ध अकबर को उकसाया था. अकबर अन्य राजपूत घरानों की विधवाओं की तरह दुर्गावती को भी रनवासे की शोभा बनाना चाहता था. अकबर ने एक विधवा पर जुल्म किया. लेकिन धन्य है – रानी दुर्गावती का पराक्रम कि उसने अकबर के जुल्म के आगे झुकने से इंकार कर स्वतंत्रता और अस्मिता के लिए युद्ध भूमि को चुना और अनेक बार शत्रुओं को पराजित करते हुए 1564 में बलिदान दे दिया. वीरांगना महारानी दुर्गावती साक्षात दुर्गा थी. महारानी ने 16 वर्ष तक राज संभाला. इस दौरान उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं.
रानी दुर्गावती का जन्म आज ही के दिन 5 अक्तूबर 1524 को हुआ था. रानी दुर्गावती सुन्दर, सुशील, विनम्र, योग्य एवं साहसी लडक़ी थी. महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं. बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 ईसवी की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया. नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गई. दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी, लेकिन फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर गोंडवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह मडावी ने अपने पुत्र दलपत शाह मडावी से विवाह करके अपनी पुत्रवधु बनाया था. दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया. उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय नारायण ही था. अत: रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया.
वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था. उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया. रानी दुर्गावती के सुखी और सम्पन्न राज्य पर मालवा के शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया, पर हर बार वह पराजित हुआ. मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था. उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधार सिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा था. रानी ने यह मांग ठुकरा दी थी.