सुखदेव वशिष्ठ
समूचे विश्व में आतंकवाद के प्रसार के बाद से ही बार-बार आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ा जाता रहा है. लेकिन इस बात पर लंबे समय से बहस जारी रही है कि क्या आतंकवाद को किसी धर्म विशेष के साथ जोड़ना जायज है? कुछ का मानना है कि ऐसा करना गलत है, कुछ राह से भटके लोगों की वजह से पूरे धर्म को दोषी ठहराना सही नहीं. इसके विपरीत कुछ लोगों का तर्क है पूरे विश्व में एक ही प्रकार का कट्टरपन देखने को मिले तो इसे क्या कहेंगे…?? आतंक और कट्टरपन में एक ही धर्म की संलिप्तता क्यों सामने आती है? 9/11 की घटना के बाद से आतंकवाद से जुड़े शोध और संबद्ध गतिविधियों में काफी बढ़ोतरी हुई है. मुख्यधारा तथा अकादमिक मीडिया, सेमिनारों और सम्मेलनों में इससे संबंधित सामग्री का भी खूब उत्पादन हुआ है.
चर्चित मुस्लिम साहित्यकार सलमान रूश्दी ने भी कहा है कि इस्लामी आतंकवाद भी इस्लाम का एक रूप है और इसके खात्मे के लिए इस सच्चाई को स्वीकार करना जरूरी है. भारतीय मूल के प्रसिद्ध ब्रिटिश लेखक सलमान रुश्दी ने कहा कि – इस्लाम का हिंसक उत्परिवर्तन भी इस्लाम है. जो पिछले 15-20 वर्षों के दौरान बहुत ही ताकतवर बनकर उभरा.
आपने अक्सर लोगों को ये कहते सुना होगा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता. आतंकवादी की कोई राष्ट्रीयता नहीं होती और उसका कोई देश नहीं होता. आतंकवादी सिर्फ आतंकवादी होता है.
इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच सदियों से गाजा और यरुशलम पर कब्जे को लेकर लड़ाई हो या रूस के दक्षिणी हिस्से में स्थित मुस्लिम बहुल क्षेत्र चेचन्या गणराज्य हो, जहां स्थानीय अलगाववादियों और रूसी सैनिकों के बीच बरसों से जारी संघर्ष ने चेचन्या को बर्बाद कर दिया. चीन का शिनजियांग प्रांत एक मुस्लिम बहुल प्रांत है. जबसे यह मुस्लिम बहुल हुआ है, तभी से वहां के बौद्धों, तिब्बतियों आदि अल्पसंख्यकों का जीना मुश्किल हो गया है.
अब बात करते हैं भारत के कश्मीर की, जहां के हालात पहले ऐसे नहीं थे. वर्ष 1990 के पहले तक आम कश्मीरी खुद को भारतीय मानता था. हालांकि कश्मीर विभाजन की टीस तो सभी में थी, लेकिन कट्टरता और अलगाववाद इस कदर नहीं था, जैसा कि आज देखने को मिलता है. इसके पीछे कारण है पाकिस्तान और अलगाववादियों द्वारा कश्मीरियों को भड़काकर आजादी की मांग करवाना. श्रीलंका, म्यांमार, कंबोडिया और थाईलैंड वैसे तो बौद्ध राष्ट्र हैं, लेकिन यहां के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी तनाव बढ़ने लगा है. श्रीलंका में कटनकुड़ी नगर मुस्लिम बहुल बन चुका है तो म्यांमार का अराकान प्रांत बांग्लादेश के रोहिंग्या मुस्लिमों से आबाद है. नाइजीरिया में ईसाइयों की जनसंख्या 49.3 प्रतिशत और मुस्लिमों की जनसंख्या 48.8 प्रतिशत है. अन्य धर्म के लोगों की संख्या 1.9 प्रतिशत है. इसी पृष्ठभूमि में कट्टरपंथी मुस्लिम धर्मगुरु मोहम्मद यूसुफ ने 2002 में बोको हरम का गठन किया.
