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GEAC द्वारा GM सरसों की अनुमति देने के निर्णय को वापिस ले सरकार – भारतीय किसान संघ

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नई दिल्ली. अभी हाल ही में GEAC की 147वीं बैठक में जी.एम. सरसों को हमारे देश में खेती के लिए अनुमति देने की बात कही गयी है. तत्काल ही 25 अक्तूबर, 2022 को GEAC के निदेशक महोदय ने इस संदर्भ में जी.एम. सरसों के वैज्ञानिकों को पत्र भी भेज दिये, अच्छी बात है.

पिछले कई वर्षो से जी.एम. सरसों चर्चा में है. कभी यह बताया गया कि यह अधिक उपजाऊ वाला है, प्रश्न पूछते ही बदलकर बताया गया कि यह पुरूष बांझपन के लिए बनाया गया है. थोड़े दिनों के बाद ये भी बताया गया कि यह सरसों खरपतवार रोधी के लिए बनाया गया है.

अभी यह क्या है, किसानों को पता ही नहीं. GEAC के अनुमति पत्र में लिखा गया कि इनके समर्थन में जो जानकारियां मिलीं, वे सभी विदेशों से लाई गयी. हमारे देश में इसके बारे में अध्ययन करना बाकी है.

अगर ऐसा है तो अनुमति कैसे? GEAC जैसा जिम्मेदार संगठन ने गैर जिम्मेदाराना, अवैधानिक, अवैज्ञानिक निर्णय कैसे लिया? इसीलिए लोग बोलते है कि कहीं कोई सौदेबाजी तो नहीं हुई? यह विषय हमारा नहीं है, यह विषय जरूरी हुआ तो इसे ED और IT देखेगा.

इन सभी प्रश्नों के साथ एक बड़ा प्रश्न यह भी है, यह सरसों को पहले से किसानों के बीच में भेजकर हंगामा खड़ा करना, किसका कार्य था और इसी अवैधानिक कृत्य को हमारे कानूनी व्यवस्था ने अभी तक क्यों दण्डित नहीं किया?

अगर ‘जी.एम. सरसों का तेल नहीं खाना’ – ऐसा माहौल बन गया तो जो देशी सरसों की खेती व व्यापार करते हैं, वो ज्यादा परेशानी में आएंगे ही.

इस सरसों का मधुमक्खी और दूसरे परागण पर क्या प्रभाव पडेगा, इसके बारे में देश में कोई शोध हुआ नहीं. यह भी GEAC के अनुमति पत्रों से पता चलता है, फिर प्रधानमंत्री जी की शहद के बारे में घोषणा का क्या होगा?

यद्यपि यह अधिक उपजाऊ वाला नहीं है, फिर भी कई प्रशासक सरसों के तेल में ‘देश को आत्मनिर्भर करने के लिए यह जरूरी है, ऐसा क्यों बताते हैं?’ किसके दबाव में, किसी के प्रभाव में?

इतना गंभीर विषय, योग्य पर्यावरण मंत्री के मंत्रालय में हो रहा है. ये ओर भी चिंतादायक है. भारतीय किसान संघ की मांग है कि पर्यावरण मंत्री तुरंत इस निर्णय को वापिस लेने का निर्देश GEAC को करें.

अगर सरकार सरसों जैसा खाद्य तेल में भारत को आत्मनिर्भर करना चाहती है, तो उसका एक सहज उपाय है – उसके लिए अच्छा मूल्य देने की घोषणा करने के साथ ही उसकी खरीददारी की व्यवस्था करें तो दलहन के समान तिलहन में भी एक-दो वर्षों में आत्मनिर्भर बन जाएंगे. इसके लिए जी.एम. सरसों जैसे वैज्ञानिक धोखाधड़ी की जरूरत नहीं पड़ेगी और GEAC जैसी संस्था को अवैज्ञानिक- अवैधानिक और गैर जिम्मेदाराना निर्णय लेने के लिए बाध्य नहीं होना पड़ेगा, जैसे जी.एम. सरसों की अनुमति देने की प्रक्रिया में हुआ है.

सरकार इस निर्णय को तुरंत वापिस ले और सभी हितधारकों के साथ सघन बात करने के बाद ही कोई निर्णय ले.

भारतीय किसान संघ

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