नई दिल्ली. पाकिस्तान अपनी मजहबी मान्यताओं के कारण जन्म के पहले दिन से ही भारत विरोध का मार्ग अपनाया है. जब भी उसने भारत पर हमला किया, उसे मुंह की खानी पड़ी. ऐसा ही एक प्रयास उसने 1999 में किया, जिसे ‘कारगिल युद्ध’ कहा जाता है. भारतीय सेना ने पाक सेना को बुरी तरह से धूल चटाई थी, टाइगर हिल की जीत युद्ध का एक महत्वपूर्ण अध्याय है.
सियाचिन भारत की सर्वाधिक ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है. चारों ओर बर्फ ही बर्फ होने के कारण यहां भयानक सर्दी पड़ती है. शीतकाल में तो तापमान पचास डिग्री तक नीचे गिर जाता है. उन चोटियों की सुरक्षा करना कठिन ही नहीं, बहुत खर्चीला भी है. इसलिए दोनों देशों के बीच यह सहमति बनी थी कि गर्मियों में सैनिक यहां रहेंगे, लेकिन सर्दी में वे वापस चले जायेंगे. वर्ष 1971 के बाद से यह व्यवस्था ठीक से चल रही थी.
पर, वर्ष 1999 की गर्मी में जब हमारे सैनिक वहां पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय क्षेत्र में सामरिक महत्व की अनेक चोटियों पर कब्जा कर बंकर बना लिये हैं. पहले तो बातचीत से उन्हें वहां से हटाने का प्रयास किया, पर जनरल मुशर्रफ कुछ सुनने को तैयार नहीं थे. अतः जब सीधी उंगली से घी नहीं निकला, तो फिर युद्ध ही एकमात्र उपाय था. तीन जुलाई की शाम को खराब मौसम और अंधेरे में 18 ग्रेनेडियर्स के चार दलों ने टाइगर हिल पर चढ़ना प्रारम्भ किया. पीछे से तोप और मोर्टार से गोले दागकर उनका सहयोग किया जा रहा था. एक दल ने रात को डेढ़ बजे उसके एक भाग पर कब्जा कर लिया.
कैप्टेन सचिन निम्बालकर के नेतृत्व में दूसरा दल खड़ी चढ़ाई पर पर्वतारोही उपकरणों का प्रयोग कर अगले दिन सुबह पहुंच पाया. तीसरे दल का नेतृत्व लेफ्टिनेण्ट बलवान सिंह कर रहे थे. इसमें कमाण्डो सैनिक थे, उन्होंने पाक सैनिकों को पकड़कर भून डाला. चौथे दल के ग्रेनेडियर योगेन्द्र यादव व उनके साथियों ने भी साहस दिखाकर दुश्मनों को खदेड़ दिया. इस प्रकार पहले चरण का काम पूरा हुआ.
अब आठ माउण्टेन डिवीजन को शत्रु की आपूर्ति रोकने को कहा गया, क्योंकि इसके बिना पूरी चोटी को खाली कराना सम्भव नहीं था. मोहिन्दर पुरी और एमपीएस बाजवा के नेतृत्व में सैनिकों ने यह काम कर दिखाया. सिख बटालियन के मेजर रविन्द्र सिंह, लेफ्टिनेण्ट सहरावत और सूबेदार निर्मल सिंह के नेतृत्व में सैनिकों ने पश्चिमी भाग पर कब्जा कर लिया. इससे शत्रु द्वारा दोबारा चोटी पर आने का खतरा टल गया.
इसके बाद भी युद्ध पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ था. यद्यपि दोनों ओर के सैनिक हताहत हो चुके थे. सूबेदार कर्नल सिंह और राइफलमैन सतपाल सिंह चोटी के दूसरी ओर एक बहुत खतरनाक ढाल पर तैनात थे. उन्होंने पाक सेना के कर्नल शेरखान को मार गिराया. इससे पाकिस्तानी सैनिकों की बची हिम्मत भी टूट गयी और वे वहां से भागने लगे.
तीन जुलाई को शुरू हुआ यह संघर्ष पांच दिन तक चला. अन्ततः 2,200 मीटर लम्बे और 1,000 मीटर चौड़े क्षेत्र में फैले टाइगर हिल पर पूरी तरह भारत का कब्जा हो गया. केवल भारतीय सैनिक ही नहीं, तो पूरा देश समाचार को सुनकर प्रसन्नता से झूम उठा. आठ जुलाई को सैनिकों ने विधिवत तिरंगा झण्डा वहां फहरा दिया. इस प्रकार करगिल युद्ध की सबसे कठिन चोटी को जीतने का अभियान पूरा हुआ.