करंट टॉपिक्स

राजा दाहिरसेन जी की अनुकरणीय देश भक्ति

Spread the love

प्रहलाद सबनानी

आज के बलोचिस्तान, ईरान, कराची और पूरे सिन्धु इलाके के राजा थे दाहिरसेन जी. उनका जन्म 663 ईस्वी में हुआ था और 20 जून, 712 ईस्वी को महान भारत भूमि की रक्षा करते हुए उन्होंने बलिदान दे दिया था.

भारत माता को सही मायने में “सोने की चिड़िया” कहा जाता था. इस कारण के चलते भारत माता को लूटने और इसकी धरा पर कब्जा करने के उद्देश्य से पश्चिम के रेगिस्तानी इलाकों से आने वाले मजहबी हमलावरों का वार सबसे पहले सिन्ध की वीरभूमि को ही झेलना पड़ता था. इसी सिन्ध के राजा थे दाहिरसेन. जिन्होंने युद्धभूमि में लड़ते हुए न केवल अपनी प्राणाहुति दी, बल्कि उनके बलिदान के पश्चात उनकी पत्नी, बहन और दोनों पुत्रियों ने भी अपना बलिदान देकर भारत में एक नयी परम्परा का सूत्रपात किया.

सिन्ध के महाराजा के असमय देहांत के बाद उनके 12 वर्षीय पुत्र दाहिरसेन को  गद्दी पर बैठाया गया. राज्य की देखभाल उनके चाचा चंद्रसेन करते थे, परंतु छह वर्ष बाद चंद्रसेन का भी देहांत हो गया. अतः राज्य की जिम्मेदारी 18 वर्षीय दाहिरसेन पर आ गयी. उन्होंने देवल को राजधानी बनाकर अपने शौर्य से राज्य की सीमाओं का कन्नौज, कंधार, कश्मीर और कच्छ तक विस्तार किया.

राजा दाहिरसेन जी एक प्रजावत्सल राजा थे. गौरक्षक के रूप में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी. यह देखकर ईरान के शासक हज्जाम ने 712 ईस्वी में अपने सेनापति मोहम्मद बिन कासिम को एक विशाल सेना देकर सिन्ध पर हमला करने के लिए भेजा. कासिम ने देवल के किले पर कई आक्रमण किए, पर राजा दाहिरसेन और उनके वीरों ने हर बार उसे पीछे धकेल दिया.

सीधी लड़ाई में बार बार हारने पर कासिम ने धोखा किया. 20 जून, 712 ईस्वी को उसने सैकड़ों सैनिकों को हिन्दू महिलाओं जैसा वेश पहना दिया. लड़ाई छिड़ने पर वे महिला वेशधारी सैनिक रोते हुए राजा दाहिरसेन के सामने आकर मुस्लिम सैनिकों से उन्हें बचाने की प्रार्थना करने लगे. राजा ने उन्हें अपनी सैनिक टोली के बीच सुरक्षित स्थान पर भेज दिया और शेष महिलाओं की रक्षा के लिए तेजी से उस ओर आगे बढ़ गए, जहां से रोने के स्वर आ रहे थे.

इस भागदौड़ में दाहिरसेन अकेले पड़ गए. उनके हाथी पर अग्निबाण चलाए गए, इससे विचलित होकर वह खाई में गिर गए. यह देखकर शत्रुओं ने राजा दाहिरसेन को चारों ओर से घेर लिया. राजा ने बहुत देर तक संघर्ष किया, पर अंततः शत्रु सैनिकों के भालों से उनका शरीर क्षत-विक्षत होकर मातृभूमि की गोद में सदा के लिए सो गया. इधर, महिला वेश में छिपे मुस्लिम सैनिकों ने भी असली रूप में आकर हिन्दू सेना पर बीच से हमला कर दिया. इस प्रकार हिन्दू वीर दोनों ओर से घिर गए और मोहम्मद बिन कासिम का पलड़ा भारी हो गया.

राजा दाहिरसेन के बलिदान के बाद उनकी पत्नी लाड़ी और बहन पद्मा ने भी युद्ध में वीरगति पाई. कासिम ने राजा का कटा सिर, छत्र और उनकी दोनों पुत्रियों (कुमारी सूर्या और कुमारी परमल) को बगदाद के खलीफा के पास उपहार स्वरूप भेज दिया. जब खलीफा ने उन वीरांगनाओं का आलिंगन करना चाहा तो उन्होंने रोते हुए कहा कि कासिम ने उन्हें अपवित्र कर आपके पास भेजा है.

इससे खलीफा भड़क गया. उसने तुरन्त दूत भेजकर कासिम को सूखी खाल में सिलकर हाजिर करने का आदेश दिया. जब कासिम की लाश बगदाद पहुंची तो खलीफा ने उसे ग़ुस्से से लात मारी. दोनों बहनें महल की छत पर खड़ी थीं. जोर से हंसते हुए उन्होंने कहा कि हमने अपने देश के अपमान का बदला ले लिया है. यह कहकर उन्होंने एक दूसरे के सीने में विष से बुझी कटार घोंप दी और नीचे खाई में कूद पड़ीं. खलीफा अपना सिर पीटता रह गया. बाद में इन दोनों बहनों की लाशों को घोड़े में बांध कर पूरे बगदाद में घसीटा गया.

भारत के स्कूलों एवं कॉलेजों में इतिहास के पाठयक्रम में केवल लुटेरे, क्रूर, बलात्कारी मुगलों व अंग्रेजों के इतिहास के बारे में ही पढ़ाया जाता है. सच्चा इतिहास कभी पढ़ाया ही नहीं जाता है, अतः हमें हमारे वीर बहादुर देश भक्तों के बारे में सही-सही जानकारी मिल नहीं पाती है. धर्म व देश की रक्षा के लिए पूरे परिवार को न्योछावर कर देने वाले उस महान धर्म रक्षक हिन्दू राजा दाहिरसेन को बारम्बार नमन.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *