सोनाली मिश्रा
वैचारिक दुराग्रह के इस दौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या भारतीय जनता पार्टी से जुड़े लोगों के प्रति विषवमन का एक नया चलन हो गया है. यह सिलसिला आज का नहीं है, एक लंबा सिलसिला है और यह उस भारतीयता से घृणा का सिलसिला है, जो भारत के लोक से जुड़ी हुई है. अभी हाल ही का मामला भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की नेता एवं पूर्व सांसद सुभाषिनी अली हैदर की उस घृणा का है, जो उन्हें कहीं न कहीं भारत के बहुसंख्यक समाज से है, क्योंकि पूर्व में वह भारत में बहुसंख्यकवाद के खतरों पर बात कर चुकी हैं.
यह तो विचार तक ही आक्रमण था, परन्तु इसी दुराग्रह के चलते, उन्होंने मणिपुर हिंसा में नितांत व्यक्तिगत आक्रमण करते हुए दो लोगों के प्रति अफवाह फैलाते हुए एक ट्वीट किया कि यह मणिपुर के आरोपी हैं, इन्हें कपड़े से पहचानो! हालांकि उन्होंने इस विषय में क्षमा भी माँगी, परन्तु ट्वीट बहुत देर बाद डिलीट किया था. उनका ट्वीट था…
इस ट्वीट को लेकर उनकी चौतरफा आलोचना हुई, क्योंकि इस ट्वीट में मणिपुर भाजपा नेता और उनके दस वर्षीय बेटे को निशाना बनाया गया था. इस तस्वीर को न जाने कितने लोगों ने यह कहते हुए साझा किया कि जो दो वीडियो वायरल हुए हैं और मणिपुर में जो हिंसा हो रही है, उसमें भाजपा-आरएसएस का हाथ है. दरअसल यह दुराग्रह का वह चरम है, जहां व्यक्ति अपने विरोधियों को नष्ट करने के लिए हर सीमा तक जा सकता है. जिसमें सच और झूठ का सारा दायरा मिट जाता है और रह जाती है तो मात्र घृणा, और वह घृणा उन्हें यह नहीं देखने देती है कि जो वह कर रहे हैं, उसका परिणाम क्या होगा. कोई भी व्यक्ति मणिपुर में उन दो महिलाओं के प्रति किए गए दुर्व्यवहार का पक्ष नहीं ले रहा है और हर कोई निंदा ही कर रहा है. परन्तु सुभाषिनी अली, जो बिहार में महिलाओं की रैली मणिपुर की महिलाओं के लिए न्याय मांगने के लिए निकाल रही हैं, मगर उनकी दृष्टि बंगाल की ओर नहीं जा पाई, जहां पर मात्र चोरी के संदेह के आरोप में दो महिलाओं को पीट पीट कर निर्वस्त्र कर दिया था.
जिस प्रकार से मणिपुर की जघन्य घटना के विरोध में आनन फानन में टूलकिट खड़ी हुई, जिस प्रकार भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं को घसीटा गया और भगवा रंग को बदनाम करने के लिए विशेष प्रकार के कार्टून बनाए जाने लगे, उससे यह स्पष्ट होता है कि जो लोग भी इस मामले में सिलेक्टिव शोर मचा रहे हैं, उनकी मंशा दरअसल केवल इतनी है कि भाजपा या संघ को घेरा जाए, उन पर तमाम अपराध आरोपित किए जाएं. इन्टरनेट पटर तमाम तस्वीरें लोग फैला रहे हैं.
यद्यपि सुभाषिनी अली ने अपनी ओर से यह कहकर कि मणिपुर के आरोपितों को कपड़े से पहचानो, अपनी ओर से उस कुंठा का प्रदर्शन कर दिया, जो जनता द्वारा नकारे जाने से उपजी है, परन्तु यह जनता ही है, जिसने उनका विरोध किया. यह वही जनता है, जिसने संविधान में प्रदत्त राजनीतिक चयन की स्वतंत्रता का प्रयोग किया और अपने मत का प्रयोग करते हुए सरकार चुनी. परन्तु, चूंकि यह सरकार वह नहीं है, जो सुभाषिनी अली जैसे लोग कहते हैं, या जनता अब उनके झूठ में नहीं आती है, तो वह उस संगठन या उस रंग के प्रति अपनी घृणा और कुंठा का प्रदर्शन करती हैं, जिसे जनता ने चुना है. एक प्रकार से वह जनता के प्रति अपनी घृणा का ही विस्तार करती हैं, जब वह यह कहती हैं कि “यह मणिपुर के आरोपित हैं, इन्हें कपड़ों से पहचानो!”
