नई दिल्ली. खालसा पंथ के संस्थापक दशमेश गुरु जी का हमारे देश, धर्म व संस्कृति की रक्षा हेतु योगदान विश्व इतिहास में अनुपम है. उन्होंने मात्र नौ वर्ष की उम्र में गुरु गद्दी संभाली तथा अपनी तीन पीढ़ियों के नौ रक्त संबंधियों को राष्ट्र की बलिवेदी पर बलिदान कर दिया. विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने आज गुरु गोविंद सिंह जी के प्रकाश पर्व पर आयोजित प्रकाश यज्ञ के उपरांत कहा कि महान गुरु ने अपनी निहंग सेना के साथ अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए भी दो बार युद्ध किया. हमें खुशी है कि गुरु जी का वह प्रयास आज फलीभूत होकर भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर एक भव्य मंदिर का निर्माण प्रारंभ हो रहा है.
आज प्रात: दक्षिणी दिल्ली के संत नगर स्थित आर्य समाज मंदिर में आयोजित कार्यक्रम में विनोद बंसल ने कहा कि आज भी अयोध्या में मौजूद गुरुद्वारा श्री ब्रह्मकुंड साहिब के दर्शन के लिए देश और दुनिया के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं. कहा जाता है कि गुरु नानकदेव जी महाराज, नवम् गुरु तेग बहादुर जी महाराज तथा दशमेश गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड में ध्यान किया था. गुरुद्वारे में रखी एक किताब के अनुसार मां गुजरीदेवी एवं मामा कृपाल सिंह के साथ पटना से आनंदपुर जाते हुए दशम् गुरु गोविंद सिंह जी ने रामनगरी में ही धूनी रमाई थी. अयोध्या प्रवास के दौरान उन्होंने मां एवं मामा के साथ रामलला का दर्शन भी किया था. गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड में गुरु गोविंद सिंह जी के अयोध्या आने की कहानियों से जुड़ी तस्वीरें व खंजर, तीर और दस्तार चक्र जैसी निशानी आज भी भक्तों की श्रद्धा का केंद्र हैं. अयोध्या के चिमटाधारी साधु बाबा वैष्णवदास के आह्वान पर लड़ी उनकी सेना ने मुगल शासक औरंगजेब की शाही सेना को बुरी तरह से परास्त किया था.
उन्होंने कह कि गुरु नानक देव जी महाराज भी सन 1528 से पूर्व तब अयोध्या गए थे, जब भव्य राम मंदिर वहां था. किन्तु लाहौर में जब उन्हें खबर लगी कि औरंगजेब ने मंदिर तोप से उड़ा दिया तो उन्होंने अपना दुख व्यक्त करते हुए अपने प्रिय शिष्य मरदाने को कहा था कि मेरा वंशज ही एक दिन उसके लिए लड़ेगा. गुरु तेग बहादुर जी महाराज भी अयोध्या गए थे.
कार्यक्रम में मंदिर की संचालिका व वैदिक विदुषी दर्शनाचार्या विमलेश आर्या सहित अन्य उपस्थित थे.