भोपाल (विसंकें). वनवासी कल्याण परिषद मध्यप्रदेश ने लघु वनोपज के उत्पाद उपार्जन संबंधित वर्तमान नीति में आवश्यक संशोधन के संबंध में आयोजित की गई बैठक में अपनी तरफ से 9 बिंदु प्रस्तुत किये हैं.
परिषद् द्वारा पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव को एक पत्र के माध्यम से बिंदु भेजे गए. जिनमें मुख्य रुप से फलिया /टोला/ पाड़ा या बस्ती को ग्राम सभा गठित करने हेतु एक निश्चित प्रक्रिया तय करने की बात कही गई है. जिसमें उस गांव के मतदाताओं से प्रस्ताव लिया जाए व कलेक्टर द्वारा प्राधिकृत अधिकारी द्वारा विमर्श बैठक ली जाए और गांव की घोषणा राजपत्र में की जाए. MPPRGSA अधिनियम की धारा 129 -B में इसका प्रावधान है और मध्यप्रदेश अनुसूचित क्षेत्र ग्रामसभा नियम 1988 के नियम 4(2) व 4(3) में भी यह बात कही गई है, लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ. अतः जनजाति विभाग हर फलिया तक यह जानकारी पहुंचाने हेतु प्रचार मुहिम चलाए और राजस्व विभाग निश्चित समय सीमा में गांव घोषित करने की प्रक्रिया पूरी करे. महाराष्ट्र के पेसा नियम अवश्य देखें, जिसमें ग्राम वासियों से प्रस्ताव आने के बाद 4 महीने के भीतर राजस्व विभाग को कार्रवाई करनी होती है, अन्यथा गांव स्वयं घोषित माने जाते हैं.
दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु बताते हुए वनवासी कल्याण परिषद द्वारा कहा गया कि सारे लघु वन उपज का स्वामित्व अधिकार ग्राम सभा के पास होना चाहिए. पेसा के साथ वन अधिकार कानून में भी यह अधिकार दिया है और वन अधिकार कानून धारा 2 (i) में लघु वनोपज की व्याख्या पूरे देश में मान्य है. इसमें तेंदू व बांस भी शामिल है, अतः मध्यप्रदेश तेंदूपत्ता व्यापार विनिमय अधिनियम 1964, मध्यप्रदेश वन उपज व्यापार विनियमन अधिनियम 1969, दोनों कानूनों में बदलाव कर इनके दायरे से पूरे अनुसूचित क्षेत्र तथा सामुदायिक वन अधिकार प्राप्त अन्य क्षेत्र को मुक्त करना होगा.
वनवासी कल्याण परिषद् ने सुझाव दिया कि लघु वनोपज सहकारी सोसायटी व महासंघ आदि जो पुरानी रचनाएं हैं, इनको विसर्जित कर ग्राम सभा तथा वनाधिकार धारकों के सहकारी संघ बनाकर लघु वनोपज का व्यापार तथा परिवहन की रचना बनानी होगी. पुरानी रचना में जिन्हें संग्राहक माना है उन्हें पेसा और वनाधिकार कानून में मालिक माना गया है.
वनवासी कल्याण परिषद मध्यप्रदेश के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य व जनजाति मंत्रणा परिषद के सदस्य कालू सिंह मुजाल्दा ने पत्र के माध्यम से अपर मुख्य सचिव से अनुरोध किया कि इन सभी बिंदुओं पर विचार करते हुए निर्धारित समयावधि में पेसा कानून के नियम बनाना आवश्यक है एवं जनजाति समाज के सरल भाषा में अनुवाद करते हुए सभी पंचायतों में जनजागरण हो. वनवासी कल्याण परिषद् ने वनवासियों के अधिकारों की रक्षा एवं सरकार द्वारा लागू योजनाओं का सीधा लाभ उन तक पहुंचाने के लिए अन्य सुझाव भी दिए.