सबसे ज्यादा खतरनाक जिहादी आतंकी संगठन में ISIS (सीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान में सक्रिय), अलकायदा (अफगानिस्तान, पाकिस्तान में सक्रिय), बोको हरम (नाइजीरिया में सक्रिय) है. इसके साथ पाकिस्तान में सक्रिय जिहादी आतंकी संगठन जमात उद दावा, जैश ए मोहम्मद,
हिजबुल मुजाहिद्दीन हैं. इसी प्रकार अभी हाल में दिल्ली दंगों के जिम्मेदार पीएफआई और भारत में सक्रिय सिमी भी विदेशी धन से पोषण पाकर आंतकी गतिविधियों के आकाओं के मुखौटा मात्र ही हैं.
पिछले 18 साल में जिहादी आतंक से 1, 46, 811 (11 सितंबर 2001 से 21 अप्रैल 2019) मौतें हो चुकी हैं. भारत में ‘आतंक का कोई धर्म नहीं’ कहने वाले लोगों ने आतंक को हिन्दुओं से जोड़ने की पुरजोर कोशिश की. कुछ बुद्धिजीवियों ने किसी धर्म विशेष को थप्पड़ मारना, उससे ‘जय श्री राम’ कहलवाने को भी आतंक की परिभाषा में शामिल करने की कोशिश की. लेकिन शायद इन कथित बुद्धिजीवियों और पत्रकारों ने आतंक का ए.बी.सी नहीं पढ़ा. आतंक है एक धर्म विशेष द्वारा कश्मीर में ली गई 42,000 जानें और निर्वासित हुए लाखों कश्मीरी पंडित, आतंक है संकटमोचन मंदिर में फटा बम, आतंक है सरोजिनी नगर मार्केट का ब्लास्ट, आतंक है मुंबई लोकल ट्रेनों में हुए कई धमाके, आतंक वह है जो मुंबई शहर में 2008 में विकराल रूप लेकर आया था, आतंक था – संसद भवन में आरडीएक्स से भरी कार लेकर घुसना और बहादुर जवानों को मार देना. आतंक था उरी, पठानकोट, पुलवामा में हमला, आतंक है कोयम्बटूर की बॉम्बिंग, आतंक है रघुनाथ मंदिर पर हमला, मुंबई के बसों पर किए गए धमाके, आतंक है अक्षरधाम मंदिर को निशाना बनाना, आतंक है दिल्ली के सीरियल ब्लास्ट्स, आतंक है. 2008 में हुए 11 इस्लामी कट्टरपंथी आतंकियों द्वारा किए गए हमले, आतंक है जयपुर के धमाके. भारत में 1970 से अब तक लगभग 20,000 मौत और 30,000 घायलों में से सबसे बड़ा प्रतिशत इस्लामी आतंक के नाम दर्ज है. आतंकवाद के पीछे, लगभग हर बार, एक ही मजहबी परचम हो, एक ही नारा हो, और एक ही तरह के लोग हों, जो एक ही मजहब के नाम पर ऐसा करते हों तो फिर ऐसे में उसे सिर्फ आतंकवाद कहना उचित रहेगा क्या…….
फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद ने साल 2016 में इस्लामिक आतंकवाद शब्द का प्रयोग किया था……वर्तमान में भी फ्रांस इसी कट्टरता का सामना कर रहा है. जहां अभी हाल ही में एक शिक्षक के अलावा तीन लोगों के सिर कलम कर दिए गए.
जब तक कट्टरपंथी शिक्षा, बच्चों और किशोरों के जेहन में एक मज़हबी सर्वश्रेष्ठता का झूठा दम्भ, हर गैर-मजहबी व्यक्ति को दुश्मन मानने की जिद, मजहब के नाम पर कत्लेआम को जन्नत जाने का मार्ग बताना और इस तरह की कट्टरता बंद नहीं की जाएगी तो दुनिया इसी प्रकार जलती रहेगी. और धर्म के साथ आतंकवाद शब्द जुड़ता रहेगा……