राकेश सैन
भगवान श्रीराम का देश के कण-कण से नाता है और जब ऐसा सम्बन्ध हो तो यह शायद सम्भव ही नहीं कि ऋषि-मुनियों व गुरुओं की धरती पंजाब इससे विरक्त हो. श्रीराम व उनके परिवार को लेकर देश में अनेक तरह की किंवदन्तियां व लोककथाएं प्रचलित हैं और एक प्रसंग उन्हें पंजाब से भी जोड़ता है. दसवें गुरु श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अपनी रचना दशमग्रन्थ में चौबीस अवतारों का वर्णन बड़े सुन्दर काव्यात्मक रूप में पेश किया है. इसमें रामावतार में उन्होंने भगवान श्रीराम के अवतार का पूरा वृतान्त दिया है. उन्होंने श्रीराम का सम्बन्ध पंजाब से जोड़ते हुए उनकी माता कौशल्या को पंजाब की बताया है. उनके अनुसार, माता कौशल्या कौसल देश की राजकुमारी थी और उनका जन्म कुड़हाम नामक स्थान पर हुआ जो आज पटियाला जिले में पंजाब-हरियाणा की सीमा पर स्थित है. आज इस गांव को घड़ाम के नाम से जाना जाता है. गुरु गोबिन्द सिंह जी लिखते हैं –
कुहड़ाम जहां सुनिए नगरं.
तहै कोशल राज नृपेश वरं.
उपजी तिह धाम सुता कुशला.
जिह जीत लई ससि अंश कला.
सुधि पाय सुयम्बर जो करयो.
अवधेश नरेशहिं तो तरयो.
अर्थात कुशल (कौसल) के राज्य की पुत्री कौशल्या जी का जन्म कुड़हाम (घड़ाम) में हुआ, जिन्होंने अपनी सुन्दरता से चन्द्रमां को भी फीका कर दिखाया और उनका विवाह अवध के राजा से हुआ. यहां यह वर्णननीय है कि आज भी इस क्षेत्र में पंजाबी ब्राह्मण व क्षत्रिय वंश के लोग अपना गौत्र कौशल लिखते हैं.
पंजाब के लोगों व साहित्यकारों ने माता कौशल्या के इस सम्बन्ध को अपने लोकगीतों व साहित्यिक रचनाओं में जीवित भी रखा है. श्रीराम ही नहीं, बल्कि माता कौशल्या, महाराजा दशरथ सहित रामायण के कई पात्र पंजाब के शादी विवाह के समय गाए जाने वाले लोकगीतों में आज भी गाए जाते हैं. इन गीतों में युवती श्रीराम जैसा पति, राजा दशरथ व कौशल्या जैसे सास-ससुर, लक्ष्मण जी सा देवर और अयोध्या जी जैसे राज्य की कामना करती हुई कहती है –
बीबी बाबल देयां महलां ते
किउं खड़ी ए ?
मैं ता खड़ी सी
बाबल जी दे कोल,
बाबल! घर लोड़ीए.
बेटी किहो जिहा वर लोड़ीए ?
मैं तां सस्स मंगांगी कौशल्या,
कि सोहरा दशरथ होवे.
मैं तां वर मंगांगी श्रीराम,
छोटा देवर लछमण होवे.
मैं तां मंगांगी अयुधियाजी दा राज,
पंघूड़े बैठी हुकम करां..
पंजाब में शादी के समय या जंवाई के घर आने पर उसको सीठणे देने की परम्परा है. इसमें वधु पक्ष की महिलाएं खूब हास-परिहास करती हैं और जंवाई के परिवार वालों पर कई तरह के ताने कसे जाते हैं. बारात को तब तक खाना नहीं खाने दिया जाता, जब तक वधुपक्ष की महिलाओं के सीठणों का जवाब जंवाई के साथ आए उसके मित्र या भाई उसी शैली में नहीं देते. महिलाओं के सीठणों को पत्तल बान्धना कहते हैं अर्थात महिलाएं बारातियों व जंवाई के साथियों का खाना रोक देती हैं और बारातियों में से कोई जवाब देता है तो इसे पत्तल खोलना कहते हैं. मालवे के गीतकार शादीराम ‘पत्तल काव्य’ में इस प्रथा का वर्णन करते हुए रामजी के विवाह के बारे लिखते हैं –
कोरिआं से बठाई जन्न
जीमणे नूं जनकजी ने,
आप जनक पत्तलां ते
भोजन जो पांवदा.
जन्न बन्न दित्ती
रामचन्दर दी नारीआं ने,
‘शादीराम’ लक्षमण जी
उट्ठ के छुड़ांवदा.
अर्थात रामजी की शादी में जनक जी खुद बारातियों को भोजन परोसते हैं, परन्तु सीता माता की सखियां व महिलाएं रामजी की पत्तल बान्ध देती हैं. तब लक्ष्मण जी पत्तल छुड़वाते हैं अर्थात महिलाओं के सीठणों का जवाब देते हैं. हरियाणा पंजाबी सूबे के रूप में हुए साम्प्रदायिक व संकीर्ण राजनीति से प्रेरित विभाजन से पूर्व पंजाब का पुआध का इलाका कहलाता था. राजनीतिक व प्रशासनिक दृष्टि से चाहे पंजाब से भिन्न है, परन्तु इसकी संस्कृति पंजाबी सभ्याचार का अभिन्न अंग मानी जाती है. इसमें भी महिलाएं श्रीराम जैसा वर देख कर खुश होती हैं –
बाबा जी नै कमरे में
बन्नाजी बुलाए.
देख म्हारी लाड्डो,
यो कैसे वर आए.
चन्दा नहीं आए,
सूरज नहीं आए.
हाथी के होदे,
राजा रामचन्दर आए.
बेटी की विदाई के समय मायके की महिलाएं उससे कुछ मांगने के लिए कहती हैं तो युवती राम जैसा पति और लक्ष्मण जैसा देवर मिलने का आशीर्वाद मांगती है.
बीबी तेरे बाबा जी खड़े,
राम रथ हांक दियो.
बीबी मांगणा हो सोए मांग,
अभी तो तन्नै मिल सकदा.
मैं तो वर मांगूं भगवान,
देवर छोटे लछमण से.
इसमें कोई सन्देह नहीं कि रामायण व भगवान श्रीराम पूरे भारत ही नहीं, बल्कि समूचे जम्बूद्वीप को परस्पर एकात्मता से जोड़ते हैं.