
नई दिल्ली. संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगांठ पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने अपने भाषण में दावा किया था कि – ‘चीन विश्व शांति का प्रमोटर रहा है. स्थापना के बाद चीन ने कभी भी किसी को युद्ध के लिए नहीं उकसाया. इसके अलावा, किसी दूसरे की एक इंच जमीन पर भी कब्जा नहीं किया.’
चीनी विदेश मंत्री के दावों की पोल खोलते हुए निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रधानमंत्री ने कहा कि चीन की कथनी और करनी में अंतर है. एक ओर वह शांति की बात करता है, दूसरी ओर वह दूसरे देशों के भू-भाग को कब्जाने की रणनीति पर काम करता है. तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री डॉ. लोबसांग सांग्ये ने कहा कि यदि चीन वास्तव में शांति चाहता है तो उसे सबसे पहले दलाईलामा के दूतों से बात करनी चाहिए. चीन का साम्राज्यवादी नजरिया पूरे विश्व के सामने आ गया है. लेकिन चीन बार-बार शांति की बात ही करता है. चीन की कथनी और करनी में भारी अंतर है.
निर्वासित तिब्बत सरकार के लोकतंत्र के 60 वर्ष पूरे होने पर धर्मशाला के मैक्लोडगंज में कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस दौरान दलाई लामा की ओर से तिब्बत की आजादी को लेकर अब तक उनके द्वारा किये प्रयासों को याद किया गया. उनकी लंबी आयु के लिये प्रार्थना भी की गयी.
इस अवसर पर डॉ. लोबसांग साग्ये ने कहा कि दलाईलामा द्वारा बहुत की कम आयु में तिब्बत के आध्यात्मिक नेता व प्रमुख के रूप में अपना उत्तरदायित्व संभाला था. लेकिन तिब्बत में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप के बाद उन्हें तिब्बत छोड़कर भारत आना पड़ा. भारत में तिब्बत की राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव को लेकर भी कई कदम उठाए हैं.
सरकार बनाना नहीं, तिब्बत की स्वायत्तता निर्वासित सरकार का लक्ष्य
धर्मशाला में तिब्बत की निर्वासित सरकार अपना शासन चला रही है. तिब्बत की निर्वासित सरकार तिब्बत के चीन में विलय को अवैध मानती है. चीन के अनावश्यक प्रहार से बचने के लिए उसने यह स्पष्ट कर रखा है कि उसका उद्देश्य चीन के कब्जे वाले तिब्बत में सरकार बनाना नहीं है और जब भी तिब्बत चीन से अलग होकर एक स्वतंत्र देश बनेगा, तो यह निर्वासित सरकार अपने आप भंग हो जाएगी. सदियों पहले कभी एक मजबूत और संप्रभु राजव्यवस्था रहे तिब्बत के लिए पिछले 60 साल कठिनाइयों के दौर से ही गुजरे हैं. दुनिया का कोई देश तिब्बत को एक अलग देश या जबर्दस्ती विलय कर लिए देश के तौर पर मान्यता नहीं देता. धर्मगुरु दलाई लामा के भारत आने के बाद से ही भारत एक अकेला देश रहा है, जिसने तिब्बत को अपनी भूमि पर निर्वासित सरकार बनाने और चलाने की अनुमति दे रखी है.