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‘गुरु विनयांजलि’ – आचार्य जी से काल सुसंगत मार्गदर्शन व उपदेश मिलता था

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नागपुर. पूज्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज की स्मृति में रविवार को आयोजित गुरु विनयांजलि कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि “अत्यंत कठोर व्रताचरण तथा संपूर्ण वैराग्याचरण करने वाले आचार्य विद्यासागर जी हम सबके मार्गदर्शक तो थे ही, साथ ही वे राष्ट्र की बड़ी पूंजी थे”.

नागपुर के चिटणीस पार्क में आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम ‘गुरु विनयांजलि’ में उपस्थित नव रत्न जैन संत संघ तथा साध्वी जनों को प्रणाम कर सरसंघचालक जी ने श्रद्धांजलि अर्पित की.

उन्होंने कहा कि “आचार्य विद्यासागर जी से पहली बार भेंट और चर्चा के बाद मेरे ध्यान में आया कि वे तर्क से तो बात रखते ही थे, उस तर्क के पीछे भी उनका एक सहज आत्मीयता का भाव होता था. मेरी उनकी पहली भेंट हुई थी. लेकिन, संत तो सबको अपना मानते हैं. हम भी यदि संतों की बात मान कर चलें, तो सफलता अवश्य मिलती है”.

उनका नहीं होना, मेरे लिए वैयक्तिक हानि की बात है. उनके पास आधा घंटा भी बैठें तो अगले वर्ष भर मन स्थिर रहता था. ‘स्व’ से शुरू करो उसी आधार पर उन्नति होती है. अपने देश को भारत कहो, इंडिया मत कहो, यह उनका सदैव आग्रह होता था.

देश का उत्पादन जनता के द्वारा बढ़ाओ तो उनको रोजगार मिलेगा और देश को लाभ मिलेगा, ऐसा काल सुसंगत मार्गदर्शन एवं उपदेश मिलता था. व्यक्तिगत आचरण या राष्ट्र के विषय में उनकी बातें हम सब के लिए मार्गदर्शक हैं. उनके जाने से मेरी व्यक्तिगत हानि हुई है, उसका तो कोई उपाय नहीं; लेकिन, हम उनके बताए मार्ग पर सदैव चलें, तो हमेशा के लिए उन्नति कर सकते हैं. मैं उनकी स्मृति में अपनी श्रद्धांजलि अर्पण करता हूं.

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