10 करोड़ रुपये का कानपुर का कुल राखी कारोबार, 05 करोड़ रुपये की राखी कानपुर नगर में बिकती है, 05 करोड़ रुपये की बिक्री कानपुर के आसपास के जिलों में होती, 80 फीसद बाजार पर पहले चीन का था कब्जा, 100 फीसद बाजार इस वर्ष स्वदेशी राखियों का
नई दिल्ली. रक्षाबंधन उत्सव पर इस बार भी बहनों ने भाईयों की कलाई पर स्वदेशी राखी ही बांधी. तथा चीन की राखी का बहिष्कार किया.
स्वदेशी राखी की उपलब्ध को लेकर भोपाल में रक्षाबंधन के पूर्व ही गायत्री शक्तिपीठ की ओर से स्वदेशी राखी बनाने का प्रशिक्षण दिया गया. इस दौरान चंदन, रूद्राक्ष, ऊन, रेशम सहित विभिन्न सामग्रियों से राखी बनाना सिखाया गया. प्रशिक्षण कार्यक्रम में ऑनलाइन माध्यम से भी लोग जुड़े.
बालाघाट में बांस से बनी राखियां आकर्ष का केंद्र रहीं. स्वदेशी राखियों की मांग ने कारीगरों को भी रोजगार प्रदान किया. जिले में गोबर के बाद बांस की रंग-बिरंगी राखियां उपलब्ध रहीं. इससे, जिले में बांस के उद्योग को भी बल मिलने लगेगा. बालाघाट जिले के जनजाति बाहुल्य बैहर में बांस हस्तशिल्प कला केंद्र में राखियां बनाई गईं. हस्तशिल्पी राजू बंजारा ने बताया कि वन विभाग द्वारा बांस से राखियां बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है.
करनाल में रक्षाबंधन पर्व पर 650 डिजाइन की स्वदेशी राखियों की बिक्री हुई. बहनों ने चीन निर्मित राखियों का बहिष्कार किया. राखी के थोक विक्रेता मोहित कथूरिया ने बताया कि मांग को देखते हुए 650 डिजाइन की स्वदेशी राखियां तैयार की गई थीं. अहमदाबाद, बैंगलुरु, हैदराबाद, कोलकाता और दिल्ली के सामानों से राखियां तैयार की गईं. हर एक डिजाइन के 250 राखियां बनाई गई थीं.
बहनों ने अहमदाबाद के असली रुद्राक्ष वाली, कुंदन, स्वास्तिक, मोती और ब्रेसलेट, मोतियों और धागे की कारीगरी वाली राखियां खरीदीं.
कानपुर. कोरोना के वार ने इस साल भी चीन को तगड़ा झटका दिया. मुंबई और कोलकाता में निर्मित स्वदेशी राखियों की हर जगह धूम रही. शहर में 10 करोड़ रुपये का राखी बाजार है. कोरोना से पहले तक रक्षाबंधन के लिए राखी के ऑर्डर होली के बाद ही चीन भेजे जाते थे, 80 से 90 फीसद राखी बाजार पर उसका कब्जा था, लेकिन इस साल वहां से माल नहीं आया.
इस साल मुंबई से स्टोन (धागे में आर्टीफिशियल नग पिरोकर बनाई गई) राखियां आईं. वहीं, कोलकाता से मारवाड़ी (छकलिया रेशम पर साफ्ट धागे से हस्त निर्मित) राखी बाजार में बिक्री को पहुंची. कोलकाता की राखियों में विशेष रूप से लुंबे पसंद आए, जो महिलाएं हाथों में बांधती हैं. पहले राखियां चिपकाई जाती थीं. अब बीड, मोती की राखी हैं, जो धागे में पिरोई जाती हैं.
बाजार में पैकिंग, धागे, अमेरिकन डायमंड (आर्टीफिशियल नग, जो ज्वैलरी में इस्तेमाल होता है) की राखियां रहीं.