क्या माफी मांगने से सब ठीक हो जाएगा? क्या जो घृणा उन्होंने कुछ शब्दों के माध्यम से फैलाई, वह हट जाएगी? क्या उनकी कुत्सिल मानसिकता धुल जाएगी?
हालांकि, माफी के काफी देर बाद तक भी उनका ट्वीट डिलीट नहीं हुआ था. न ही उन्होंने भाजपा नेता या संगठन से माफी माँगी. भाजपा नेता चिदानंद सिंह ने इस तस्वीर के विषय में पुलिस से शिकायत करते हुए लिखा कि इस तस्वीर को विभिन्न समूहों द्वारा पोस्ट किया गया है. इन व्यक्तियों में शंकरकोंडापर्थी, नुहमान कन्नट, अजीस मुहम्मद और दक्षिण भारत और देश के अन्य हिस्सों से कई अन्य लोग शामिल हैं.
जो और लोग हैं, वह हो सकता है कि उस वर्ग से न हों जो संवेदनशीलता एवं जनवादिता का ढोल पीटता हो. सुभाषिनी अली उस वर्ग से आती हैं, जो तमाम प्रगतिशीलता और संवेदनशीलता का ठेकेदार स्वयं को बताता है. जिसके लिए विश्व में जो भी पीड़ा का विमर्श है, उस पर केवल और केवल उनका अधिकार है. मगर ऐसे लोग दो लोगों और उनमें से एक बच्चा है, के जीवन को खतरे में मात्र अपने वैचारिक दुराग्रह के चलते खतरे में डाल देते हैं.
हालांकि, माफी मांगकर उन्होंने अपना पल्ला झाड़ने का प्रयास किया है, परन्तु यह नाकाफी है. क्योंकि इसे लेकर अब एक बच्चे के प्राणों पर खतरा आ गया है. इसी पर संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) का कहना है कि मणिपुर में दो महिलाओं की निर्वस्त्र परेड कराने के मामले में एक लड़के को जिस प्रकार आरोपित के रूप में जोड़ा गया और उस पर गंभीर आरोप लगाए गए, उसे लेकर अब माकपा नेता व पूर्व सांसद सुभाषिनी अली सहित तीन लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज होनी चाहिए.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने मणिपुर पुलिस को एक नोटिस भेजकर यह कहा है कि उनके पास सुभाषिनी अली सहित तीन व्यक्तियों द्वारा नाबालिग लड़के की पहचान का राज खोलने से संबंधित शिकायत आई है और नाबालिग की जो तस्वीरें प्रसारित हुई हैं, उससे उसे मानसिक आघात पहुंचा है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर कथित रचनात्मक घृणा बहुत ही आम है और हाल ही में गायिका नेहा सिंह राठौड़ पर भी एक शिकायत दर्ज हुई थी, जिसमें उन्होंने सीधी काण्ड को लेकर एक कार्टून साझा किया था, जिसमें संघ के पूर्व गणवेश में एक व्यक्ति को सीधी कांड की तरह एक अन्य व्यक्ति पर पेशाब करते हुए दिखाया गया. इसे लेकर भाजपा के एक कार्यकर्ता सूरज खरे ने इसे आरएसएस और जनजातियों के बीच वैमनस्यता बढ़ाने का प्रयास मानते हुए इस पर प्राथमिकी दर्ज कराई थी. ऐसे में प्रश्न यही उठता है कि कथित रचनात्मकता का दावा करने वाले लोग भीतर से घृणा से क्यों भरे हैं?