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दुर्भाग्य है कि राहुल को भारतीय प्रतिमान के शिक्षण संस्थान में पढ़ने का अवसर नहीं मिला

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सुखदेव वशिष्ठ

विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षण संस्थान एक जीवन्त संस्था है. अंतर्मन से विद्याभारती के लक्ष्य को स्वीकार कर सब कार्यकर्ताओं द्वारा प्रारंभ किया गया सफर अह्म से त्वम् और आगे वयम् तक ले जाना है.

‘मैं के बृहदाकार ‘ की व्याप्ति से ही कोई भी व्यक्ति तथा कोई भी संस्था अपने उद्देश्य में सफल होती है. “इदं न मम” के यज्ञ भाव से विद्या भारती के कार्यकर्ताओं में मैं का परिष्कार तथा उदातीकरण होता है और इसके दर्शन हमें दैनिक जीवन के प्रत्येक क्रिया कलाप में होते हैं.

विद्याभारती का लक्ष्य

इस प्रकार की राष्ट्रीय शिक्षा-प्रणाली का विकास करना है, जिसके द्वारा ऐसी युवा-पीढ़ी का निर्माण हो सके जो राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत हो, शारीरिक, प्राणिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक-दृष्टि से पूर्ण विकसित हो तथा जो जीवन की वर्तमान चुनौतियों का सामना सफलतापूर्वक कर सके और उसका जीवन ग्रामों, वनों गिरिकन्दराओं एवं झुग्गी-झोपड़ियों में निवास करने वाले दीन-दुःखी अभावग्रस्त अपने बान्धवों को सामाजिक कुरीतियों, शोषण एवं अन्याय से मुक्त कराकर राष्ट्र जीवन को समरस, सुसम्पन्न एवं सुसंस्कृत बनाने के लिए समर्पित हो.

भारतीय शिक्षा की मूल भावना के सम्बन्ध में विष्णु पुराण में कहा गया है “असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय” अर्थात् असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर ले जाने वाली शिक्षा ही शिक्षा कहलाती है. भारत में प्राचीन काल से ही शिक्षा की समृद्ध शिक्षा व्यवस्था रही है. शिक्षा का अंग्रेजी प्रतिमान अंग्रेजी काल में चार्ल्स ग्रांट, विल्वर फोर्स या फिर मैकाले ही रहे. जब देश आजाद हुआ तो युगानुकूल परिवर्तन के माहौल में शिक्षा का अपना मॉडल अपनाया जा सकता था. देश आजाद होते ही 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजी के विद्यालय बंद करने से हम एकाध वर्ष में उसको बदल कर अपनी व्यवस्था (मॉडल) बना सकते थे. परंतु उस समय पर यह ऐतिहासिक भूल की गई. अंग्रेजी शिक्षा तंत्र के लागू होते ही इसका विकल्प खोजने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. उसी में से शिक्षा के अनेक वैकल्पिक मॉडल विकसित होते चले गए.

महात्मा गांधी ने जो बुनियादी शिक्षा का मॉडल खड़ा किया, उसमें भारत, भारतीय समाज और उसकी आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर उसका गठन किया. यह मॉडल रोजगार परक होने के साथ-साथ उसमें धर्म व अन्यान्य चीजें भी थीं. कला-कौशल के सम्बन्ध में भी चिंता की गई थी. महाऋषि अरविंद ने पॉन्डिचेरी में एक मॉडल विकसित करने का प्रयास किया. रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने शान्ति निकेतन का एक मॉडल विकसित करने का प्रयास किया. लोकमान्य तिलक के स्वदेशी आंदोलन में सत्याग्रह और स्वदेशी के मुद्दे थे, उन में से ही राष्ट्रीय विद्यालय की अवधारणा भी आई. भारत की शिक्षा राष्ट्रीय होनी चाहिये, इसी कल्पना के साथ राष्ट्रीय विद्यालय खड़े हुए. आर्य समाज ने गुरूकुल परंपरा के रूप में विद्यालय चलाए. स्वामी श्रद्धानंद द्वारा स्थापित गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थिति इतनी उत्तम थी कि उसमें से निकले व्यक्तित्व भारत के प्रमुख स्थानों पर आसीन होते थे. आजादी से पूर्व ही उत्तर देने के लिये संघर्ष चल रहा था, लेकिन शासन व्यवस्था ब्रिटिशों के हाथ में थी. इसलिये प्रयोग ही हो सकते थे, पूर्ण परिवर्तन संभव नहीं था. आजादी के तुरंत बाद अंग्रेजी विद्यालय बंद कर दिये जाते तो शायद यह वैकल्पिक प्रतिमान चल सकते थे, लेकिन दुर्भाग्यवश यह नहीं हो पाया और पुराना अंग्रेजी चक्र ही चलने के कारण हम आज भी घूम फिर के उसी व्यवस्था में से गुजरते हुए उसके परिणामों को देख रहे हैं.

इसका विकल्प देने के लिये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से स्वयंसेवकों द्वारा भारतीय चिंतन के आधार पर बहुत बड़े सांगठनिक प्रयास के रूप में विद्या भारती कार्यरत है. विद्या भारती विश्व का शिक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़ी गैर सरकारी संगठन है.

