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जनसंख्या असंतुलन पर सम्पूर्ण समाज को विचार करना होगा – शरद ढोले जी

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इंदौर (विसंकें). अखिल भारतीय धर्मजागरण प्रमुख शरद ढोले जी ने कहा कि किसी भी राष्ट्र की जनसंख्या उस राष्ट्र का भविष्य निश्चित करती है, जनसंख्या विस्फोट एक वैश्विक मानवीय समस्या है. वहीं जनसंख्या असंतुलन राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी सामाजिक चुनौती है. जहाँ हर छोटा बड़ा निर्णय संख्यात्मक बहुमत पर निर्भर हो, वहां यह चुनौती और भी गंभीर हो जाती है. आंकड़े बताते हैं कि यह असंतुलन स्वभाविक नहीं है, यह एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है.

अभी तक 130 वर्षों में 13 बार जनगणना हुई है, जनगणना में हर 10 साल के बाद होती है. अंतिम बार 2011 में हुई जनगणना के अनुसार पिछले 130 वर्षों में हिन्दू समाज 13% घटा यानि हर 10 साल के बाद एक प्रतिशत घटा, इसका परिणाम यह हुआ कि 1947 में देश का विभाजन हुआ यानि “जहाँ हिन्दू घटा वहां देश बंटा”.

शरद जी रवीन्द्र नाट्य गृह में संस्कृति संवर्धन न्यास द्वारा जनसंख्या असंतुलन की चुनौतियां एवं हमारी भूमिका विषय पर आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे. संस्कृति संवर्धन न्यास, इंदौर द्वारा प्रतिवर्ष इस तरह के व्याख्यान कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, कोरोनाकाल के कारण यह व्याख्यान कार्यक्रम नहीं हो सका था. इस वर्ष आयोजित कार्यक्रम में बड़ी संख्या में प्रबुद्ध नागरिक, संत समाज उपस्थित रहे.

उन्होंने कहा कि जब-जब हिन्दू घटा, तब-तब देश बंटा. इस बात को समझने के लिए १९४७ के विभाजन को देखना पड़ेगा. १९४७ में जब पाकिस्तान बना, जिसमें वर्तमान बांग्लादेश भी है, तब अविभाजित भारत के ७६ जिले आज के पाकिस्तान-बांग्लादेश में गए. जो जिले पाकिस्तान में गए, उनमें न्यूनतम मुस्लिम जनसंख्या ४० प्रतिशत थी. कुछ जिलो में इससे अधिक भी थी, ८० प्रतिशत तक भी कई जिलों में मुस्लिम जनसंख्या थी. अर्थात सन् 1947 की सीख से स्पष्ट है कि जब सीमावर्ती जिलों की जनसंख्या ४० प्रतिशत से अधिक अहिन्दू होगी तो हमें विभाजन की नौबत झेलनी पड़ेगी. आज फिर एक बार सीमा के ४५ जिले ४० प्रतिशत से अधिक जनसंख्या वाले बन गए हैं.

उन्होंने कहा कि 1947 से पूर्व अविभाजित भारत में 23 प्रतिशत मुस्लिम आबादी थी, आज विभाजित भारत में मुसलमानों की संख्या 15 प्रतिशत है. 1947 में ईसाई एक प्रतिशत थे, आज देश में ईसाई 7 प्रतिशत हैं. 15 प्रतिशत मुसलमान और 7 प्रतिशत ईसाई दोनों मिलकर देश में संख्या 22 प्रतिशत हो गई है.

स्वतंत्रता के पूर्व देश के लिए मरना और जीना यह एक मूल्य था. वर्तमान काल खंड में देश की जनसंख्या संतुलित रहे, इसके लिए कम से कम 3 बच्चों को जन्म देना यह एक मूल्य है.

राष्ट्र की जनसंख्या के बारे में राष्ट्र के प्रबुद्ध लोगों को चिंतनशील रहना चाहिए. यदि चिंतन नहीं किया जाता तो देश और समाज संकट में आ जाता है. इस पर विचार ना करने के कारण कुछ देश, दुनिया से मिट चुके हैं. यह दुनिया का इतिहास है. यह इतिहास भारत में ना दोहराया जाए, यह सारे विषय समाज के जागरण के लिए हैं. इसलिए जनसंख्या असंतुलन पर भी सामाजिक जागरण की महती आवश्यकता है.

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