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दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा 108 ग्राम केंद्रों पर आयोजित हो रहा “विद्यारंभ संस्कार”

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चित्रकूट. दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा चित्रकूट क्षेत्र के ग्रामीण केंद्रों पर “विद्यारंभ संस्कार” का शुभारंभ किया गया है. पिछले वर्ष कोरोना के चलते बच्चों का विद्यारंभ संस्कार नहीं हो पाया था, उन बच्चों को भी इस वर्ष शामिल किया गया है. अभी तक अमिलिया, बैहार, चितहरा, पाथर-कछार, रानीपुर, भियामऊ सहित 22 स्वावलंन केंद्र (ग्राम पंचायत स्तर) में कार्यक्रम संपन्न हो चुके हैं, जुलाई माह में 108 केंद्र में संपन्न कराने की योजना है. जिसमें चित्रकूट जनपद के 59 स्वावलंबन केंद्र एवं मझगवॉ जनपद के 49 केंद्र शामिल हैं.

दीनदयाल शोध संस्थान के कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह ने बताया कि जो बच्चे पहली बार विद्या अध्ययन हेतु प्राथमिक कक्षा में प्रवेश लेते हैं, उन बच्चों का विद्यारंभ संस्कार के माध्यम से मां सरस्वती के समक्ष पढ़ाई से परिचय कराया जाता है. दीनदयाल शोध संस्थान के समाज शिल्पी दंपति कार्यकर्ता और ग्राम सहयोगी कार्यकर्ताओं द्वारा चित्रकूट के आसपास सभी स्वावलंबन केंद्रों एवं संपर्कित ग्राम आबादियों में कार्यक्रम के माध्यम से बच्चों को विद्यालय में विद्या दर्शन कराया जा रहा है और विद्यालय से परिचित कराया जा रहा है.

दीनदयाल शोध संस्थान के स्वावलंबन अभियान के प्रभारी डॉ. अशोक पांडे ने बताया कि शिक्षा के बारे में भारतरत्न नानाजी देशमुख की कल्पना आम धारणाओं से बहुत भिन्न थी. किताबी शिक्षा को वे व्यवहारिक व मानव प्रदत्त शिक्षा के सामने गौण मानते थे. उनके लिए शिक्षा व संस्कार एक दूसरे के परस्पर पूरक थे. उनका मत था कि शिक्षा व संस्कार की प्रक्रिया गर्भाधान से ही प्रारंभ हो जाती है और जीवन पर्यंत चलती है. नानाजी इस बात पर बल देते रहे कि शिक्षा का मर्म तो देशानुकूल होना चाहिए. लेकिन उसमें गतिशीलता बनी रहनी चाहिए ताकि विद्यार्थी स्वयं को समय के मुताबिक ढाल सकें.

समाज शिल्पी दंपत्ति प्रभारी हरिराम सोनी ने बताया कि स्वावलंबन केंद्रों के अलावा संपर्कित केंद्रों पर भी दीनदयाल शोध संस्थान के सहयोगी कार्यकर्ता ‘विद्यारंभ संस्कार’ को पूर्ण करा रहे हैं. उनके द्वारा विद्यारम्भ संस्कार के लिए सामान्य तैयारियां की जाती हैं. साथ ही गणेश जी और सरस्वती जी का पूजन किया जाता है. इस दौरान बच्चों के हाथ में अक्षत, फूल, रोली देकर फिर मंत्रों का जाप कराया जाता है.

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