पंचकोषीय शिक्षा के आधार पर चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास ही शिक्षा के भारतीय प्रतिमान में प्रतिबिंबित होना चाहिये. शिक्षा देश की संस्कृति के अनुरूप, जीवन के लक्ष्यों का बोध करवाने वाली और उस के अनुरूप सामर्थ्य उत्पन्न करने वाली होनी चाहिये. शिक्षा धर्मनिष्ठ होने के साथ साथ राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति तथा चुनौतियों का सामना करने वाली होनी चाहिये. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह भय्याजी जोशी के शब्दों में “शिक्षा को व्यवसाय की बजाय मिशन के रूप में लेकर चलने वाले संस्थान होना समय की मांग है.”

अभावग्रस्त वर्ग और विद्या भारती

आज देश की लगभग 40% आबादी गरीबी रेखा से नीचे है. यह बंधु शिक्षा से दूर अपने ही समाज के अंग होते हुए भी कटे-कटे से रहते हैं. विद्या भारती के कार्यकर्ता अपना राष्ट्रीय कर्तव्य समझते हुए वहां शिक्षा का दीप प्रज्ज्वलित करने में निरंतर प्रयासरत हैं. झुग्गी-झोंपड़ियों में निवास करने वाले दीन दुखी अभावग्रस्त बांधवों की शिक्षा हेतु व्यवस्था करना ईश्वरीय सेवा समझते हुए निरंतर बिना थके करने में लगे है. यह कार्य भारत माता को अखंड रखने, सामाजिक समरसता के भाव को उदय करने में, लालच या मजबूरी का फायदा उठा कर धर्मांतरण करने से रोकने हेतु आवश्यक है.

अनौपचारिक शिक्षा केंद्रों की स्थापना, एकल शिक्षक विद्यालयों का विस्तार, संस्कार केंद्र खोलना शामिल हैं. विद्या मंदिरों के बालकों तथा आचार्यों का अभावग्रस्त बांधवों से जा कर मिलना भी राष्ट्र के भविष्य के मन में सामाजिक समरसता का भाव जगाता है. संस्कार केंद्रों में मुख्यतः स्वास्थ्य, सुरक्षा, देश तथा संस्कृति प्रेम, साक्षरता स्वावलंबन भाव आदि रहते हैं. संस्कार केंद्रों द्वारा किये जाने वाले कार्यों से अनेक परिवारों में बदलाव आना प्रत्यक्ष अनुभव किया गया है. आसपास की सफाई में सहभागिता, सामाजिक कुरीतियों के प्रति जागरूकता हेतु नुक्कड़ नाटक, राष्ट्र प्रेम हेतु गौरव माला और गीत करवाए जाने के माध्यम से विद्या भारती के कार्यकर्ता बिना थके निरंतर समाज में इस अभावग्रस्त वर्ग में कार्य कर रहे हैं.

राहुल गांधी और विद्या भारती

राहुल गांधी की प्रारंभिक शिक्षा पश्चिमी प्रतिमान के एडमन्ड राइस द्वारा स्थापित सैंट कोलंबा स्कूल दिल्ली में हुई. उसके बाद 1981-1983 तक देहरादून में ब्रिटिश मॉडल स्कूल पर आधारित और बंगाल के वकील सतीश रंजन दास द्वारा 1935 में स्थापित दून स्कूल में हुई. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके पिता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी सियासत में आए और सुरक्षा कारणों से उन्हें घर पर ही पढ़ाई करनी पड़ी. अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय के रोल्लिंस कॉलेज से स्नातक होने तक पश्चिमी प्रतिमान में ही शिक्षा प्राप्त की. दुर्भाग्यपूर्ण कहें या कुछ और उनका किसी भारतीय प्रतिमान के शिक्षण संस्थान से पढ़ाई का अनुभव न होने की वजह से वह पाकिस्तान के मदरसे और विद्या भारती के विद्या मंदिरों का अंतर पता नहीं है. पहले भी लोकसभा चुनाव के समय विद्या भारती पर आतंकवादी पैदा करने संबंधी विवादित टिप्पणी कर चुके हैं.

शायद वह अनजान हैं कि पंजाब में उनकी सरकार को चलाने वाले 25 प्रतिशत अधिकारी विद्या भारती के विद्यालयों से ही पढ़े हैं या किसी न किसी रूप में इसके कार्यक्रमों में आते रहे हैं. किसी संस्थान द्वारा इतने प्रशासनिक अधिकारी सामाज को देना कोई छोटी बात नहीं. यही स्थिति उनके मंत्रियों के साथ भी है. कांग्रेस की राजस्थान सरकार के साथ भी यही स्थिति है, तो क्या उनकी सरकार को आतंकवादी या उसके साथ सम्बन्ध रखने वाले चला रहे हैं. राहुल गांधी को चाहिये कि चुनाव में वोट की खातिर भ्रमित करने वाले मूर्खतापूर्ण बयान न दें. लाखों देशभक्तों द्वारा कठिन तपस्या, पूर्ण यौवन और नि:स्वार्थ भाव से अपना तन, मन और धन अर्पण कर इस संस्था का पोषण किया गया है.

किसी दिन विद्या भारती द्वारा संचालित विद्यालयों में से किसी एक में अपना पूरा दिन दें और विद्या भारती की आत्मा को अनुभव करें. इस अनुभव के बाद वह चाटुकारों के कहने के बाद भी विद्या भारती के विद्या मंदिरों का विरोध नहीं कर पाएंगे.

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