नई दिल्ली. किंग्सवे यानि राजपथ अब कर्तव्य पथ होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्तव्य पथ का लोकार्पण किया. उन्होंने अपने भाषण में उन श्रमिक साथियों का विशेष आभार व्यक्त किया, जिन्होंने कर्तव्यपथ, सेंट्रल विस्टा को केवल बनाया ही नहीं है, बल्कि अपने श्रम की पराकाष्ठा से देश को कर्तव्य पथ भी दिखाया है. इस बार गणतंत्र दिवस पर वो सारे श्रमिक परिवार सहित विशेष मेहमान होंगे.
कर्तव्य पथ और इंडिया गेट पर स्वतंत्रता संग्राम के अद्वितीय नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण करने के पश्चात प्रधानमंत्री ने कहा कि नये भारत में श्रम और श्रमजीवियों के सम्मान की संस्कृति बन रही है, एक परंपरा पुनर्जीवित हो रही है. जब नीतियों में संवेदनशीलता आती है तो निर्णय भी उतने ही संवेदनशील होते चले जाते हैं. इसलिए देश अब अपनी श्रमशक्ति पर गर्व कर रहा है. श्रमेव जयते आज देश का मंत्र बन रहा है.
जब बनारस में काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण का अलौकिक अवसर होता है तो श्रमजीवियों के सम्मान में फूलों की वर्षा होती है और जब प्रयागराज कुंभ का पवित्र पर्व होता है तो स्वच्छता कर्मियों का आभार व्यक्त किया जाता है. अभी कुछ दिन पहले ही देश को स्वदेशी विमान युद्धपोत आईएनएस विक्रांत मिला है, जिसके निर्माण में दिन-रात काम करने वाले श्रमिक भाई-बहनों से मिलकर उनका आभार व्यक्त किया गया. श्रम के सम्मान की परंपरा देश के संस्कारों की अमिट परंपरा का हिस्सा बन रही है. इतना ही नहीं देश की नई संसद का निर्माण होने के बाद उसमें काम करने वाले श्रमिकों को भी एक विशेष गैलरी में स्थान दिया जाएगा. ये गैलरी आने वाली पीढ़ियों को भी ये याद दिलाएगी कि लोकतंत्र की नींव में एक ओर संविधान है तो दूसरी ओर श्रमिकों का योगदान है. यही प्रेरणा सारे देशवासियों को एक कर्तव्यपथ भी देगा. यही प्रेरणा श्रम से सफलता का मार्ग प्रशस्त करेगी.
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज अगर राजपथ का अस्तित्व समाप्त होकर कर्तव्यपथ बना है, आज अगर इंडिया गेट पर जॉर्ज पंचम की मूर्ति के निशान को हटाकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगी है, तो ये गुलामी की मानसिकता के परित्याग का पहला उदाहरण नहीं है.
सुभाष चंद्र बोस ऐसे महामानव थे, जो पद और संसाधनों की चुनौती से परे थे. उनकी स्वीकार्यता ऐसी थी कि पूरा विश्व उनको नेता मानता था, उनमें साहस था, स्वाभिमान था, विचार था, विज़न था, उनके पास नेतृत्व क्षमता थी, नीतियां थी. नेता जी कहा करते थे, भारत वो देश नहीं जो अपने गौरवमयी इतिहास को भुला दे. भारत का गौरवमयी इतिहास हर भारतीय के खून में है, परंपराओं में है. नेता जी भारत की विरासत पर गर्व करते थे और भारत को जल्द से जल्द आधुनिक भी बनाना चाहते थे. अगर आजादी के बाद हमारा भारत सुभाष बाबू की राह पर चला होता तो आज देश कितनी ऊचांइयों पर होता, लेकिन दुर्भाग्य की बात आजादी के इस महान नायक को भुला दिया गया. उनके विचारों को उनसे जुड़े प्रतीकों को नजरअंदाज कर दिया गया. नेताजी सुभाष अखंड भारत के पहले प्रधान थे, जिन्होंने 1947 से भी पहले अंडमान को आजाद कराकर तिरंगा फहराया था. कर्तव्य पथ पर नेता जी की प्रतिमा इसका माध्यम बनेगी. देश की नीतियां और निर्णयों में सुभाष बाबू की छाप रहे इसके लिए ये प्रतिमा छाप बनेगी.
राजपथ ब्रिटिश राज के लिए था, जिनके लिए भारत के लोग गुलाम थे. राजपथ की भावना भी गुलामी का प्रतीक थी, उसकी संरचना भी गुलामी का प्रतीक थी. आज इसका आर्किटैक्चर भी बदला है, और इसकी आत्मा भी बदली है. कर्तव्य पथ केवल ईंट-पत्थरों का रास्ता भर नहीं है, ये भारत के लोकतान्त्रिक अतीत और सर्वकालिक आदर्शों का जीवंत मार्ग है. यहां जब देश के लोग आएंगे, तो नेताजी की प्रतिमा, नेशनल वॉर मेमोरियल, ये सब उन्हें कितनी बड़ी प्रेरणा देंगे, उन्हें कर्तव्यबोध से ओत-प्रोत करेंगे. आज भारत के आदर्श अपने हैं, आयाम अपने हैं. आज भारत के संकल्प अपने हैं, लक्ष्य अपने हैं. आज हमारे पथ अपने हैं, प्रतीक अपने हैं. ये न शुरुआत है, न अंत है. ये मन और मानस की आजादी का लक्ष्य हासिल करने तक, निरंतर चलने वाली संकल्प यात्रा है.