पश्चिम बंगाल के फर्जी पासपोर्ट घोटाले के मामले की जांच में खुलासा हुआ है कि अवैध कारोबार की जड़ें ऊपर से लेकर नीचे तक फैली हुई हैं। अवैध दस्तावेज़ तैयार करने की यह “बिजनेस चेन” न सिर्फ एक संगठित रैकेट का हिस्सा है, बल्कि इसमें हर स्तर पर भ्रष्टाचार का खेल जारी है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एक फर्जी पासपोर्ट तैयार करने में बांग्लादेशी घुसपैठिए को ढाई से तीन लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इसमें से रैकेट के मुख्य सरगना मनोज गुप्ता और समरेश विश्वास अपने गिरोह के अन्य सदस्यों को 50-60 हजार रुपये बांटते हैं, जबकि शेष दो लाख रुपये का बंटवारा अपने बीच करते हैं।
पासपोर्ट सेवा केंद्र के अस्थायी कर्मचारी तारकनाथ सेन को प्रति पासपोर्ट पांच छह हजार रुपये मिलते थे। पोस्ट ऑफिस के अस्थायी कर्मचारी दीपक मंडल को हर पासपोर्ट के बदले तीन हजार रुपये मिलते थे। बांग्लादेशी नागरिकों को रैकेट के पास लाने वाले मुख्तार आलम को 2500 से चार हजार रुपये दिए जाते थे। दस्तावेज़ तैयार करने में मदद करने वाले आधार कार्ड कर्मचारियों को सात से 10 हजार रुपये मिलते थे।
मनोज गुप्ता की ट्रैवल एजेंसी के कर्मचारी दीपंकर दास को 25 हजार रुपये मासिक वेतन मिलता था, जिसमें फर्जी दस्तावेज़ तैयार करने का हिस्सा भी शामिल था। इसके अलावा, पूर्व पुलिस कर्मी अब्दुल हई को वेरिफिकेशन की प्रक्रिया पूरी करने के लिए 25 हजार रुपये दिए जाते थे।
अब्दुल को गत सप्ताह पुलिस ने गिरफ्तार किया था। अब्दुल जब सुरक्षा नियंत्रण संगठन (एससीओ) से संबद्ध था, तब उसने कई आवेदकों को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पासपोर्ट जारी करने में कथित तौर पर अहम भूमिका निभाई थी। एससीओ क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय से प्राप्त आवेदनों की जांच करता है। अक्तूबर 2023 में पुलिस सेवा से सेवानिवृत्त होने वाले अब्दुल को पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के अशोक नगर में स्थित उसके घर से गिरफ्तार किया गया था।
जांच में पता चला है कि रैकेट में शामिल एजेंटों और सब-एजेंटों को भी हजार से दो हजार रुपये तक का हिस्सा दिया जाता था। इतना ही नहीं, वीजा की व्यवस्था करने वाले एजेंटों को भी सात से 10 हजार रुपये तक दिए जाते थे।