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औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर निकल नया नैरेटिव स्थापित करने की आवश्यकता – दत्तात्रेय होसबाले जी

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नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा कि सत्य की खोज करना भारत की परंपरा रही है, लेकिन भारत शब्द संस्कृत का होने के कारण अंग्रेजी के शब्द का प्रयोग करना पड़ रहा है. संस्कृत को ब्राह्मणों की भाषा बताकर इससे पीछे रखा गया. स्वाधीनता मिलने के 75 साल बाद भी यही नैरेटिव चलता रहा.

सरकार्यवाह जी ने शुक्रवार को पूर्व राज्यसभा सदस्य बलबीर पुंज द्वारा लिखित पुस्तक ‘नैरेटिव का मायाजाल’ का लोकार्पण किया. कार्यक्रम अध्यक्ष के रूप में केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद खान उपस्थित रहे.

सरकार्यवाह जी ने कहा कि देश में औपनिवेशिक मानसिकता को तोड़कर नया नैरेटिव तैयार करने की आवश्यकता है. अंग्रेजों की गुलामी की मानसिकता से ग्रसित नैरेटिव आज भी चले आ रहे हैं, इसके खिलाफ सघन वैचारिक अभियान चलाने की आवश्यकता है. इन विषयों पर एक नए तरीके से सोचना, समझना आवश्यक है.

भारत में सत्य की प्रमुखत : तीन खोजें हुईं हैं. पहली खोज यह कि हम एक शरीर नहीं, बल्कि एक चैतन्य आत्मा हैं. दूसरी खोज धर्म की हुई और तीसरी – शास्त्रों का संकलन एवं लेखन. उन्होंने कहा कि बालगंगाधर तिलक ने यूरोप को बताया कि भारत की दुनिया को एक बड़ी देन धर्म की कल्पना है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने कहा कि भारत में पंचायतीराज का आधार धर्म था. उन्होंने कहा कि नैरेटिव या प्रोपेगंडा आदि की बातों के बीच हमें याद करना चाहिए कि हमारे यहां शास्त्रार्थ की परंपरा थी. ‘शास्त्रार्थ’ की परंपरा को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है. जिससे किसी एक पक्ष की नहीं, अपितु सत्य की जीत हो और उससे हमारा देश एवं समाज आगे बढ़े.

उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्य है कि सुशिक्षित कहलाने वाले लोग सब भूल गए हैं कि हम कितने प्रयोगशीलता, बौद्धिक से पूर्ण रहे हैं. हमें अपने बारे में ही घृणा हो गई है. हमने गुलामी के दौर को इस तरह स्वीकार कर लिया कि देश की स्वाधीनता के बाद भी इससे निकल नहीं पाए और अपने आप को हीन दिखाने में जुट गए. सभी जगह सनातन हिन्दू धर्म के बारे में दुष्प्रचार करते रहे. धर्म की बात सिर्फ यह कह कर नहीं करना है कि देश सेक्युलर राष्ट्र है, इस नैरेटिव को भी तोड़ने की आवश्यकता है. धर्म जीवन की धुरी है, यह केवल पूजा पद्धति और उपासना तक का ही मामला नहीं है.

आज राष्ट्र व नेशन तथा सिटिजनशिप व नेशनलिटी में अंतर को स्पष्ट करने की आवश्यकता है.

सिर्फ अंग्रेजी में पुस्तक आएगी, तभी चर्चा होगी, हमें इस नैरेटिव को भी तोड़ कर अपनी सनातन परंपरा को नए सिरे से हिंदी में लिखने की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा कि बलबीर पुंज ने अपनी पुस्तक के माध्यम से धर्म, इंजीनियरिंग, कानून, प्रशासन सहित कई क्षेत्रों के नैरेटिव को सही दिशा देने के लिए एक बौद्धिक विमर्श की जिम्मेदारी अपने कंधों ली है.

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि मैं कौन हूं, को जानने की सनातन परंपरा ने सभी पर गहरी छाप छोड़ी है. नवीनतम पुस्तक फिल्मों में ब्राह्मण संस्कृति के गलत प्रस्तुतीकरण के पहलुओं पर एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है. इस किताब में इतिहास में हिन्दू धर्म के सामने आने वाली चुनौतियों पर एक सूक्ष्म दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है.

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